मंगलवार, 2 सितंबर 2014

डायन प्रथा को बढ़ावा दे रहे पुरोहित

एक ओर सरकार, प्रशासन और बुद्धिजीवी तबका डायन प्रथा को खत्म करने के प्रयास में जुटा है, दूसरी ओर पुरोहित बिरादरी पूरे जोर-शोर से डायन प्रथा को बढ़ावा देने में लगा हुआ है। पुरोहितों और उनकी ढकोसलेबाजी का प्रमुख समर्थक मीडिया भी इसमें अप्रत्यक्ष रूप से खूब समर्थन कर रहा है।

पहले हम जानते हैं कि डायन प्रथा का मूल आधार क्या है? डायनों के बारे में कहा जाता है कि वह मंत्र पढ़कर (देहातों में बान मारना भी कहा जाता है) किसी की जान ले ले सकती है या फिर बीमार कर दे सकती है। मंत्र के सहारे वह ऐसे कारनाम कर सकती है, जो और किसी भी तरह संभव ही नहीं है।
विज्ञान के विकास ने और मानवाधिकारों के प्रति बढ़ती जागरुकता ने इन ढकोसलों के खिलाफ काफी काम किया है। लोगों को लगातार लंबे अरसे तक समझाने के बाद काफी हद तक यह समझाने में सफलता मिली है कि डायन का असर केवल मन का वहम है। ऐसा कुछ नहीं होता। बीमारियों और मौतों के पीछे दूसरे कारण होते हैं।
परंतु, दूसरी ओर पुरोहित लगातार मंत्रवाद को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं। वे दिन-रात इस थ्योरी में लगे रहते हैं कि मंत्रों में शक्ति होती है। मंत्रों का असर होता है। हालांकि मंत्रों के असर का षड्यंत्रों का काफी हद तक पर्दाफाश हो चुका है, लेकिन पुरोहित वर्ग इसे फिर से लोगों के मन में बिठाने में लगा है। इसमें पूरा साथ दे रहा है मीडिया।
लगभग सभी समाचार पत्रों और चैनलों में मंत्रों की महिमा बार-बार बताई जा रही है। फलाने मंत्र से यह लाभ होता है, फलाने मंत्र से शक्ति बढ़ती है, फलाने मंत्र से पुत्रों की रक्षा होती है। कई बार तो यह चुटकुला की हद तक हास्यास्पद हो जाता है। जैसे हाल ही में नागपंचमी के दिन एक समाचार पत्र में छपा कि फलाने मंत्र के जाप से सर्पदंश का असर कम हो जाता है। पाखंड फैलाने वाला यह आलेख आधे पेज पर छपा था। यह लिखने वाला पुरोहित और छापने वाला संपादक दोनों ही जानते हैं कि यह कोरा पाखंड फैलाने से अधिक कुछ नहीं है।

इसी तरह चैनलों और अखबारों में देवी-देवताओं को खुश करने वाले मंत्र लगातार बताये जा रहे हैं। कई दीर्घायु होने के मंत्र भी हैं। हालांकि हाल के वर्षों में देवताओं को खुश करने में लगे भक्त ही थोक में मर रहे हैं या मारे जा रहे हैं। केदारनाथ, वैष्णो देवी, बोलबम यात्रा आदि इसके ढेर सारे उदाहरण हैं।
यह सर्वविदित है कि पाखंड फैलाने के लिए पुरोहितों ने ढेर सारे संगठन बना रखे हैं। इन्हीं में से एक है गायत्री परिवार। यह संगठन हरिद्वार में मंत्रों की शक्ति पर कथित रूप से अनुसंधान कर रहा है। आप यहां जाकर देखें तो पता चलेगा कि पाश्चात्य सुविधाओं से लैस यह कथित प्रयोगशाला लोगों को मूर्ख बनाने के अलावा और कुछ नहीं करता। इसके समर्थक और भक्त गायत्री मंत्र के ढेर सारे प्रभाव गिना देते हैं। मेधावी होने से लेकर दीर्घायु होने तक के। इनके पाखंड का खुलासा इसी से हो जाता है कि यह संस्थान आज तक एक साधारण वैज्ञानिक भी पैदा नहीं कर सका। हालांकि यह एक यूनिवर्सिटी भी चलाता है- देव संस्कृति विश्वविद्यालय। गायत्री मंत्रों की शक्ति का आलम यह है कि चंद वर्ष पहले गायत्री मंत्रों के उच्चारण के बीच भगदड़ मची और दर्जन भर भक्तों की मौत हो गई।

