(मित्रों! शहीद रामरूप मेहता की शहादत के 31 वर्ष पूरे हो चूके हें। आगामी 2 जनवरी 2012 को उनकी स्मृति में प्रतिवर्ष आयोजित होनेवाले स्मृति प्रतियागिता के 32 वर्ष पूरे हो जाएंगे। हम इस आलेख के जरिए उनके प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।)
जिसने खुद आकर न देखा हो, उसे यकीन दिलाना काफी कठिन है इस कार्यक्रम के बारे में. जब ठंड अपने शीर्ष पर होती है, जब किसानों को कृषि कार्य से दम मारने की फुर्सत नहीं होती, दिन चंद घंटों का होता है, इन सबको नजर अंदाज कर तीस से चालीस हजार लोग किसी नेता को प्रतिवर्ष श्रद्धांजलि देने पहंुचते हैं. जब क्रिकेट देश में धर्म के रूप में स्थापित हो चुका है, इतनी बड़ी तादात में लोग फुटबाॅल देखने के लिए काम का नुकसान और ठंड बर्दाश्त करते हैं. बिना किसी प्रचार-प्रसार के इतने लोग समारोह में भाग लेते हैं. और सबसे अदभूत यह कि जब पूरा विश्व एक जनवरी का इंतजार कर रहा होता है, तब यहां के लोग दो जनवरी का इंतजार करते हैं. ये कुछ पहलू हैं हसपुरा क्रीड़ा स्थल पर पिछले तीस वर्षों से प्रत्येक दो जनवरी को होने वाले शहीद रामरूप मेहता स्मृति प्रतियोगिता समारोह के.
मौका मिले या न मिले, फिर भी कभी मौका निकालकर दो जनवरी के समारोह में एक अवश्य शामिल हों.
शहीद रामरूप मेहता (02 जनवरी 1936-16 मार्च 1980) |
जिसने खुद आकर न देखा हो, उसे यकीन दिलाना काफी कठिन है इस कार्यक्रम के बारे में. जब ठंड अपने शीर्ष पर होती है, जब किसानों को कृषि कार्य से दम मारने की फुर्सत नहीं होती, दिन चंद घंटों का होता है, इन सबको नजर अंदाज कर तीस से चालीस हजार लोग किसी नेता को प्रतिवर्ष श्रद्धांजलि देने पहंुचते हैं. जब क्रिकेट देश में धर्म के रूप में स्थापित हो चुका है, इतनी बड़ी तादात में लोग फुटबाॅल देखने के लिए काम का नुकसान और ठंड बर्दाश्त करते हैं. बिना किसी प्रचार-प्रसार के इतने लोग समारोह में भाग लेते हैं. और सबसे अदभूत यह कि जब पूरा विश्व एक जनवरी का इंतजार कर रहा होता है, तब यहां के लोग दो जनवरी का इंतजार करते हैं. ये कुछ पहलू हैं हसपुरा क्रीड़ा स्थल पर पिछले तीस वर्षों से प्रत्येक दो जनवरी को होने वाले शहीद रामरूप मेहता स्मृति प्रतियोगिता समारोह के.
मौका मिले या न मिले, फिर भी कभी मौका निकालकर दो जनवरी के समारोह में एक अवश्य शामिल हों.
कई संदेश हैं समारोह के
इस समारोह के कई संदेश भी हैं. पहला सबसे बड़ा संदेश है कि जनता कभी एहसानफरामोश नहीं होती. वह हमेशा उसे याद रखती है, जिसने उसकी भलाई के लिए कुछ किया हो. लगातार तीन दशकों से आमलोग अपना हर काम छोड़ कर प्रत्येक दो जनवरी को अपने नेता के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने समारोह स्थल पहुंचते हैं. उन्हें कड़ाके की ठंड भी प्रभावित नहीं कर पाती. हर बार दो जनवरी को हसपुरा समारोह में उपस्थित होना उनकी जीवनशैली में शामिल हो चुका है. यह भी सत्य है कि रामरूप बाबू के बाद क्षेत्र की आम जनता को उनके दुख दर्द को बांटने वाला और उनकी समस्या सुलझाने वाला कोई दूसरा नेता नहीं हुआ. यह भी गौरतलब है कि इस समारोह का नकल करने का प्रयास कई बार किया गया, लेकिन जनसमर्थन नहीं मिला. उन कार्यक्रमों में अच्छी फूटबाॅल टीमें थीं. जोरदार प्रचार किया गया था. लेकिन अगर नहीं था तो शहीद रामरूप मेहता का नाम.
