शनिवार, 24 सितंबर 2011

भूखे-नंगे अमीरों का देष



आखिर कांग्रेस ने अपना दषकों पुराना वादा काफी हद तक पूरा कर दिया। वही, गरीबी मिटाने का वादा। वह भी रातोंरात। गरीबी हटाने का ऐसा शानदार फाॅर्मूला पष्चिमी देष भी सोनिया-मनमोहन सरकार से सिख सकते हैं। हर्रे लगे न फिटकिरी रंग भी चोखा।

बहुत समय नहीं गुजरा, जब इसी सरकार के एक मंत्री, जो अब पूर्व मंत्री कहलाते हैं, ने कहा था उच्च मध्यवर्ग की तुलना भेड़ बकरियों से की थी। उन्होंने कहा था कि हवाई जहाज के इकोनोमी क्लास में तो भेड़ बकरियां चलतीं हैं। यह सबको पता है कि हवाई जहाज में यात्रा करने की हैसियत देष के कितने फीसदी लोगों की है। जब हवाई जहाज से यात्रा करने वालों की हैसियत सरकार के एक मंत्री की नजर में भेड़ बकरियों की है, तो सरकार की नजर में बस व पैदल यात्रा करने वालों की हैसियत क्या होगी?
फिर भी सरकार को अपना वादा तो निभाना था ही। अभी यह वादा और देर से निभाया जाता। परंतु, क्या करें सुप्रीम कोर्ट का भी। उसने भी पूछ डाला कि उसके राज में कितने गरीब हैं और वे किस आधार पर गरीब हैं। इसी बहाने सरकार को भी यह बताने का मौका मिल गया कि उसने कितनी गरीबी मिटा दी है। एक ही झटके में उसने बता दिया कि अब भूखे नंगे सभी अमीर हो गये हैं।
देष की जनता कह रही है कि वह अभी भी गरीब ही है। उसके तन पर कपड़े नहीं हैं। बच्चों के पास किताबें नहीं हैं। रहने को घर नहीं है। दवा के लिए पैसे नहीं हैं। वह गरीब है और उसे इस महान लोक कल्याणकारी सरकार की मदद की जरूरत है। लेकिन अमीरी-गरीबी की बात अर्थषास्त्र की है। अब कोई इन भूखे नंगों की बात सही माने या फिर महान अर्थषास्त्री मनमोहन सिंह और पी चिदंबरम की। तय सी बात है कि मनमोहन सिंह जब भूखे नंगों को बता रहे हैं कि वे अब अमीर हो चुके हैं तो सही ही कह रहे होंगे।
जनता कह रही है वह भूमिहीन है। उसके पास रोजगार नहीं है। घर नहीं है। अन्न नहीं है। दवा के लिए, षिक्षा के लिए पैसे नहीं हैं। एक कपड़े पर पूरा साल गुजारना पड़ रहा है। परंतु, हमारी विद्वान व समझदार सरकार सब समझती है। उसने पहले ही काफी पता लगा लिया है। उसके पास सबसे मजबूत तर्क तो यह है कि दिन-रात इतनी महंगाई बढ़ाने के बावजूद जो जिंदा बच गया वह गरीब कैसे हो सकता है? 
वैसे सरकार की चिंता को जनता समझने को तैयार नहीं। सरकार देष को हर हाल में देष को विकसित देष बनाना चाहती है। उसे पता है कि विकसित देषों में गरीब नहीं होते। इसका भी हल इसी फाॅर्मूले से निकल गया। अब मनमोहन सिंह संयुक्त राष्ट््र में भी सिर उठाकर कह सकते हैं कि उनके यहां का भूखे, नंगे व भिखारी भी अमीर हैं। उनके देष में अब बहुत खोजने पर ही गरीब मिलेंगे।
सोनिया-मनमोहन एंड कंपनी को पता लग चुका है कि देष को अमीर बनाने के लिए पूरी जनता को अमीर बनाना ही होगा। उन्हें अभी देष को चलाने के लिए कोष चाहिए। कोष को तो राजा, कलमाड़ी, शीला आदि ने खाली कर दिया है। आखिर देष का विकास बिना पैसे के कैसे हो। भूखे नंगों को अमीर बना देने से यहां दो फायदे हो रहे हैं। एक तो अब गिने-चुने लोगों को ही सब्सिडी मिलेगी। दूसरा फायदा कि अगली बार जब जनता की आर्थिक स्थिति का आकलन होगा तो भूखे-नंगों से भी इनकम टैक्स लिया जाएगा।
सरकार को अन्ना हजारे के आंदोलन से समझ में आया है कि जनता ऐष का जीवन जी रही है। उसके सूत्रों ने बताया है कि अन्ना के आंदोलन में इतनी बड़ी संख्या में षिरकत करने के पीछे भी अमीरी का ही हाथ है, जिससे सरकार अनजान थी। उसके सूत्रों ने बताया कि लोग 20-30 रुपये प्रतिदिन की आमदनी में ही इतना ठाट से हैं कि काम करने से जी चुराने लगे हैं। काम से जी चुराने का ही परिणाम है कि लोग अन्ना के आंदोलन में शामिल हुए हैं। ऐसे में उन्हें अमीर कैसे नहीं माना जा सकता है। वैसे भी जब प्रधानमंत्री राजा, शीला, कलमाड़ी, अषोक च्वहाण को भ्रष्ट नहीं मानते तो आम जनता को उन्हें दोषी मानने का क्या हक है? आखिर अधिक विद्वान कौन है- भूखी नंगी जनता या विदेषों में पले बढ़े प्रधानमंत्री?
फिर प्रधानमंत्री और आम जनता में फर्क रहना चाहिए कि नहीं? अभी मनमोहन सिंह के जीवनयापन पर प्रतिदिन का खर्च करीब 35 लाख रुपये है। तो क्या जनता इतनी खर्च करके अमीर होगी? 
फिलहाल तो भूखे नंगों का समाज में रूतबा जिस तरह से सरकार ने बढ़ा दिया, उन्हें सरकार का शुक्रगुजार होना चाहिए। अब वे भी समाज में सीना तानकर कह सकते हैं कि वे भी अमीर हैं। अगर किसी कार वाले ने किसी भिखारी को हिकारत से देखा तो वह भी तुरंत पलटकर जवाब दे सकता है- देखता क्या है बे? मैं भी अमीर ही हूं। मेरी आमदनी 32 रुपये से काफी अधिक है।
तो अब सोनिया-मनमोहन सरकार धन्यवाद दीजिए कि विष्व में भारत की शान बढ़ाने में इतना जोर-षोर से लगे होने के बावजूद अभी तक भूखे सोने और नंगे रहने पर टैक्स नहीं लगाया है, जबकि वे अमीर हो चुके हैं।

सुधीर


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