शनिवार, 15 अक्टूबर 2011

हिंदू संस्कृति में दास्ताने मुहब्बत



शकुन्तला व दुष्यंत
           संस्कृति के स्वयंभू रक्षक भले ही मुहब्बत के नाम से भड़कते हों, लेकिन प्यार हिंदू संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है। चाहे इतिहास उलटकर देखें या फिर धर्मग्रंथ। हर जगह प्यार के चर्चे भरे पड़े हैं। खासकर धर्मग्रंथों में तो मुहब्बत की ऐसी दास्तानें हैं, जो आज तक अन्यत्र दुर्लभ है। आज जो संगठन संस्कृति की दुहाई देकर वेलेंटाइन डे से लेकर मुहब्बत तक का विरोध करते हैं, इससे साफ हो जाता है कि उन्होंने कभी धर्मग्रंथ को उलटकर नहीं देखा है। 
        हमारे धर्मग्रंथ इस बात के साक्षी हैं कि हमारे आदर्श देवी देवता व महापुरूष के जीवन में मुहब्बत का रंग सर चढ़कर बोलते रहा है। मर्यादा पुरूषोत्तम राम व भगवान श्रीकृष्ण से लेकर पार्वती व सीता तक सबके दिल जख्मी होते रहे हैं। 
रूक्मिणी व श्रीकृष्ण
        सबसे पहले चक्रवर्ती सम्राट दुष्यंत को लें जिनके पुत्र भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा। उनकी मां शकुंतला से दुष्यंत ने प्यार किया था। महाभारत के अलावा इस दास्ताने मुहब्बत पर कालिदास ने अभिज्ञान शाकुंतलम के रूप में अद्वितीय नाटक की रचना की है। शकुंतला कण्व ऋषि के आश्रम में रहती है, जहां दुष्यंत शिकार खेलते हुए पहुंच जाते हैं। वहीं दोनों की आंखें चार होती हैं और वे एक-दूसरे के हो जाते हैं। ऋषि कण्व उन दिनों कुछ काम से आश्रम से बाहर गये होते हैं। दुष्यंत और शकुंतला उनके आने तक का इंतजार नहीं करते और एकांत में ही एक-दूसरे को पति पत्नी का दर्जा दे देते हैं। उनके बीच वहीं शारीरिक संबंध भी बनता है, जिससे शकंुतला गर्भवती हो जाती है और बाद में उस गर्भ से भरत का जन्म होता है। शुक्र है कि उस जमाने में शिवसेना व श्रीराम सेना नहीं आदि संगठन नहीं थे, नहीं तो भरत चक्रवर्ती सम्राट के बजाय नाजायज औलाद और शकुंतला कुलटा कहला रही होती।
        शिवसेना के शिव जी की पार्वती से शादी भी अरेंज मैरिज नहीं थी। पार्वती के घरवाले इस शादी के पूरी तरह खिलाफ थे। लेकिन पार्वती ने जिद कर शंकर से ही शादी की। यहां तक कि शंकर को मनाने के लिए पार्वती ने वर्षों तपस्या भी की। आम तौर पर माना जाता है कि हिंदू स्त्रियां प्रेम के मामले में संकोची होती हैं, लेकिन पार्वती इस धारणा के बिल्कुल विपरीत हैं। उन्होंने शंकर से प्यार किया और डंके की चोट पर ऐलान भी किया और शंकर को शादी के लिए तैयार भी कर लिया।
      मुहब्बत की जंजीर से तो मर्यादापुरूषोत्तम राम भी नहीं बच पाये थे। इसकी गवाही वाल्मीकि कृत रामायण, आध्यात्म रामायण, रामचरित मानस सभी देते हैं। राम व सीता स्वयंवर से पहले पुष्पवाटिका में ही एक दूसरे को अपना दिल दे चुके थे। यह लव ऐट फस्र्ट साइट का अद्भूत उदाहरण है। तुलसीदास ने इस दृश्य के लिए क्या खूब शब्द दिये हैं- गिरा अनयन, नयन बिनु बानी।
      भगवान श्रीकृष्ण और राधा की कहानी तो खैर जग प्रसिद्ध ही है। दोनों आज भी प्रेमी युगलों के लिए लव गुरू का काम करते हैं। एक दूसरे से मिलने और मान मनुहार के जिन तरीकों का इस्तेमाल राधा व श्रीकृष्ण करते थे, वे आज के प्रेमी-प्रेमिकाओं के लिए मार्गदर्शन ही है। जैसे जंगल में फूल चुनने के बहाने मिलना, श्रीकृष्ण का वेश बदलकर राधा के गांव जाना आदि। खास यह भी कि राधा को किसी दूसरे पुरूष की मंगेतर भी बताया गया है। फिर भी दोनों भारत में सर्वाधिक ख्यातिप्राप्त प्रेमी युगल हैं। श्रीकृष्ण तो आजीवन ही प्यार के प्रबल समर्थक रहे। उनका रुक्मणी से शादी लव मैरिज ही थी। हद तो यह कि उन्होंने रुक्मणी को उनके घर से भगाकर शादी की थी। भागकर और भगाकर शादी करने वालों में रुक्मणी-श्रीकृष्ण ही नहीं हैं, इसके अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं।
         श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा और अर्जुन की शादी भी भागकर ही हुई थी। दोनों एक दूसरे से पहले से ही मुहब्बत करते थे। जब सुभद्रा की शादी बलराम ने दुर्योधन के साथ तय कर दी तो सुभद्रा व अर्जुन ने भागकर शादी कर ली। इसमें श्रीकृष्ण ने भी साथ दिया था। इसके अलावा परमवीर राजा पृथ्वीराज चैहान ने भी संयोगिता को भगाकर ही उनसे शादी की थी। दोनों एक दूसरे से पहले से ही प्यार करते थे। गजब यह कि रुक्मणी, सुभद्रा व संयोगिता तीनों शादी तय होने के बाद भागती हैं।
