
सदियों से ही जारी है प्रकाशनबाण की रचनाओं का अन्य भाषाओं में अनुवाद करने व प्रकाशन करने का काम 19वीं शदी से ही शुरू हो गया था. प्राप्त जानकारी के मुताबिक गोवर्नमेंट सेंट्रल बुक डिपोट, बांबे ने 1884 में कादंबरी का प्रकाशन अंग्रेजी में किया था. इसका अनुवाद पीटरसन व पीटर जी ने किया था. इससे पूर्व 1867 ई. में कादंबरी का मराठी में अनुवाद होने के प्रमाण मिलते हैं. अनुवादक थे- श्री परशुराम पंत गोड़बोले. कादंबरी के प्रति तो अग्रेजी साहित्यकारों की दीवानगी देखते ही बनती है.
राॅयल एशिएटिक सोसायटी लंदन ने 1896 में काॅरोलिन मैरी रिडिंग द्वारा अनुदित द कादंबरी आॅफ बाण का प्रकाशन किया. इसी प्रकाशन संस्थान ने 1897 ई. में द हर्षचरित आॅफ बाण का प्रकाशन किया. उसे तैयार किया था ईबी काॅवेल व एफडब्ल्यू थाॅमस ने.
इसके बाद जैसे-जैसे विश्व ने बाणभट्ट की साहित्य सरिता का स्वाद चखा, उसके दीवाने होते गये. लगातार भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में उनकी रचनाओं का प्रकाशन होने लगा. प्राचीन भारतीय साहित्य के प्रकाशन के लिए चर्चित संस्थान मोतीलाल बनारसीदास बांबे ने 1921 द कादंबरी आॅफ बाणभट्ट: पूर्व भाग प्रकाशित किया. इसे कैन ने लिखा था. इसी संस्थान की दिल्ली शाखा ने 1968 में कैले द्वारा तैयार -बाणाज कादंबरी: पूर्व भाग कंपलीट- प्रकाशित किया. बाद में मोतीलाल बनारसीदास प्रकाशन संस्थान ने हिंदी अनुवाद व व्याख्या सहित हर्षचरितम् प्रकाशित किया. इसके अनुवादक थे श्री मोहनदेव पंत. श्री पंत ने बाद में मोतीलाल बनारसी दास के सहयोग से कादंबरी को भी हिंदी अनुवाद सहित प्रकाशित करवाया. मोतीलाल बनारसीदास ने हालांकि अन्य लेखकों द्वारा अनुदित कादंबरी को कई भागों में भी प्रकाशित किया. इससे पाठकों को कादंबरी के अध्ययन में काफी सुविधा मिली.
बाणभट्ट साहित्य के प्रति बिहार राष्ट्रभाषा परिषद पटना ने भी कुछ करने का प्रयास किया. इसका प्रतिफल मिला 1958 ई. में जब श्री बासुदेव शरण अग्रवाल द्वारा लिखित हर्ष चरित: एक सांस्कृतिक अध्ययन का प्रकाशन हुआ. इसके अलावा 1966 में कुमुदरंजन राय ने बाणभट्टाज कादंबरी: सुकनाशोपदेश, प्रकाशित कराया.
अविस्मरणीय बने रहे बाणभट्टबाणभट्ट विश्व के साहित्यप्रेमियों की नजर में हमेशा बने रहे और उनके साथ प्रतिष्ठित प्रकाशन संस्थानों की भी. 1991 ई. काफी महत्पूर्ण साबित हुआ, जब गारलैंड पब्लिशिंग न्यूयार्क और लंदन ने प्रकाशित किया- कादंबरी: अ क्लासिक संस्कृत स्टोरी आॅफ मैजिकल ट्रांसफाॅरमेशन्स. लैयन इसके लेखक थे. 2009 में न्यूयार्क यूनिवर्सिटी प्रेस ने प्रिंसेस कादंबरी बाई बाण का प्रकाशन किया. इसे लिखा डेविड स्मिथ ने. 2008 ई. में डीसी बुक्स ने कादंबरी को मलयालम में प्रकाशित किया.
भारत में भी सभी संस्थानों में बाणभट्ट साहित्य को प्रकाशित करने की होड़ सी लगी रही. 2004 में ग्लोबल विजन पब्लिशिंग हाउस दिल्ली ने कादंबरी बाई बाणभट्ट प्रकाशित किया. 2010 में पेंग्विन बुक्स इंडिया ने पद्मिनी राजप्पा द्वारा लिखित कादंबरी: बाण का प्रकाशन किया. इनके अलावा डायमंड पाॅकेट बुक्स दिल्ली ने अशोक कौशिक द्वारा अनुदित हर्षचरित बाई बाणभट्ट को प्रकाशित किया.
बाण बने रचना का विषयइन सबके साथ महान सहित्यकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित बाणभट्ट की आत्मकथा का उल्लेख न करना शायद न्याय न हो. इसे भले ही बाण ने नहीं लिखा हो, लेकिन बाण को जानने के लिए यह महत्वपूर्ण स्रोत है. साथ ही इससे बाण के रचना काल को जानना आसान हो जाता है. ऐसे तो बाणभट्ट ने अपने बारे में संक्षेप में हर्षचरित में लिखा है, लेकिन उससे बाणभट्ट की आत्मकथा का महत्व कम नहीं हो जाता. इसे राजकमल सहित कई संस्थानों ने प्रकाशित किया है. आचार्य द्विवेदी ने अपनी इस रचना का श्रेय इसाई विदुषी मिस कैथराइन को दिया है, जिन्होंने 75 वर्ष की उम्र में सोन क्षेत्र में पैदल चल कर सामग्री जुटायी थी और उसे संग्रहित कर द्विवेदी को दिया था. इससे बाणभट्ट के प्रति अंग्रेजों के पुराने आकर्षण का पता भी चलता है.
सुधीर
नोट: यह रचना हाल ही में दाउदनगर, औरंगाबाद से प्रकाशित बाणभट्ट विशेषांक उत्कर्ष में छपी है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें