शुक्रवार, 9 मई 2014

आदर्श थाना बंदया

कुछ दिनों पूर्व यूपी में मुलायम सिंह के खास साथी और अखिलेश सरकार के मंत्री आजम खां की भैंसें सेलिब्रेटी बन गईं थीं। उसके पीछे का कारण भी आपको याद होगा। भैंसें खो गई थीं और उनको खोजने के लिए यूपी पुलिस दिन रात एक किए हुए थी। भैंस के साथ-साथ आजम खान भी काफी चर्चा में रहे थे। लेकिन हाय रे जेडीयू विधायक रणविजय कुमार की किस्मत! वे आजम खान से भी आगे निकल गए लेकिन कोई उनको नहीं पूछ रहा है। कहीं एक लाइन की चर्चा नहीं।
बंदया थाने का कार्यालय

हुआ यूं है कि उन्होंने अपने पुश्तैनी गांव बंदया में अपने गायों की रक्षा पर एक थाने को ही लगा दिया है। जी हां, एक थाना। बंदया थाना। गायों की देखभाल में कहीं कोई चूक न हो जाए, इसलिए थाना भी अपने तबेले में ही बनवा दिया है। दर्जनों पुलिसकर्मी दिन-रात गायों की निगरानी करते हैं। विधायक की एक शिकायत हो सकती है। गाय तो मादा होती है, लेकिन थाने में कोई महिला पुलिसकर्मी नहीं तैनात है।
अब मजाक नहीं। पहले ही बता चुका हूं कि यह बंदया थाना है। बिहार में गिना-चुना प्रखंड होगा जहां चार-चार थाने हों। लेकिन सत्तारूढ़ दल का विधायक होने का फायदा तो मिलता ही है। लिहाजा गोह के विधायक रणविजय कुमार ने गोह प्रखंड को इस मामले में विशिष्ट बना डाला। गोह प्रखंड में यह चौथा थाना है। यहां पहले पिकेट था।
अच्छा, थोड़ा सा ठहरिए। अगर आप रणविजय कुमार नहीं पहचानते हैं तो बता दें कि ये वही विधायक हैं जो करीब 7 साल तक जेल में समय बिताकर हाल ही में बाइज्जत बरी हुए हैं। आरोप भी कोई बड़ा नहीं था। बस एक हत्या का आरोप था। 2005 में चुनाव जीतने का ठीक से जश्न भी नहीं मना पाए थे कि जेल चले गए थे। 2010 के चुनाव के लिए नीतीश कुमार ने जेडीयू के तमाम नेताओं को परखा, लेकिन जेल में बंद रणविजय कुमार से अधिक सुयोग्य कोई और नहीं जंचा। लिहाजा 2010 में उन्हीं को टिकट मिला और जेल से ही चुनाव जीत गए। पिछले साल बाइज्जत बरी हो चुके हैं। लेकिन ये बातें मैं आपको क्यों बता रहा हूं। यह तो आप जानते ही होंगे।
जेल से निकलते ही जनता की भलाई के लिए विधायक ने पहला काम किया बंदया में थाना बनाने का।
ऐसे सोते हैं सुरक्षाकर्मी
गोह से रफीगंज मार्ग में करीब 5-6 किलोमीटर चलने के बाद बाएं से एक सड़क बंदया को जाती है। दूर-दूर तक खेत। जहां-तहां झाड़ियां। कभी-कभार तितिर आदि दीख सकते हैं। हॉलीवुड की तरह खेतों से गुजरती सड़क। रास्ते में एक दो राहगीर मिलेंगे। पूछते हुए पहुंचिए बंदया। विधायक का गांव है और ऊपर से भूमिहार बहुल। इसलिए बिजली की भी पहुंच है। गांव के पास पहुंचते ही आलीशान भवन दिखेगा। आपको लगेगा कि क्या शानदार थाना है। लेकिन जल्द ही आपका यह भ्रम दूर हो जाएगा। यह भवन माननीय महोदय का घर है। घर से सटे एक तबेला नजर आएगा। कई गायें बंधी हुई। कुछ लोग उसे चारा देते और गोबर हटाते दिखेंगे। गायों को नहलाने धुलाने का भी उपक्रम नजर आएगा। बस समझ लीजिए कि यही तबेला बंदया थाना है।
