टीम अन्ना के सदस्य व सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण पर हमला करने वाले गुंडों ने खुद को भगत सिंह क्रांति सेना का सदस्य बताया। भगत सिंह का नाम ऐसे गुंडागर्दी करने वाले भी ले सकते हैं। दरअसल पूंजीपतियों व उनके इशारे पर चलने वाली सरकारों ने भगत सिंह की छवि हमेशा ऐसी ही बनाने की कोशिश की। भगत सिंह का नाम लोग कहीं भी लड़ाई झगड़े के लिए लेने लगे हैं। परंतु यह पूरी तरह से भगत सिंह का अपमान है।
क्या कोई भगत सिंह के बारे में जानने वाला व्यक्ति बता सकता है कि किसी के साथ भगत सिंह ने अपने पूरे जीवन में मारपीट की थी? जिस भगत सिंह को हमेशा एक खूनी चरित्र के रूप में पेश किया गया, उन्होंने पूरे जीवन में सिर्फ एक हत्या की थी- सैंडर्स की। वह भी इसलिए कि उसके नेतृत्व में लाला लाजपत राय की लाठी से पीटकर हत्या कर दी गयी थी। यह राष्ट्रीय अपमान था। ब्रिटिश सरकार अपनी गलती मानने के बजाय दोषी अधिकारियों की पीठ थपथपा रही थी। ऐसे में भगत सिंह ने अपने साथियों के साथ इस राष्ट्रीय अपमान का बदला लिया।
भगत सिंह ने तो इतना तक किया कि असेंबली में बम भी खाली स्थान में फेंका, ताकि किसी को कोई चोट न आये। बम भी इसलिए फेंका गया था कि वहां मजदूरों व आम जनता के खिलाफ कानून बन रहे थे। भगत सिंह का दल हिन्दुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन उन कानूनों का विरोध कर रहे थे। उनकी बात सुनी नहीं जा रही थी। उस समय राजनीति से जुड़े सभी दल पूंजीपतियों के ही शुभचिंतक थे। इतिहास इस बात का साक्षी है कि गांधी, पटेल, नेहरू आदि तमाम नेताओं ने पूंजीवाद व साम्राज्यवाद के खिलाफ एक बार भी अपना मुंह नहीं खोला। आजादी के बाद आम जनता का क्या हो, इसका जवाब सिर्फ भगत सिंह ने दिया था। दुखद यह था कि भगत सिंह की बात सुनी नहीं जा रही थी और जन विरोधी कानून बनने जा रहे थे। ऐसे में भगत सिंह ने फ्रांसिसी क्रांतिकारी की बात कही और की- बहरों को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत होती है।
भगत सिंह के जीवन के तमाम पहलुओं से यह बात सबसे अधिक स्पष्ट होती है कि वे किसी भी रूप में अभिवयक्ति की स्वतंत्रता के विरोधी नहीं थे। यहां तक कि उन पर अगर किसी ने कोई आरोप भी लगाया तो उसका जवाब पूरी तरह शांतिपूर्वक दिया। जब गांधी ने अपने पत्र यंग इंडिया में भगत सिंह की विचारधारा की तीखी आलोचना करते हुए कल्ट आॅफ दी बम्ब लिखा तो इसका जवाब भगत सिंह ने पंजाबी पत्र किरती में बम का दर्शन लिख कर दिया।
रही बात कश्मीर की स्वतंत्रता का। भगत सिंह का जन्म 1907 में हुआ था। पाकिस्तान की मांग भगत सिंह के जीवन काल में उठा था। लेकिन भगत सिंह ने इसका कभी प्रतिरोध नहीं किया। ऐसा नहीं था कि भगत सिंह विभाजन के पक्षधर थे। दरअसल भगत सिंह विभाजन के कारणों को दूर करना चाहते थे। वे जानते थे कि एकता व विकास के लिए भारत के हिंदू व मुस्लिम दोनों धर्मावलंबियों को एक होना पड़ेगा। वे जानते थे कि धर्म हमेशा ही लोगों को तोड़ता है। इस संबंध में उन्होंने अपने लेख मैं नास्तिक क्यों हूं, धर्म और हमारा स्वाधीनता संग्राम, सांप्रदायिक दंगे और उनका इलाज और अराजकतावादी में लिखा है। उन्होंने लेखों में स्पष्ट किया है कि धर्म व ईश्वर लोगों को मूर्ख बनाकर शोषण करने के लिए बनाये गये हैं। माक्र्स की तरह वे भी मानते थे कि धर्म अफीम के समान है, जो सोचने समझने की क्षमता को खत्म कर देता है। ऐसे में श्रीराम सेना जैसे सांप्रदायिक संगठन से जुड़ा कोई व्यक्ति खुद को भगत सिंह के विचारों से प्रभावित बताता है तो दुख होना लाजिमी है। भगत सिंह और धर्म बिल्कुल दो अलग चीजें हैं।