पुरोहित वर्ग लगातार ढोंग ढकोसले फैलाने के उपाय तलाशते रहता है। कभी गणेश को दूध पिलाकर, कभी पेड़ में देवी-देवताओं के चेहरे दिखाकर। और फिर ढेर सारे पर्व-त्यौहार तो हैं ही।
लेकिन मंत्रों का प्रभाव बताना इन सबमें सबसे अधिक खतरनाक है। यह सीधे तौर पर डायन प्रथा और झाड़-फूंक को बढ़ावा देना है। अपनी दुकानदारी चलाने के लिए पुरोहित वर्ग यह लगातार कर रहा है। शर्मनाक है कि इसमें मीडिया घराने भी सहयोग कर रहे हैं। तिलक लगाने वाले ढोंगियों का बाजार गुलजार हो जाएगा, यह उतना खतरनाक नहीं है। लेकिन मंत्रों का असर अगर लोगों को दिमाग में बैठने लगा तो फिर डायन के नाम पर गरीब गरीब और लाचार औरतों की शामत आ जाएगी। उन पर अमानवीय जुल्म तेजी से बढ़ने लगेंगे।
इसी तरह हवन आदि कर्मकांडों को भी बढ़ावा देने पर जोर दिया जा रहा है। चंद दिन पहले लालू जी हृदय का ऑपरेशन कराने भर्ती हुए तो समर्थकों ने पटना में हवन किया। हवन में इतनी ही शक्ति है तो फिर लालूजी को समझाना चाहिए था कि वे अस्पताल में भर्ती होने की मूर्खता क्यों कर रहे हैं? देवता ऐसे ही वरदान देकर ठीक कर देंगे।
ऐसा ही नजारा क्रिकेट विश्वकप के दौरान भी दिखता है। प्रशंसक टीम को जीतने के लिए हवन करते हैं। जब टीम हारती है तो क्रिकेटरों पर गुस्सा करते हैं। अरे मूर्खों, जब तुम्हारे देवताओं की जीत दिलाने की औकात नहीं थी कि तो बेचारे क्रिकेटर तो साधारण मनुष्य हैं। अखबार वाले भी देवी-देवताओं की बजाय खिलाड़ियों को कोसने लगते हैं। इससे यह तो साफ जाहिर हो जाता है कि सबको बता है कि हवन और प्रार्थना सिवाय ढोंग-ढकोसला के और कुछ नहीं है। लेकिन पुरोहित प्रपंच जारी रखने के लिए यह आवश्यक है। चाहे देश जितना बदहाल हो जाए। मंत्र की शक्ति साबित करने के पाखंड को बढ़ावा देते रहेंगे।

पुरोहितों को इससे क्या? उन्हें तो सिर्फ अपनी दुकान की फिक्र है। वे अपनी दुकान चलाने के लिए साईं को लेकर तो धर्मसभा कर सकते हैं, लेकिन एक बार भी डायन प्रथा का विरोध नहीं कर सकते। लेकिन वे भी बेचारे क्या करें, डायन प्रथा को झूठा कहेंगे तो उनके मंत्रों के पाखंड का पर्दाफाश हो जाएगा। उनकी दुकान बंद होने लगेगी। और मीडिया भी आजकल दुकानदारी ही हो गया है। उसे चाहिए मसाला और विज्ञापन चाहे निर्मल जैसे चुटकुलेबाज बाबा को ही क्यों न दिन-रात चलाना पड़े। चाहे इसके लिए लोगों को जागरुक करने की बजाय अंधविश्वास ही क्यों न फैलाना पड़े।
तो फिर हल क्या है? पुरोहितों को तो कोई समझा नहीं सकता कि अब पाखंड फैलाना बंद करो। जो लोग डायन प्रथा को गलत मानते हैं, उन्हें मुखर होना पड़ेगा। डायन प्रथा की जड़ पर प्रहार करना होगा। वह यह है कि लोगों को बताया जाए कि मंत्रों में कोई शक्ति नहीं होती। यह पुरोहितों की चाल है अपनी दुकानदारी चमकाने के लिए।

सुधीर

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

U r ryt sahi qadam hai andhwishwas ko door krne ki mere khyal se ye msg sirf educated logo tk hi pahunch sakta hai uneducated ko nhi zyada acha hota ki village m jakr logo ko jagruk kiya jay