दूसरा संदेश सामाजिक सौहार्द्रता का है. मेहता जी जाति धर्म आदि संकीर्ण भावनाओं से बहुत दूर थे. उसका असर समारोह में भी दिखता है. हर धर्म, हर जाति व हर समुदाय के लोग बिना किसी भेदभाव के समारोह में शामिल होते हैं. मानो उस दिन लोग जाति धर्म के बंधन तोड़ देना चाहते हैं. मंच से लेकर दर्शक दीर्घा तक यही स्थिति होती है. ये भी दिलचस्प है कि कार्यक्रम भले ही एक राजनीतिक व्यक्तित्व की याद में हो, लेकिन यहां कोई राजनीतिक चर्चा नहीं होती. हां सामाजिक मुद्दे पर जरूर कुछ बात निकलती है. हालांकि समारोह में राजनेताओं व राजनीतिक कार्यकर्ताओं की बड़ी तादात मौजूद होती है.
तीसरा संदेश सामाजिक कार्यक्रम के सफल आयोजन का है. इस विशाल समारोह में कभी पेशेवर लोगों की मदद नहीं ली गयी. तीन दशक से यह समारोह स्वयंसेवकों के दम पर सफलता पूर्वक आयोजित होता आ रहा है. आयोजन से जुड़े लोग बताते हैं कि क्षेत्र के सभी लोग खुद आगे बढ़ कर सहयोग करते हैं. इनमें व्यवसायी, नेता, स्वयंसेवी, किसान, मजदूर, सरकारी अधिकारी व कर्मचारी, छात्र आदि सभी शामिल हैं.
चाौथा संदेश शांति व्यवस्था का है. ‘आम जनता का कार्यक्रम‘ को यह समारोह परिभाषित करता है. तीस से चालीस हजार की भीड़ और कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं. फिर भी कभी कोई छोटी झड़प भी आज तक नहीं हुई. लोग खुद अपनी जगह पर व्यवस्थित रहते हैं. यह अदभूत है कि समारोह में विघ्न डालने की कोई भी कोशिश सफल नहीं हुई.
हस्तियों की उपस्थिति
पिछले तीस वर्षों में समारोह में अनेक विशिष्ट हस्तियों ने शिरकत की. लेकिन यह भी बता देना यहां जरूरी होगा कि कई बार बिना किसी चर्चित व्यक्तित्व के ही समारोह आयोजित हुआ और दर्शक संख्या पर कोई असर नहीं पड़ा. यह मिथक यहां टूट जाता है कि कार्यक्रम की सफलता और दर्शकों को लुभाने के लिए किसी बड़े नेता या स्टार को बुलाना आवश्यक होता है. वस्तुतः इस कार्यक्रम का आयोजक आम जनता है.
