
इसका परिणाम है कि अब टीम अन्ना पर न सिर्फ हमले हो रहे हैं बल्कि उन पर हमले की बार-बार चेतावनी भी दी जा रही है। हिसार के कांग्रेसी उम्मीदवार जयप्रकाश ने मतगणना से पहले ही टीम अन्ना को खुले तौर पर धमकी दी थी। जयप्रकाश ने कहा था कि टीम अन्ना के प्रति जनता में बहुत आक्रोश है और उन पर हमला हो सकता है। शिवसेना के सरगना बाल ठाकरे ने भी टीम अन्ना को अपने मुखपत्र के माध्यम से चेतावनी दी है। बिहार के भ्रष्टतम नेता लालू प्रसाद ने मीडियाकर्मियों से साफ कहा कि अन्ना के साथी काफी बढ़चढ़कर बोल रहे हैं। उन पर लाठियां चलेंगी।
कोई भी नेता या राजनीतिक दल यह साफ नहीं कर रहा कि टीम अन्ना कौन सी बात गलत कह रही है। क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े कानून बनाने की बात करना गलत है? क्या भ्रष्ट नेताओं के बारे में जनता को जानकारी देना गलत है? प्रशांत भूषण ने कश्मीर पर अपनी राय व्यक्त की। कहा जा रहा है कि उस लेकर उन पर हमला हुआ। तो क्या अब कोई भी बयान देने से पहले देश के हर आदमी से स्वीकृति लेनी होगी?

लालू को पता है कि अगर जनलोकपाल बिल पारित हो जाता है, तो वे कानून की जिन कमजोरियों का फायदा उठाकर अभी तक सत्ता सुख भोग रहे हैं, वह खत्म हो जाएगा। वे ताउम्र जेल की रोटी खाएंगे। साथ ही उनकी संपत्ति का बड़ा हिस्सा भी जब्त हो जाएगा। सबसे दुखद यह है कि इतने गर्त में जाने के बावजूद लालू जनता की भावनाओं के विपरीत चल रहे हैं। इसी तरह देष में विभाजनकारी कांड करके अपनी राजनीति की दुकान चलाने वाली षिवसेना को भी पता है कि अन्ना की व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई की आंच उन तक भी पहुंचेगी। कभी धर्म, कभी क्षेत्र, कभी भाषा के नाम पर बाल ठाकरे की गुंडई करने की राजनीति खत्म हो जाएगी।
अरविंद केजरीवाल पर हमले का कारण कांग्रेस के खिलाफ प्रचार बताया जा रहा है। चप्पल फेंकने वाला जीतेंद्र पाठक ने हमले का कारण कांग्रेस के खिलाफ प्रचार बताया। कई चैनल भी इस बात को स्थापित करने में लगे हुए हैं कि अन्ना का इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन अब इंडिया अगेंस्ट कांग्रेस बन गया है। टीम अन्ना कांग्रेस के खिलाफ अभियान चला रही है, जबकि भ्रष्ट तो दूसरे दलों के उम्मीदवार भी हैं।
सवाल अभी उम्मीदवार के भ्रष्ट होने का नहीं है। अहम मसला यह है कि जब तक सख्त लोकपाल कानून नहीं बनता भ्रष्टचार को रोका नहीं जा सकता। भ्रष्टाचार का अभी तक का सबसे कारगर कानून लोकपाल ही नजर आ रहा है, जिसे कांग्रेस लटकाये हुए है। अब कोई यह बताये कि जन लोकपाल बिल बनाने की जिम्मेदारी किस पर है? लोकपाल बिल के लिए किस पर दबाव बनाया जाए? क्या भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, जनता दल यू, लोक दल, राष्ट्रीय जनता दल आदि चाह कर भी इस कानून को बना सकते हैं? जवाब है- नहीं। तो फिर दबाव कांग्रेस के अलावा किस पर बनाया जाए?
दूसरा सवाल किया जा रहा है कि सरकार ने शीतकालीन सत्र में लोकपाल बिल पारित करने का वादा किया है। ऐसे में उसे तब तक का वक्त दिया जाए। परंतु, जो लोग कांग्रेस के चरित्र को जानते हैं, उन्हें पता है कि उसके वादे पल भर में बदल जाते हैं। टीम अन्ना तो इस बारे में कई बार धोखे खा चुकी है। पहले अन्ना का जंतर-मंतर का अनषन लोकपाल की संयुक्त ड्राफ्ट कमिटी बनाने के नाम पर तुड़वाया गया। कमिटी तो बनी, लेकिन कांग्रेस अपनी मनमानी करती गयी। टीम अन्ना की मुख्य बातें सिरे से नकार दी गयी। 16 अगस्त को जब अन्ना अपने आवास से निकले भी नहीं थे कि उन्हें बिना कारण जनता में भय पैदा करने के लिए जेल में डाल दिया गया। रामलीला मैदान में अनषन के दौरान प्रणब मुखर्जी ने पहली वार्ता में टीम अन्ना की बातें मानीं और अगले दिन की बातचीत में मुकर गये। ऐसे कांग्रेस के वादे पर कौन यकीन करेगा। इसलिए कांग्रेस पर टीम अन्ना द्वारा दबाव बनाये रखना बिल्कुल आवश्यक है।
एक अफवाह यह फैलाया जा रहा है कि अन्ना के आंदोलन के पीछे आरएसएस का हाथ है। अगर कल को कसाब यह कह दे कि वह अन्ना के आंदोलन का समर्थन करता है, तो क्या फिर आंदोलन के पीछे कसाब का हाथ कहा जाएगा? क्या किसी आंदोलन में किसी संगठन को समर्थन देने से रोका जा सकता है? साइमन कमीशन के कांग्रेस द्वारा विरोध का क्रांतिकारियों ने पूरजोर समर्थन किया था तो क्या गांधी का वह आंदोलन क्रांतिकारियों द्वारा प्रायोजित था? कोई किसी आंदोलन में किसी को समर्थन देने से कैसे रोक सकता है?
