सावन आते ही शंकरजी के भक्त शिवमंदिरों में उमड़ पड़े हैं। मुहल्ले से
लेकर देवघर और फिर अमरनाथ तक। मुहल्ले वाले शंकरजी का भाव जो सालों भर रहता है,
उससे थोड़ा ही बढ़ पाता है। आस्थावान भक्त देवघर या फिर अमरनाथ वाले शंकरजी के पास
जाना पसंद करते हैं।
काफी अधिक छानबीन करने पर पता चला है कि दरअसल मुहल्ले वाले शंकरजी कम
पावर के होते हैं। जाहिर सी बात है कि मंदिर छोटा है तो शंकरजी का पावर भी कम ही
रहेगा। यूं समझ लीजिए कि मुहल्ले के शंकरजी 12 वोल्टेज के हैं, अगल-बगल के मंदिर
वाले 24 वोल्टेज के, देवघर वाले 36 वोल्टेज के और अमरनाथ वाले को आप एक सोलर
प्लांट के बराबर पावर वाले शंकरजी हैं। घर के कैलेंडर वाले को तो कोई पूछता भी
नहीं, क्योंकि सबको पता होता है कि उनमें पेंसिल बैट्री के बराबर भी पावर नहीं है।
हो सकता है कि कुछ भक्त इसपर विश्वास नहीं करें। लेकिन यह तो देखने की
चीज है। आखिर सभी शंकरजी बराबर वोल्टेज के ही होते तो कोई अधिक कष्ट उठाकर, अधिक
पैसे खर्च करके मुहल्ले वाले को छोड़कर देवघर और अमरनाथ क्यों जाता?
अलग-अलग शंकरजी का भक्तों से उम्मीदें भी अलग-अलग तरह की होती हैं।
जैसे मुहल्ले वाले शंकरजी को आप कुएं या चापाकल का पानी भी चढ़ा सकते हैं। वहीं
देवघर वाले शंकरजी केवल गंगाजी का पानी पसंद करते हैं। अमरनाथ के शंकरजी किसी भी
तरह के पानी को चढ़ाया जाना पसंद नहीं करते।
मुहल्ले के शंकरजी के पास आप पैदल, साइकिल से या किसी तरह जा सकते
हैं। देवघर वाले शंकरजी चाहते हैं कि भक्त सुल्तानगंज तक चाहे जैसे आएं लेकिन
सुल्तानगंज से देवघर तक पैदल ही आएं। पैदल आनेवाले भक्तों का भी शंकरजी ने दो वर्ग
बना दिया है। जिन्हें बड़ा वरदान या तुरंत वरदान चाहिए उन्हें डाकबम के नाम से 24
घंटे में पहुंचना होता है, बाकी के लिए कोई पूरा सावन पड़ा है। हालांकि यह अभी तक
पता नहीं चल सका है कि उस भारी भीड़ में देवघर वाले शंकरजी डाकबम और साधारण भक्तों
का रजिस्टर मेंटेन कैसे करते हैं। वहीं अमरनाथ वाले बर्फानी बाबा के पास भक्त किसी
भी तरह से पहुंच सकते हैं। हालांकि वहां पहुंचने के लिए भक्त बर्फानी बाबा से अधिक
चीन सरकार के मोहताज हैं।
शोध में यह भी पाया गया है कि बाकी दिनों की अपेक्षा सोमवार को शंकरजी
वरदान देने और मनोकामना पूरा करने के मूड में अधिक होते हैं। सावन में शंकरजी फुल
चार्ज रहते हैं। सावन में शंकरजी यह भी देखते रहते हैं कि कहीं कोई भक्त मांस-मछली
तो नहीं खा रहा है। बाकी दिन खाते-पीते रहने से शंकरजी कोई लेना-देना नहीं है।
एक खास बात यह भी पता चला है कि शंकरजी को अपने पूरे शरीर पर पानी
डलवाना बिल्कुल भी पसंद नहीं है। वे चाहते हैं कि भक्त और भक्तिन केवल उनके लिंग
पर ही पानी डालें।
शोध में एक बात सामने आई कि पिछले साल केदारनाथ वाले शंकरजी और इंद्र
महाराज में झगड़ा हो गया। इंद्र भारी पड़े। शंकरजी ने अपना घर तो बचा लिया, लेकिन
भक्तों को बचा पाने में विफल रहे। उनके आस-पास के कई कम वोल्टेज वाले देवी-देवता
भी इंद्र के कोप में बह गए। यूं कह लीजिए कि गेहूं के चक्कर में घुन पिस गया,
गेहूं बच गया।
पावर की बात केवल शंकर भगवान तक ही सीमित नहीं है। यह बाकी देवताओं पर
भी लागू होता है। जैसे घर में भी हनुमानजी की मूर्ति होती है या फिर कैलेंडर होता
