कहते हैं, जब रोम जल रहा था तब नीरो बासुरी बजा रहा था। वैसे ही जब बिहारी की राजधानी पटना जल रहा था तब नीतीश कुमार सेवायात्रा में कहकहे लगा रहे थे।
मुट्ठी भर गुंडे किसी राज्य की राजधानी को हाईजैक कर लें, इस
पर कभी विश्वास नहीं किया जा सकता। परंतु, जब वहां की सरकार ही ऐसा फैसला कर ले, तो क्या किया जा सकता है? पटना में यही हुआ। सरकार ने खुद ही राजधानी में आतंक का राज कायम करने का फैसला कर लिया था। उसमें भरपूर साथ दिया आला पुलिस अधिकारियों ने। वरना चंद गुंडों में इतनी ताकत नहीं हो सकती कि वह पूरी कानून-व्यवस्था को ही ध्वस्त कर दें।
रणवीर सेना के प्रमुख ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या होते ही उसके साथी आरा में उपद्रव करने लगे थे। वहां उन्होंने एक-दो को छोड़कर लगभग सभी सरकारी इमारतों को फंूक दिया। पुलिस तमाशा देखने के अतिरिक्त
कुछ नहीं कर सकी। उसी दिन से यह सवाल उठने लगे थे कि आखिर पुलिस और सरकार की मंशा क्या है? घटनास्थल पर तुरंत पुलिस महानिदेशक
अभयानंद पहुंचे। उनके पहुंचने के बाद और सुनियोजित ढंग से आतंक फैलाया जाने लगा। नीतीश उस समय अपनी सेवा यात्रा में थे। उन्होंने वहीं से रणवीर सेना के समर्थकों का समर्थन और शह देना शुरू किया। कहा जा रहा है कि मोदी के आग्रह पर उन्होंने
ही पुलिस को कोई भी कार्रवाई करने से मना कर दिया था। उसके बाद उनका बयान आया कि ब्रह्मेश्वर
मुखिया के हत्यारों को बख्शा नहीं जायेगा। कानून को हाथ में लेने वाले पर हर हाल में कार्रवाई होगी। यहां उनके कानून को हाथ में लेने वालों में आरा को फूंक डालने पर आमाद रणवीर सेना के गुंडे नहीं थे। इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि दिन दहाड़े लोग गाड़ियों, ट्रेनों व इमारतो को जलाते रहे, पर किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई होना तो दूर, एक
एफआईआर तक दर्ज नहीं हुई। इससे उग्रवादियों
का मनोबल और बढ़ गया।
मोदी व सीपी की बैठक
जो खबरें छनकर आ रहीं हैं, उसके मुताबिक एक जून की शाम को उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी व भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीपी ठाकुर ने बैठक की। उसमें और भी कई ऐसे नेता व अधिकारी शामिल हुए, जिनके रणवीर सेना से संबंध होने की चर्चा रही है। इन रणवीर सेना समर्थक नेताओं ने ही यह फैसला लिया कि हो सकता है कि मुखिया के मारे जाने से लोगों के मन से रणवीर सेना का आतंक खत्म हो जाये। ऐसे में आवश्यक है कि राजधानी में शक्ति प्रदर्शन हो। इस बैठक का हिस्सा एक और सज्जन थे- डीजीपी अभयानंद।
ख्याल रहे कि रणवीर सेना जिस जाति का संगठन है, अभयानंद भी उसी जाति के हैं। बैठक का फैसला रणवीर सेना तक पहुंचा दिया गया। रणवीर सेना के गुंडों ने भी उसी अंदाज में आतंक फैलाया कि सैंया भये कोतवाल, अब डर काहे का।
फिर अगले दिन सबकुछ तयशुदा ढंग से होने लगा। पुलिस को अभयानंद ने पहले ही निर्देश दे दिया था कि रणवीर सेना के लोग चाहे जो करें, कार्रवाई तो क्या रोक-टोक भी नहीं करनी है। यह हुआ भी। रणवीर सेना के लोग जैसे ही मुखिया के शव को लेकर राजधानी पहुंचे, अपने आकाओं के निर्देश का पालन करने लगे। उन्हें पता था, पुलिस उन्हें कुछ नहीं करेगी। बल्कि अगर कहीं आम नागरिकों से दिक्कत हुई, तो उनकी मदद ही करेगी। ऐसा पुनाईचक में हुआ भी। जब रणवीर सेना के गुंडों ने वहां के दो-तीन मंदिरों में आग लगा दी, तो