          हिंदू शास्त्र यह भी बताते हैं कि प्यार के बीच जाति या वर्ण कोई बंधन रूकावट नहीं बन पाता था। दुष्यंत क्षत्रीय थे, जबकि शकुंतला ब्राह्मण कन्या थीं। श्रीकृष्ण और अर्जुन का वर्ण भी अलग बताया जाता है। कविवर लल्लुलालजी ने प्रेमसागर में श्रीकृष्ण के लिए यादव शब्द का प्रयोग किया है। आजीवन ब्रह्मचारी रहने वाले भीष्म के पिता शांतनु ने मल्लाह की बेटी सत्यवती से प्रेम विवाह किया था। हालांकि सत्यवती को पहले से ही एक पुत्र था- महाभारत का रचयिता व्यास। दरअसल एक बार ऋषि पराशर सत्यवती की नाव से नदी पार कर रहे थे। नाव पर ही पराशर को सत्यवती से प्यार हो गया और दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन गये। इस प्यार के फलस्वरूप व्यास का जन्म हुआ। उसके बाद सत्यवती से शांतनु ने प्यार किया। शांतनु-सत्यवती के प्रेम के आगे तो उम्र के फासले भी मिट गये थे। शांतनु ने जब गंगा से शादी की थी वह भी प्रेम विवाह ही था। भीष्म काशी नरेश की जिन तीन लड़कियों का हरण कर अपने सौतेले भाई विचित्रवीर्य से शादी के लिए लाते हैं, उनमें से एक शल्य नरेश से प्यार करती थी। यह इस बात को साबित करता है कि उस समय पूरे भारत में ही प्यार मुहब्बत का प्रचलन था। बाद में जब भीष्म को यह पता चलता है कि एक लड़की किसी दूसरे पुरूष से प्यार करती है, तो वे भी प्यार के आगे झुक जाते हैं और उसे स्वतंत्र कर देते हैं। 
        धर्मग्रंथों में तो ऐसा भी जिक्र है कि मानव जाति से इतर भी शादियां होतीं थीं। भीम ने हिडिम्बा से शादी की थी जो कि राक्षस कुल की थी। अर्जुन ने नाग कन्या उलूपी से शादी की थी। यह भी काबिलेगौर है कि हिडिंबा व भीम की शादी भी मुहब्बत के बाद ही हुई थी। हिडिम्बा भीम को देखते ही भीम को अपना दिल दे बैठी थी। बाद में शादी का प्रस्ताव भी हिडिम्बा ने ही दिया था। लड़की द्वारा मुहब्बत का इजहार करने का हिडिम्बा इकलौता उदाहरण नहीं है। रुक्मणी भी इसी कतार में आती है। श्रीकृष्ण के पास उसी ने पहले प्रेमपत्र भेजकर अपने प्यार का इजहार किया था। पार्वती का जिक्र पहले ही हो चुका है। मुहब्बत का सबसे अद्भूत और बेमिशाल कारनामा किया था श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरूद्ध की प्रेयसी उषा ने। वह बाणासुर की पुत्री थी। उसने तो बकायदा अनिरूद्ध का सोये हुए अवस्था में ही उन्हीं के घर से अपहरण करवा लिया था। आधुनिक काल की तरह उस समय भी दोनों खानदानों में काफी लड़ाई-झगड़े के बाद सुलह हुई और फिर शादी हुई।
          हिंदू धर्म में देवताओं का शरीर भी मानव जैसा ही बताया गया है। लेकिन वे भी मानव व देव योनी से इतर जाकर प्रेम करते पाये गये हैं। जैसे हनुमान के पिता केसरी नाम के वानर थे। स्वभाविक सी बात है कि उनकी पत्नी अंजनी वानरी होगी। उसी शादीशुदा अंजनी पर पवन देवता का दिल आ गया और उसके बाद जो हुआ उससे हनुमान का जन्म हुआ। हनुमान चालीसा में भी हनुमान को दोनों पिताओं का पुत्र बताया गया है- पवनसुत और केसरीनंदन। वैसे महाभारत बताता है कि युद्धिष्ठिर, भीम व अर्जुन के वास्तविक पिता पांडु नहीं थे।
      स्पष्ट है कि सारे हिंदू धर्मग्रंथ मुहब्बत और प्रेम विवाह के प्रबल समर्थक हैं। वे सभी साबित करते हैं कि प्रेम भारतीय संस्कृति में आदि काल से ही प्रचलन में है। ऐसा भी संभव नहीं कि जो प्रथा इतने खुले और स्वीकार्य रूप में उच्च वर्गों में हो, वह आम जन में प्रचलित न हो। आज जब कोई संगठन संस्कृति और धर्म की दुहाई देकर प्रेम का विरोध करता है तो उसकी बुद्धि पर तरस ही खाया जा सकता है। आज अगर कोई हिंदू किसी मुस्लिम या ईसाई परिवार में शादी करता है, तो तूफान खड़ा हो जाता है जबकि सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने सेल्युकस की पुत्री कार्नवालिया से शादी की थी, जो कि खाड़ी देश की थी। उसकी संस्कृति, भाषा, धर्म और राष्ट्रीयता सब बिल्कुल ही अलग थी। बेहतर होगा कि पहले धर्म और संस्कृति को जान लें फिर उसकी बात की जाए।

सुधीर

2 टिप्‍पणियां:

Prakash ने कहा…

bahut hi badhiya hai.....

but kuch kuch acceptable v nahi hai....

pawan ने कहा…

rochak ...............