शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

साहित्य की सृजनभूमि बिहार


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नदियों की पवित्र धाराएं तो बिहार में पर्याप्त बहती ही हैं, साहित्य की धारा उससे भी कहीं अधिक बहती हैं. दोनों ही प्रकार की धाराएं अनादि काल से बिहार में बहती आ रहीं हैं. बिहार की पुण्यभूमि को संसार का पहला कवि पैदा करने का सौभाग्य प्राप्त है. आदि कवि वाल्मिकी की जन्मभूमि व कर्मभूमि है यह स्थल. भारतीय जनमानस के आदर्श का आख्यान जिसका अनुवाद विश्व की लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में हो चुका है - रामायण की रचना बिहार में हुई थी. अगर विश्व का प्रथम कवि बिहार का था तो दूसरी ओर प्रथम गद्य उपन्यास की रचना भी बिहार में ही हुई थी, जिसका नाम है कादंबरी.
 जी हां, बाणभट्ट की कादंबरी, जिसके बारे में अब लगभग सभी सहमत हैं कि कादंबरी विश्व का पहला उपन्यास है. इसके रचयिता थे सम्राट हर्षवर्द्धन के दरबारी बाणभट्ट. बाणभट्ट बिहार के औरंगाबाद जिला के हसपुरा प्रखंड अंतर्गत पीरू ‘तत्कालीन प्रीतिकूट’ के रहने वाले थे. वहीं उन्होंने हर्षचरित की भी रचना की. हालांकि कहा जाता है कि कादंबरी उत्तरार्द्ध उनके पुत्र भूषणभट्ट ने लिखा था क्योंकि बाण अपने जीवन में उसे पूरा नहीं कर सके थे. इसके अलावा उनके द्वारा चंडीशतक, पार्वती परिणय, रत्नावली आदि लिखने का भी प्रमाण मिलता है. बाणभट्ट के ही पूर्वज थे महर्षि वात्सयायन. इसका जिक्र खुद बाण ने किया है. वात्सयान ने सेक्स जैसे जटिल विषय पर विश्व में पहली बार लिखने का साहस किया. उन्होंने कामसूत्र जैसी अमर रचना तैयार किया.
 इसके बाद प्रसिद्ध नाम है कौटिल्य का, जिन्होंने विश्व में पहली बार राजनीतिक और सामाजिक शास्त्र की रचना की. उस रचना का नाम है अर्थशास्त्र. इसी धरती पर महान भाषाविद् पाणिनी ने अष्टाध्यायी की रचना की. इसके बाद पातंजली ने महाभाष्य तैयार किया. ये सब महान ग्रंथ तब लिखे गये जब विश्व में साहित्य का नाम भी ठीक से सुना नहीं गया था. उसी काल में बिहार के एक और ऋषि याज्ञवाल्क्य ने याज्ञवाल्क्य संहिता की रचना की.
 सर्वविदित है कि बिहार बौद्ध धर्म का केंद्र रहा है. अतः इसमें कोई संदेह नहीं कि कई बौद्ध ग्रंथों एवं पिटकों की रचना बिहार में ही हुई. बौद्ध विद्वान अश्वघोष का नाम काफी प्रसिद्ध है जो नाटककार व कवि भी थे. महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने भी ऐसे संकेत दिये हैं कि हजारों बौद्ध ग्रंथों की रचना बिहार में हुई है.
 पाल वंश के समय बिहार में साहित्य का काफी विकास होने का संकेत मिलता है. इस काल में पाल राजा रामपाल के समकालीन संध्याकर नन्दी ने काव्य रामचरित की रचना की. इसकी खासियत बतायी जाती है कि इसके प्रत्येक पद के दो अर्थ निकलते हैं - एक भगवान राम के लिए और दूसरा राजा रामपाल के लिए. उनके अलावा उस काल में चक्रपानी दत्त ने वैद्यक ग्रंथ, जीमूतवाहन ने हिंदु कानून की पुस्तक दाय भाग और वज्रदत्त ने लोकेश्वर शतक की रचना की. इन सारे महान लेखकों से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीन काल में बिहार साहित्य का प्रधान उद्गम स्थल था. इसकी धारा में पूरा देश व विश्व तृप्त होता रहा. यह धारा कभी सूखी नहीं.
 मध्यकाल में इस धारा के मुख्य स्रोत रहे विद्यापति. उनकी रचनाओं से आज तक साहित्य जगत आलोकित होता रहा है. विद्यापति के अलावा मध्यकाल में रामेश्वर, रामरहस्य, शिवनाथ दास, मंगनी राम आदि भक्त कवि हुए. भक्त कवियों में दरिया साहब बिहार वाले को काफी प्रतिष्ठा मिली. इसी काल में परम पूज्य गुरू गोविंद सिंह ने भी अनेक पदों की रचना की. उन्होंने गुरुमुखी लिपि में रामायण भी लिखी थी.