एक बात यह कही जा रही है कि अन्ना के कांग्रेस विरोध से भाजपा को फायदा हो रहा है। अगर ऐसा हो रहा है तो यह कांग्रेस की मूर्खता से हो रहा है। भाजपा को फायदा उठाने का मौका किसने दिया- कांग्रेस ने। लोकपाल बिल पर देश का विश्वास किसने तोड़ा- कांग्रेस ने। अन्ना के देशव्यापी आंदोलन का दमन करने का प्रयास किसने किया- कांग्रेस ने। कांग्रेस के पास तो मौका था कि वह देश का मिजाज भांपकर जन लोकपाल बिल पारित कर दे। सबसे पहला मौका तो उसी के पास फायदा उठाने का था। उसने सत्ता के अहंकार में एक के बाद एक लगातार मूर्खता की। अब अगर विपक्ष को इसका फायदा मिल रहा है, तो इसमें टीम अन्ना का क्या कसूर है? एक आव श्यक कानून का विरोध करने का नुकसान तो कांग्रेस को भुगतना ही पड़ेगा। अब इसके साइड इफेक्ट में अगर भाजपा को फायदा हो रहा है, तो यह कांग्रेस की मूर्खता की वजह से।
एक बात और। टीम अन्ना को बार-बार चुनाव लड़ने की चुनौती दी जा रही है। सवाल है कि क्या किसी आम आदमी को भारतीय लोकतंत्र में बोलने की आजादी नहीं है क्या? तिकड़म लगाकर चुनाव जीत बड़ी संख्या में संसद में पहुंचे गुंडे-मवालियों से ही भारतीय लोकतंत्र जिंदा है क्या? क्या चुनाव लड़े बिना व्यवस्था परिवर्तन की बात करना गलत है? अगर ऐसा है तो अन्ना से बड़े मुजरिम विनोबा भावे और जय प्रकाश नारायण हैं।
अभी टीम अन्ना से सबसे अधिक नुकसान कांग्रेस को हो रहा है। हिसार लोकसभा क्षेत्र व उसी दिन हुई अन्य सीटों की मतगणना इसे साबित करती है। हर सीट पर कांग्रेस पानी मांगते नजर आयी। हालांकि टीम अन्ना ने सिर्फ हिसार में ही कांग्रेस का विरोध किया था। इससे कांग्रेस के नि शाने पर तो टीम अन्ना का होना स्वभाविक है। यही वजह है कि कांग्रेस हाथ धोकर टीम अन्ना के पीछे पड़ी है।
कांग्रेस काफी पहले से ही अन्ना व उनके साथियों के पीछे है। उसके नेता महीनों से टीम अन्ना का चरित्रहनन का प्रयास कर रहे हैं। अन्ना जैसे फकीर को कांग्रेस काफी पहले ही सिर से पैर तक भ्रष्ट बता चुकी है। कांग्रेस साम, दाम, दंड व भेद सबका सहारा ले रही है। एक ओर प्रधानमंत्री अन्ना की प्र शंसा में पत्र लिखते हैं, तो दूसरा कांग्रेसी नेता उन्हें भ्रष्ट बताता है। अभी दिग्विजय सिंह को अन्ना का आंदोलन का आरएसएस से संबंध बताने का दौरा पड़ा हुआ है। दिग्विजय शायद इस बात के कायल हैं कि एक ही झूठ को बार-बार बोलने से वह सच लगने लगता है।
क्या दिग्विजय को यह नहीं मालूम है कि जिस येद्युरप्पा को लेकर वह आज भाजपा पर हमला कर रही है, उसे बेनकाब करने वाला शख्स टीम अन्ना का ही एक सदस्य संतोष हेगड़े है। येद्युरप्पा को इस हालत में पहुंचाने वाले संतोष हेगड़े हैं, जिनके रिपोर्ट पर सारी कार्रवाई हुई। तब वे कर्नाटक के लोकायुक्त थे। हेगड़े की रिपोर्ट पर येद्युरप्पा को न सिर्फ कर्नाटक के मुख्यमंत्री के पद से हाथ धोना पड़ा बल्कि जेल भी जाना पड़ा।
अगर अन्ना ने गुजरात के विकास को सराहा तो खुद केंद्र सरकार भी कर रही है। केंद्र सरकार द्वारा जारी आंकड़े में ही गुजरात की विकास दर सबसे तेज बतायी गयी है। दिग्विजय का कहना है कि आरएसएस के एक नेता ने अन्ना को चिट्ठी लिखकर समर्थन जताया है। ऐसे तो मनमोहन सिंह ने भी कई चिट्ठियां लिखकर अन्ना की मांग का समर्थन किया है।
स्पष्ट है कि टीम अन्ना पर हो रहे हमले भ्रष्ट नेताओं का और राजनीतिक दलों का साजि श है। वे नैतिक रूप से टीम अन्ना से हार रहे हैं। अब वे अपना हिंसक रूप दिखाकर टीम अन्ना व जनता की आवाज को भयभीत करना चाहते हैं। शुक्र है कि टीम अन्ना ने हार नहीं मानी है वरना भारतीय लोकतंत्र एक मजाक बनकर रह जाता, जैसा कि राजनीतिक दल बनाना चाहते हैं।
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