वहां के आम नागरिक उन पर टूट पड़े। परंतु, वहां
पुलिस की मुस्तैदी देखते ही बनी। पुलिस वहां तुरंत पहुंची और बल प्रयोग कर स्थानीय नागरिकों
को घरों में घुसने पर मजबूर कर दिया। यह और भी दिलचस्प है कि एक मंदिर के लिए देश भर में दंगा करवाने के लिए आतुर रहने वाली भाजपा के नेता दो-तीन मंदिरों के जलाये जाने पर मुंह से बोलना तो दूर, किसी ने पादा तक नहीं। स्वतंत्र
भारत में यह अनोखी घटना थी कि सरेआम मंदिरों को फूंका जा रहा था और सरकार फूंकने वालों को संरक्षण दे रही थी।
सिर्फ एक स्थान सुरक्षित
पटना में दंगाइयों
के रास्ते में आनेवाला सिर्फ एक स्थान सुरक्षित था- मुख्यमंत्री आवास। दरअसल, मोदी और अभयानंद दोनों को पता था कि अगर मुख्यमंत्री आवास पर कुछ होता है, तो नीतीश कुमार भड़क सकते हैं। लिहाजा, वहां
की सुरक्षा व्यवस्था चाक चैबंद थी। दंगाई जैसे ही उस बढ़े, सुरक्षाकर्मियों ने मोर्चा संभाल लिया और उन्हें खदेड़ दिया। इसी से यह स्पष्ट हो जाता है कि अगर मोदी व अभयानंद खुद अगर राजधानी में आतंक फैलाने के षड्यंत्र
में शामिल नहीं होते, तो सुरक्षाकर्मी राजधानी की दुर्गति नहीं होने देते। अभयानंद ने भूमिहार होने का जो हक अदा किया, वह
मिसाल के तौर पर याद किया जायेगा।
कहा जाता है कि पाटलिपुत्र से पटना बनने तक की अवधि में यह पहला ऐसा मौका था, जब
यहां के नागरिक इतने अधिक दहशतजदा हुए हों। नीतीश सरकार ने अनोखा रिकाॅर्ड
कायम किया। नीतीश की और कारगुजारियां शायद यहां की जनता भूल जाये, पर
इस दिन के लिए उन्हें हमेशा याद रखेगी।
पटना पुलिस उस दिन तीन काम करती दिख रही थी- एक तो रणवीर सेना से जान बचाकर भागना, दूसरा अपनी गाड़ियों और चेक पोस्टों को जलते हुए छुपकर देखना और तीसरा रणवीर सेना के लोग कहीं कमजोर पड़ें तो उनकी मदद करना।
एनाउंस की नौटंकी
जैसे ही लोग मुखिया का शव लेकर राजधानी पहुंचे, पूरा उपद्रव सुनियोजित
ढंग से होने लगा। शवयात्रा में आगे चल रहे सौ के करीब लोग मारपीट, हंगामा और आगजनी में लग गये। दिलचस्प है कि शवयात्रा में गाड़ी से एनाउंस करने वाला और आगजनी का स्थान तय करने वाला एक ही आदमी था। एक ओर वह माइक से एनाउंस करता कि उपद्रव करने वाले मुखिया के समर्थक नहीं हैं तो दूसरी ओर तुरंत माइक रखकर मोबाइल से निर्देश देता कि कहां-कहां आग लगानी है। उपद्रवियों ने इस बात का भी पूरा ख्याल रखा कि किसी वीडियो फुटेज में उनके चेहरे न आयें। इसके लिए वे उन मीडियाकर्मियों पर हमला करते रहे, जो आग लगाते वक्त की तस्वीर लेना चाहते थे।
अभयानंद पर थू
अभयानंद को आम तौर पर एक कत्र्तव्यनिष्ठ व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। उन्हें एक अच्छे विचार के आदमी के रूप में जाना जाता है जो पुलिस में सेवा देने के साथ-साथ सुपर थर्टी के माध्यम से बच्चों को इंजिनियरिंग की तैयारी करवाते हैं। परंतु, जब खुद उनकी परीक्षा की बारी आयी तो वे एक खांटी भूमिहार साबित हुए, जिसके लिए भूमिहारों