 साहित्य रचना का काल क्रम निरंतर चलता रहा. आधुनिक साहित्य में भी बिहार हमेशा अपनी चमक बिखेरता रहा. पंडित रामावतार शर्मा, पंडित चंद्रशेखर शास्त्री, रामलोचन शरण का नाम साहित्य जगत में काफी आदर से लिया जाता है. शिवपूजन सहाय ने संस्मरण कला का प्रतिमान मानी जानी वाली कृति ‘वे दिन वे लोग’ लिखा. राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह ने हिंदी साहित्य को ‘चुंबन और चांटा’ उपन्यास और ‘नारी क्या- एक पहेली?’ व ‘पूरब और पच्छिम’ कहानी संग्रह दिया, अवध नारायण आचार्य, कामता प्रसाद सिंह काम आदि ने कई क्लासिक रचनाएं दीं. फणीश्वरनाथ रेणु ने तो आंचलिक युग का ही सूत्रपात कर दिया. उनका ‘मैला आंचल’ की आज तक कोई विकल्प नहीं बन पाया. साथ ही ‘परती परिकथा’ भी कालजयी उपन्यास माना जाता है. रेणु की कहानियां आज भी बिहार के देहातों को जीवंत कर देतीं हैं. उनके रिपोर्ताज अपने आप में एक समृद्ध पाठ्यक्रम के समान है. ये तो हुई लेखकों की बात. रामवृक्ष बेनीपुरी ने तथागत नाटक, गेहूं और गुलाब शब्द चित्र और पैरों में पंख बांध कर यात्रा वृतांत लिखा. तो क्या कविता की धारा बिहार में सूख गयी थी? नहीं, बिल्कुल नहीं.
 राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने ओजभरी कविताओं से राष्ट्रीय चेतना को झकझोरा. उनकी रचनाएं कुरूक्षेत्र, हुंकार, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा आदि कालजयी हैं. उन्होंने भारत व भारतीय संस्कृति को समझाने के लिए अद्वितीय ग्रंथ संस्कृति के चार अध्याय की रचना की. बाबा नागार्जुन ने कविता के माध्यम से जनसाधारण की आवाज को मजबूत कर उसे सत्तासीनों को सुनने पर मजबूर किया. उन्होंने पांच चर्चित उपन्यास ‘रतिनाथ की चाची’, ‘बलचनमा’, ‘नयी पौध’, ‘बाबा बटेसरनाथ’ और ‘वरुण के बेटे’ लिखे. इसी दौर में आरसी प्रसाद सिंह, रामदयाल पांडेय, गोपाल सिंह नेपाली, मोहनलाल महतो वियोगी आदि ने अपनी कविताओं से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया. इन नामों के बीच छायावाद के पंचम सुर के रूप में प्रसिद्ध जानकी बल्लभ शास्त्री को कोई भी नजरअंदाज नहीं कर सकता.
हिंदी साहित्य में बिहार की एक तिकड़ी काफी मशहूर हुई थी. उनमें थे - नलिन विलोचन शर्मा, केसरी कुमार व नरेश कुमार. इस तिकड़ी की कविता संकलन ‘नकेन’ के नाम से भी छपी थी. इनमें नलिन अपेक्षाकृत अधिक चर्चित रहे. उनकी कहानी ‘विष के दांत’ क्लासिक मानी जाती है. राजकमल चैधरी की कविताएं भी काफी प्रसिद्ध हुईं. चैधरी की कविता ‘मुक्तिप्रसंग’ मुक्तिबोध की ‘अंधेरे में’ के बाद सबसे लंबी कविता मानी जाती है. उनका एक उपन्यास भी काफी चर्चित रहा- ‘मछली मरी हुई’.
 बिहार में साहित्य की धारा ऐसा नहीं कि एकांगी बह रही थी. यहां सभी भाषाओं में साहित्य सृजन का काम चल रहा था. द्वितीय भारतीय भाषा उर्दू भी यहां काफी समृद्ध हुई. स्वतंत्रता सेनानियों का प्रसिद्ध गीत ‘ सरफरोशी की तमन्ना अब... की रचना बिहार में ही माना जाता है. उर्दू के प्रसिद्ध लेखक व शायर शफी मशहदी का दावा है कि इस गीत के रचयिता सैयद हसन बिस्मिल अजीमाबादी थे. वे पटना सिटी के लोदी कटरा के रहने वाले थे. ऐसा ही दावा पटना इप्टा ने भी किया है. अली मुहम्मद शाह ने उर्दू में बिहार का इतिहास नक्श ए पायदार की रचना की. इनके अलावा बिहार में सैयद इमदाद, नवाब नसीर हुसैन खां ख्याल, इमाम अश्क, सैयद फजले हक, अजुयुद्दीन अहमद, शेख गुलाम अली रासिख, जीमल मजहरी, परवेज शाहिदी, जार अजीमाबादी, सुहैल अजीमाबादी आदि कई उर्दू के ख्याति प्राप्त साहित्यकार हुए.