मारपीट और गुंडागर्दी करके भगत सिंह का नाम लेना नया नहीं है। कुछ ही साल पहले जनरल ए एस वैद्य के हत्यारे हरजिंदर सिंह व सुखजिंदर सिंह ने वरिष्ठ राजनयिक व पत्रकार कुलदीप नैयर को पत्र लिखकर पूछा था कि वे कैसे आतंकवादी हैं और भगत सिंह कैसे क्रांतिकारी हो गये? दोनों ने अपनी तुलना भगत सिंह से करते हुए सैंडर्स की जगह जनरल वैद्य को बता दिया था। इसके जवाब में कुलदीप नैयर ने ‘भगत सिंह: क्रांति में एक प्रयोग’ लिखा। श्री नैयर ने साफ किया कि भगत सिंह महान आदर्शों को लेकर चल रहे थे। हर मामले में उनकी एक स्पष्ट समझ थी। क्रांति उनके लिए महज भावुकता या आवेश में लिया गया फैसला नहीं थी। भगत सिंह ने खुद कहा था- पिस्तौल और बम इन्कलाब नहीं लाते बल्कि इन्कलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है। इन्कलाब का अर्थ पूंजीवाद और पूंजीवादी युद्धों की मुसीबतों का अंत करना है।
भगत सिंह का मानवीय दृष्किोण कितना कोमल था यह उनके इन शब्दों से पता चलता है- मानव जीवन की पवित्रता के प्रति हमारी पूर्ण श्रद्धा है, हम मानव जीवन को पवित्र मानते हैं। ऐसे विचार थे भगत सिंह के। भगत सिंह के विचारों को जानने के लिए पहले उनसे जुड़े साहित्य को पढ़ना होगा।
भगत सिंह ने किसी भी क्रांति का मुख्य उद्देश्य आम जनता व मजदूरों का हित बताया था। क्या प्रशांत भूषण पर हमला करने वालों ने कभी किसी मजदूर के साथ जिंदगी में बात भी की है? किसी सांप्रदायिक संगठन से जुड़े लोगों को तो भगत सिंह का नाम लेने का हक ही नहीं है। फिर किसी के निजी विचारों से चिढ़कर हमला करना और ऐसे गुंडागर्दी करने वाले संगठन का नाम भगत सिंह के नाम पर रखना अत्यंत शर्मनाक है।
थोड़ी सी बात कश्मीर की आजादी का भी। अव्वल तो कि भगत सिंह होते तो देश का बंटवारा किसी भी कीमत पर नहीं होता। भगत सिंह आजादी हासिल करना चाहते थे न कि कांग्रेस की तरह किसी समझौते के तहत प्राप्त करना। भगत सिंह को ऐसा अनुमान पहले ही था कि कांग्रेस के नेता सत्ता का सुख भोगने के लिए और सांप्रदायिक लोग अपनी महत्ता बनाये रखने के लिए देश के बंटवारे पर भी समझौता कर लेंगे। ऐसा ही हुआ। आजादी के दिन हिंदुस्तान के करीब 10 करोड़ से भी अधिक लोग विस्थापन, मौत, बेइज्जती और दहशत को झेल रहे थे, भारत पाकिस्ताव व बंग्लादेश में कत्लेआम हो रहा था, महिलाएं समूह में नंगी करके घुमाई जा रही थीं, नदियों का पानी मानव रक्त से लाल हो रहा था, हजारों वर्षों का संबंध टूट रहा था दूसरी ओर नेहरू सत्ता मिलने की खुशी में लाल किला पर जश्न मना रहे थे। यह थी कांग्रेस की आजादी।
और फिर आजादी के इतने साल बाद आम जनता कहां है और किस हाल में है, यह किसी से छिपा नहीं। फिर भी अगर मान लें कि वर्तमान हालात में भगत सिंह होते तो क्या करते। निःसंदेह प्रशांत भूषण ने जो कहा वे अधिक जोर से कह रहे होते। आश्चर्य हो रहा हो तो उनका लेख अराजकतावादी पढि़ये। भगत सिंह की नजरों में आदर्श राज्य वह है जहां शासन के बजाय जनता की बात सुनी जाए। जहां शासन की दखलंदाजी कम से कम हो। जनता खुद अपने बारे में फैसला करे। संभव हो तो कोई सरकार रहे ही नहीं। भगत सिंह सवाल उठाते हैं- ऐसा क्यों कि जनता पर हमेशा किसी न किसी का शासन रहे ही? भगत सिंह के शब्दों पर गौर फरमाते हुए अगर हम कश्मीर के हालात पर गौर करें तो वहां की जनता को तो सामान्य अधिकार भी हासिल नहीं है। अभी तक के अनुभव बताते हैं कि जोर जबर्दस्ती करने से वहां के हालात दिनोंदिन सुधरने के बजाय बिगड़ते ही गये।
अब तो यह भी साफ होने लगा है कि वहां जनमत संग्रह के नाम से लोग राजनीति कर रहे हैं। पाकिस्तान के हालात इतने बदतर हैं कि कश्मीरी किसी कीमत पाकिस्तान में शामिल नहीं होंगे। यही नहीं कश्मीरियों को यह भय भी है कि पाकिस्तान कहीं उसे चीन के हवाले न कर दे। भौगोलिक दृष्टिकोण से कश्मीर ऐसी जगह पर है जहां उसे स्वतंत्र रूप में स्थापित होकर खुद को बनाये रखना असंभव सा है। अतः आम कश्मीरियों को भारत से दिक्कत नहीं है। वे हर हाल में भारत में ही रहना पसंद करेंगे।
बहरहाल इतना कि तथाकथित भगत सिंह क्रांति सेना ने जो किया वह भगत सिंह के महान आदर्शों को अपमानित करने के अलावा कुछ नहीं। भगत सिंह की क्रांति महान आदर्शों के लिए थी न कि गुंडागर्दी करने के लिए।
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