का आतंक कायम रखना प्राथमिकता बन गयी और इसके लिए राज्य की सुरक्षा को दांव पर लगा दिया। यह वही पुलिस है, जो आशा की महिलाओं पर जमकर लाठी चार्ज करती है, उन पर पानी की बौछार छोड़कर मजे लेती है, जो औरंगाबाद
में एक पिछड़ी जाति के मुखिया की हत्या के लिए इंसाफ मांग रहे ग्रामीणों और विपक्षी दलों के नेताओं पर लाठियां और आंसू गैस के गोले बरसाती है, महिलाओं को थाने में ले जाकर बेदर्दी से पीटती और बदसलूकी करती है, फारबिसगंज में अल्पसंख्यकों पर गोलियां बरसाकर और फिर घायलों के सिर पर कूद-कूदकर उनकी हत्या करती है, सूबे के कई थानों में महिलाओं के साथ बलात्कार
करती है, राजधानी में छात्रसंघ का चुनाव करवाने की मांग कर रहे छात्रों पर लाठी चार्ज करती है। यही बहादुर पुलिस रणवीर सेना के आगे-पीछे गीदड़ की तरह चलती है। जान बचाकर भागती रहती है। गुंडों को आगजनी की छूट देती है। दूसरे दिन अभयानंद का बेशर्मी भरा बयान आता है कि पुलिस ने संयम से काम लिया। तर्क यह कि अगर पुलिस शांति की कोशिश करती तो मामला और भड़क जाता। इसलिए एक दिन रणवीर सेना के लिए राजधानी में उपद्रव करने के लिए फ्री कर दिया गया।
नेता-आतंकी गठबंधन
31 दिसंबर 1997 को
ब्रह्मेश्वर मुखिया ने अरवल के बाथे में बिहार का सबसे बड़ा नरसंहार कराया था। उसमें कम से कम 59 लोगों
की हत्या हुई थी, जिसमें बड़ी संख्या महिलाओं और बच्चों की थी। उस घटना की जांच करने के लिए एक आयोग का गठन किया था- अमिरदास आयोग। उसने अपनी जांच रिपोर्ट में यह पाया था कि भाजपा व जदयू के कई बड़े नेताओं का रणवीर सेना के साथ गहरे संबंध हैं। इसमें उपमुख्यमंत्री मोदी, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीपी ठाकुर, जदयू विधायक रणविजय कुमार व दिवंगत डीके शर्मा आदि सहित कई नाम थे। यह आयोग अपना अंतिम रिपोर्ट देने ही वाली थी कि बिहार में जदयू-भाजपा की सत्ता स्थापित हो गयी। नीतीश ने सत्ता में आते ही सबसे पहले अमिरदास आयोग भंग करने का काम किया। परंतु, दो जून को राज्य सरकार और सवर्ण नेताओं की हरकत ने अमिरदास आयोग की बातों को पूरी तरह साबित कर दिया। हद हो गयी कि ने 300 गरीबों, महिलाओं व दुधमुंहें बच्चों की हत्या के जिम्मेदार
मुखिया की मौत का मातम मनाते हुए सीपी ठाकुर ने अपने फेसबुक एकाउंट पर ब्रह्मेश्वर मुखिया को महान सामाजिक कार्यकर्ता बताया। बिहार सरकार में मत्स्य एवं पशुपालन मंत्री गिरिराज सिंह ने मुखिया को गांधीवादी
विचारक बताया। काश! कोई
इन नेताओं को चुल्लू भर पानी उपलब्ध करा पाता। इसी तरह दाह संस्कार में भी कई बड़े राजनीतिक चेहरे उस दरिंदे को श्रद्धांजलि अर्पित करने पहुंचे। बिहार का इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है कि यहां ऐसे बेशर्म नेता पैदा हुए।
बहरहाल, हमारे नेताओं और डीजीपी ने रणवीर सेना के लोगों का मनोबल इतना बढ़ा दिया है कि वे निश्चित रूप से आगे बड़ी हिंसा करेंगे। और अधिक आग लगायेंगे। फिर हमारे महान नेता अपने घड़ियाली आंसू बहाते हुए उस आग में अपनी रोटी सकेंगे।
सुधीर
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