प्रथम समारोह अर्थात दो जनवरी 1981 के मुख्य अतिथि पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर थे, जो कि शहीद मेहता के निकटस्थ मित्र भी थे. बाद में इस समारोह में पूर्व शिक्षा मंत्री रामराज सिंह, पूर्व मंत्री भोला प्रसाद सिंह, रामविलास सिंह, भगवान सिंह कुशवाहा, ददन पहलवान, छेदी पासवान पूर्व विधायक राजाराम सिंह, रामशरण यादव, रवींद्र कुमार, डीके शर्मा, सांसद सुशील कुमार, फिल्म निर्माता-निर्देशक अशोक चंद जैन आदि सहित कई गणमान्य हस्तियां शामिल हुईं.ै
रामरूप मेहता : एक संक्षिप्त परिचय
रामरूप मेहता एक बड़े समाजवादी नेता थे, लेकिन उससे से बड़े समाजसेवी थे. त्याग, निःस्वार्थ सेवा, मानवीय गुण, लोहियावादी राजनीति की प्रतिमूर्ति. जन्म दो जनवरी 1936 को हसपुरा प्रखंड के बिरहारा गांव में साधारण किसान परिवार में हुआ. छात्र जीवन में बिनोबा भावे के भूदान आंदोलन से जूडे़. उनका रूझान वहीं से समाज सेवा की ओर होने लगा. बाद में डाॅ. राम मनोहर लोहिया की विचारधारा से प्रभावित हो कर शोसलिस्ट पार्टी से जूडे़ और फिर आजीवन समाजवादी आंदोलन में अग्रणी नेता के रूप में रहे. जय प्रकाश नारायण और उनके खादी आंदोलन से भी इनका जीवन पर्यंत नाता रहा. बिहार के कर्पूरी ठाकुर, रामानंद तिवारी, भोला प्रसाद सिंह, जगदेव प्रसाद, के अलावा मधु लिमये आदि समाजवादी नेताओं से भी उनका घनिष्ठ संबंध रहा.
शहीद मेहता राजनीतिक ही नहीं समाजिक परिवर्तन के लिए भी जी जान से लगे रहे. खास कर किसानों के हित में हमेशा ही मोर्चा लेते रहे. उस इलाके में 45-80 आयुवर्ग का शायद ही कोई व्यक्ति होगा, जो कहे कि रामरूप मेहता से उसका संबंध न रहा हो.
शिक्षा से भी मेहता जी का काफी लगाव था. उन्होंने इलाके में कई शिक्षण संस्थान खुलवाये. वे संस्थान आज भी चल रहे हैं. मेहताजी तमाम व्यस्तता के बावजूद अध्ययन की काफी किया करते थे. आज भी उनके घर पर उनके द्वारा खरीदी गयी हजारों पुस्तकें मौजूद हैं.
एक घटना का उल्लेख आवश्यक है. मेहता जी लोकप्रियता से प्रभावित होकर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण खुद उनके पास पहुंचे. उन्होंने उनसे कांग्रेस के टिकट पर बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ने आग्रह किया. लेकिन धन्य वह मानव! बिना विचलित हुए मेहताजी ने तुरंत अपनी समाजवादी राजनीति की प्रतिबद्धता बताते हुए इंकार कर दिया. उनके बारे में ऐसी अनेक सच्ची कहानियां लोक मानस में भरे पड़े हैं.
उनकी लोकप्रियता और साथ ही प्रतिबद्ध राजनीति से भी विरोधी उनके खिलाफ षड्यंत्र करने लगे. उनके घर में आग लगवायी गयी, उन पर फर्जी मुकदमें किये गये. लेकिन वे सोने की तरह कंुदन बनते गये. आखिरकार विरोधियों ने असामाजिक तत्वों को मोहरा बनाकर एक बड़े षड्यंत्र को अंजाम दिया. 16 मार्च 1080 दिन रविवार को उनके गांव में ही गोली मार कर हत्या करवा दी गयी. गोली लगे होने के बावजूद रामरूप मेहता को पता था कि हत्यारे अब समाज को अपना निशाना बनायेंगे. उन्होंने अंतिम सांसों में जनता को ललकारा- अब वे मेरे नहीं, तम्हारे दुश्मन हैं, जाओ उन्हें मिटा डालो. जनता ने भी उनकी ललकार को तुरत पूरा कर दिया उसी दिन पांच हत्यारों को पीट-पीट कर मार डाला.
आज रामरूप मेहता भौतिक रूप में नहीं हैं, लेकिन उनके विचार, कर्म व संदेश हमारे बीच हमेशा रहेंगे.
सुधीर
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