है। लेकिन बात वही वोल्टेज की है। मंदिर वाले हनुमानजी अधिक वोल्टेड के होते हैं।
इनका वरदान देने का मूड मंगलवार के दिन अधिक होता है। शोधार्थियों के अनुसार
रामनवमी के दिन हनुमानजी फुल चार्ज रहते हैं।
फुल रिचार्ज के मामले में बाकी देवी-देवताओं ने साल में अपना एक-एक
दिन बना रखा है। जैसे कृष्ण जी की पूजा आमतौर पर लोग सालों भर करते रहते हैं। भजन
कीर्तन भी करते रहते हैं। साथ में भक्त अपनी फरमाइश, दुख-तकलीफ आदि भी बताते रहते
हैं। लेकिन जन्माष्टमी के दिन कृष्णजी फुल रिचार्ज रहते हैं। उस दिन भक्त अपनी
फरमाइश जरूर बताते हैं। यहां तक कि रोज दिखने वाले सूर्य देव भी अपना वरदान वाला
अटैची केवल छठ में ही खोलते हैं।
दुर्गा, काली, सरस्वती, लक्ष्मी, गणेश आदि भी साल में एक बार फुल
चार्ज होकर वरदान देते हैं। शोधार्थियों का एक दल सरकार से मांग करनेवाला है कि
परीक्षाएं सरस्वती पूजा के दिन ली जाएं। कई भक्तों को जब स्थानीय देवी-देवताओं के
वोल्टेड पर भरोसा नहीं रहता तो वे वैष्णो देवी तक जाते हैं।
नए देवताओं में भी यह प्रवृति बढ़ी है। जैसे साईं बाबा का कैलेंडर से
वरदान का केवल डेमो मिलता है। पूरा वरदान सिरडी जाने पर मिलता है।
ऐसा नहीं है कि ऐसा सिर्फ हिंदुओं में होता है। मुस्लिम रमजान में
रोजा रखें या सालों भर पांचों वक्त का नमाज अदा करें, लकिन उन्हें अल्लाह अपनी
इनायत का डेमो वर्जन ही देता है। फुल वर्जन पाने के लिए उन्हें हज करनी पड़ती है।
हिंदू देवताओं की तरह अल्लाह शुक्रवार यानी जुम्मा के दिन फुल चार्ज होता है।
मस्जिद में नमाज पढ़ने पर डायरेक्ट खुदा से कनेक्शन जुड़ता है, कहीं दूसरी जगह से
पढ़ते हैं तो यह एक्सटेंशन की तरह होता है। यानी खुदा ध्यान दे भी सकता है और नहीं
भी। ऐसा भी कह सकते हैं कि मस्जिद में नमाज पढ़ने पर खुदा अधिक वोल्टेज से इनायत
बरसाता है और दूसरी जगह से नमाज पढ़ने पर कम वोल्टेज का। शुक्रवार के दिन खुदा फुल
चार्ज रहता है।

शोध की बाकी बातें बाद में। तो आप भी पूजा कीजिए, लेकिन देख लीजिए की
आप जिसकी पूजा कर रहे हैं, उस देवी या देवता या अल्लाह या यीशु का वोल्टेज कितना
है और वे फुल चार्ज हैं कि नहीं। वरदान मिलना तय है। फुल वर्जन न सही, डेमो वर्जन
ही। और हां, देवी-देवताओं के मामले में किसी भी बात को मजाक में न लें।
सुधीर
2 टिप्पणियां:
हा हा हा
मजेदार प्रस्तुति
बहोत बढ़िया सुधीर जी
Mr sudhir kya aap k ghr wale puja nhi krte hai festival nhi manate hai aap nhi krte ho gai aap ki ma to zaroor krti ho gi aap ko v dekha gya hai chat ki puja m itna hi nafrat hai dharm se to mt puja kre ghar walo k sath iss duniya m hr kam log dharm k anusar hi krte hai chahe wo namkaran ho ya maut dharm ki riti riwaz k anusar hi karyakram hota hai aap ka god se ladna faltu hai logo ki bhalayi k bare m soche gribi khatam kaise ho?desh m unity kaise banayi jay desh ki tarakki kaise ho iske bare m soche aur kam kre han ek aur baat mujhe pata hai ki aap hindu religion se belong krte hai jis dharm m chua chut unch neech zat pat hai wo sahi rah nhi dikhata sahi rasta khojiya dil se aap ko duniya kya hai pata chal jay ga
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