 मैथिली को यूं तो विद्यापति ने ही साहित्यिक रूप से काफी समृद्ध कर दिया था. उनके बाद लाल कवि, मनबोध, बुद्धिलाल, रत्नपानी, हर्षनाथ, चंदा झा, लालदास, रघुनंदन दास आदि लोग मैथिली में साहित्य सृजन करते रहे. भोजपुरी भी इनमें पीछे नहीं रही.
 ऐसे भी यह भोजपुरी के शेक्सपीयर भिखारी ठाकुर की भूमि है. उन्होंने अपनी रचनाओं से एक आंदोलन खड़ा कर दिया. सामाजिक समस्याओं व विद्रूपताओं को उन्होंने जिस बारीकी और जोरदार ढंग से उठाया, वैसी हिम्मत बिरला साहित्यकार ही उठा पाता है. उन्होंने विस्थापन व वियोग की पीड़ा झेल रही बिहार के गांवों की महिलाओं की व्यथा, दहेज, सामंती गुंडई के प्रति विद्रोह को बेटीबेचवा और गबरगिचोर के माध्यम से उठाया. बिदेशिया के द्वारा उन्होंने एक अति प्रभावशाली नाट्य शैली को ही जन्म दे दिया. भिखारी ठाकुर से पहले भोजपुरी में पद्य की रचना में काफी प्रसिद्ध हैं महेन्दर मिसिर. उन्हें स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा भी प्राप्त है. वे अंग्रजी सत्ता के विरोध में नोट छापते थे, जिस मामले में उन्हें सजा भी हुई थी. महेन्दर मिसिर ने भोजपुरी में सैकड़ों गीत लिखे. कहा जाता है कि आज तक भोजपुरी में उनके गीत जितने गाये गये, उतने किसी भी और के नहीं. वे खुद भी संगीत के पारखी थे. भिखारी ठाकुर व महेन्दर मिसिर के अलावा भोजपुरी साहित्य में रघुवीर नाथ, रघुवीर नारायण व मनोरंजन प्रसाद सिन्हा का भी काफी नाम है.
 बिहार की महत्वपूर्ण भाषा मगही में भी साहित्य लिखे जाते रहे. मगही साहित्यकारों में लक्ष्मी नारायण पाठक, हरिहर पाठक, जयगोविंद दास, बालगोविंद आदि को काफी प्रसिद्धि मिली. बंगाल का एक अंग होने के कारण बिहार में सदा ही बंगालियों की खासी संख्या रही है. अतः यहां बंगला साहित्य की रचना काफी हुई. बंगाली साहित्यकारों में सुमेंद्र नाथ मजुमदार, राजनारायण बोस, चंद्रशेखर बोस, ठाकुर दास मुखर्जी, योगेंद्र नाथ बसु, प्रभात कुमार मुखर्जी आदि चर्चित नाम हैं.
 इन नामों के साथ दो महान बंगाली साहित्यकारों को भूलना उचित नहीं होगा. एक तो कवींद्र रवींद्र नाथ टैगोर व दूसरा स्वनाम धन्य शरतचंद्र. शरतचंद्र का तो बिहार के भागलपुर से निकट का संबंध रहा है. उन्होंने अपनी उम्र का बड़ा हिस्सा बिहार में बिताया है. यही वजह है कि उनके लगभग सभी उपन्यासों का नायक एक बार बिहार जरूर आता है. वहीं रवींद्र बाबू के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने सुप्रसिद्ध गीतांजलि की रचना बिहार में ही की थी.

 स्पष्ट है कि समय के साथ यहां साहित्य की धारा चैड़ी व तेज होती गयी. अभी भी राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में बिहार के साहित्यकार छाये हुए हैं. इनमें आलोक धन्वा, ज्ञानेंद्रपति व अरुण कमल काफी सफल रहे. गौरवपूर्ण सिलसिला जारी है. उम्मीद है कि सदैव जारी रहेगा. निर्बाध, निरंतर.
         आमीन.
सुधीर

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