अब यह मत समझ लीजिए कि गायों की सेवा भी पुलिसकर्मी करते हैं। विधायक को इतनी समझ तो है ही कि पुलिसकर्मियों को तबेले में रखा जा सकता है लेकिन उनसे तबेले का काम नहीं कराया जा सकता। समझदार होने के भी दो कारण हैं। एक तो समाजवादी आंदोलनकारियों की पार्टी के विधायक हैं और दूसरे मगध यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हैं।
चलिए अब थाना देखते हैं। गाय, गोबर, गो मूत्र आदि हिंदू धर्म के कई प्रतीक आंगन में बिखरे पड़े मिलेंगे। आंगन में मिट्टी नहीं है। ईंट का सोलिंग किया हुआ है। आंगन पार कर बरामद में पहुंचिए। आधा बरामदा थाना कार्यालय है और आधे में लकड़ी का पटरा बिछाकर पुलिसकर्मी रहते हैं। ऐसा भी नहीं है कि सभी पुलिसकर्मी बरामदे में ही रहते हैं। पुलिस विभाग को इतना भी लापरवाह और गैरजिम्मेदार मत समझिए। कई पुलिसकर्मी यहां कच्चे-अधपक्के बने कमरों में भी रहते हैं। एक-एक कमरे में पांच से छह सिपाही। तबेले, माफ कीजिए, बंदया थाने की इस शानदार इमारत के पीछे काफी झाड़-झंखाड़ है। वहां से दो-तीन दिन पर खिड़कियों के रास्ते कोई न कोई सांप सिपाहियों से दोस्ती करने इन कमरों में आ धमकता है। शुक्र है कि किसी सांप ने सिपाही को दोस्ती में चूमा नहीं है। किसी खिड़की पर किवाड़ लगाने की जरूरत किसी ने नहीं महसूस की है।
यह है बंदया थाने का प्रांगण
बंदया थाने का शौचालय भी गर्मी के मौसम को देखते हुए काफी आरामदायक बनाया गया है। दरवाजे पर किवाड़ नहीं लगाया गया ताकि ताजा हवा आती-जाती रहे। लेकिन वो क्या है न कि सिपाही काफी शर्मिले हैं, इसलिए उन्होंने दरवाजे पर टाट लगा दिया है। किवाड़ का भी काम हो जाता है, और हवा भी आती-जाती रहती है। देखकर लगता है कि विधायक भी ऐसे शौचालय के तरसते होंगे।
पुलिसकर्मियों के स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेदिक उपाय किए गए हैं। गायों का सान्निध्य। ऊपर से गोबर और गो मूत्र की भरपूर सुगंध दिन-रात सभी सुरक्षाकर्मियों के फेफड़ों में भरती रहती है। थाना इकोफ्रेंडली है, इसलिए मक्खियां भी काफी हैं। इससे पहले कि सिपाही भोजन करें, मक्खियां भोजन की जांच करती हैं। जांच करने के एवज में फिर साथ में खाना खाती हैं। गाय का दूध इसलिए नहीं कह रहा हूं कि सिपाही उसका सिर्फ दर्शन करते हैं, दुहाते समय। दुहाने के बाद गायें यहीं रह जाती हैं और दूध विधायक के बंगले में शिफ्ट हो जाता है।
इसी तबेले में है बंदया थाना
वैसे यहां मच्छर भी काफी हैं। लेकिन, उनके भी फायदे हैं। सभी जवान रात में पहरेदारी छोड़कर सो न जाएं, इसके लिए मच्छर रखे गए हैं। वे जवानों को रात भर अलर्ट करते रहते हैं।
पानी के मामले में भी सिपाहियों को गोमाता के बराबर मान दिया गया है। जिस चापाकल के पानी से गोमाता नहाती हैं और प्यास बुझाती हैं, वही चापाकल सिपाहियों के भी काम आता है। समाजवाद का शायद यह चरम है, जिसे नीतीश कुमार के ही एक विधायक ने साकार कर दिया।
कभी मौका मिले तो बंदया थाना नाम के इस पर्यटन स्थल की सैर जरूर कर आइये। दिल से दुआ है कि देश के सभी थानों को बंदया थाना से प्रेरणा लेकर वैसा ही बना देना चाहिए।
सुधीर

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