बुधवार, 7 सितंबर 2011

क्यों बढ़ रहे आतंकियों के हौसले


आतंकियों ने दिल्ली हाई कोर्ट पर भी बम विस्फोट कर दिया। सरकार व सुरक्षा एजेंसियों के सुरक्षा के दावे महज लफ्फाजी साबित हुए। इसके बाद सरकार एवं उसकी एजेंसियों ने पिछले हादसों की प्रतिक्रिया को हूबहू दुहराने लगी। हमेषा की तरह गृहमंत्री ने रटा-रटाया बयान दिया, जो अब तक आधे से अधिक भारतीयों को याद हो चुका है- यह आतंकी कार्रवाई है। हम इसमें संलिप्त लोगों को धर दबोचेंगे। दोषियों के विरूद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इसके बाद संसद की औपचारिकता पूरी करने के लिए विपक्ष की ओर से लालकृष्ण आडवाणी ने घटना की निंदा करते हुए मृतकों व घायलों के प्रति अफसोस प्रकट किया।
इस तरह के आतंकी हमले पिछले तीन-चार साल से काफी बढ़ गये हैं। लेकिन आज तक कितने दोषियों को पकड़ा जा सका? कितने हादसों के रहस्य से पर्दा उठा? कितने लोगों को सजा हुई? सबका जवाब शून्य में मिलता है। संसद पर हमले का मास्टर माइंड अफजल गुरू को पकड़ा गया। उसे तमाम अदालतों ने फांसी की सजा सुना दी। मुंबई हमले में एकमात्र पकड़े गये कसाब को भी फांसी की सजा हो चुकी है। लेकिन दोनों की सरकार की मेहमाननवाजी का लुत्फ उठा रहे हैं।
दिवंगत राजीव गांधी के हत्यारों की फांसी पर राजनीति शुरू हो चुकी है। अब अफजल गुरू को भी राजनीति की कवच से बचाने की कवायद की जाने लगी थी। आज जो नेता उन्हें बचाने में लगे हैं, अफजल की टीम से उनहीं की रक्षा करते हुए दर्जन भर जांबाज सुरक्षाकर्मी शहीद हो गये थे। अब जब अफजल को बचाने की गंदी राजनीति की जा रही है, शहीदों की आत्मा निष्चित रूप से कह रही होगी- अच्छा होता, उस दिन आतंकी अपने मंसूबे में सफल हो जाते।
कटु सत्य है कि हमारे नेता आतंकी हमलों को एक सामान्य दुर्घटना और आतंकवादियों को एक सामान्य अपराधी से अधिक नहीं मानते। इसके कई उदाहरण भरे पड़े हैं, जो साफ बताते हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा उनके लिए कभी भी गंभीर मुद्दा नहीं रहा। अभी सबको याद होगा, चंद दिन पहले जब मुंबई में सिरियल ब्लास्ट हुआ तब हमाने लोकतंत्र के कथित सर्वोच्चाधिकार प्राप्त कई माननीय एक फैषन परेड मंे माॅडलों की नंगी टांगों का मजा ले रहे थे। पत्रकारों ने जब उनसे सवाल किया तो जो सबसे बेषर्मी भरा जवाब हो सकता था, दिया- ऐसी घटनाएं तो होती रहती हैं। अंदाजा लगाइये कि हमारे नेता के लिए आतंकी हमले में आम आदमी का मारा जाना कितना मायने रखता है।
जब भी सरकार से अफजल गुरू की फांसी में विलंब का कारण पूछा गया, एक ही जवाब था- अभी अफजल से पहले के कई अपराधी की याचिका पर विचार हो रहा है। विचार करने के लिए अभी अफजल का नंबर ही नहीं आया है। सरकार का यह बयान जाहिर करता है कि उसकी नजर में देष में आतंक फैलाने वाले दहषतगर्द और दूसरे अपराधियों में कोई अंतर नहीं है। यह आज तक देष की जनता नहीं समझ सकी कि आखिर जिसे सभी अदालतों ने गंभीर आतंकी मानते हुए फांसी की सजा सुनायी, उसके बारे में सरकार कितने साल विचार करना जरूरी समझेगी और क्या विचार करेगी?
अगर ये कम हैं तो याद कीजिए पूर्व गृहमंत्री शिवराज पाटिल को। जब एक के बाद एक विस्फोट हो रहे थे, उनकी प्रतिक्रिया कितनी गंभीर थी। देश लहुलुहान था और वे अपने कपड़ों की नुमाइश कर रहे थे। अगर यह भी कम है तो दिग्विजय सिंह को याद कर लीजिए। मुंबई में सबसे बड़े हमले के दौरान हेमंत करकरे के महान बलिदान को किस तरह उन्होंने मजाक बनाने का कुकृत्य किया था। देश उनकी शहादत पर गौरव के आंसू बहा रहा था और कांग्रेस को उनके बलिदान में सांप्रदायिकता नजर आ रही थी। अब तो आतंकी संगठन यह भी समझने लगे होंगे कि भारत में उनके हमले को आतंकी हमला मानने के बजाय उसे सांप्रदायिक हमला माना जा सकता है। इससे आतंकी कितने भयभीत होंगे?
हमारे नेता जानते हैं कि जनता दूसरे बम विस्फोटों की तरह इसे भी चंद दिनों में भूल जाएगी। कुछ नेता इस घटना पर अपनी रोटी भी सेंकेंगे। फिर रोजमर्रा की तरह जीवन चलने लगेगा। आतंकी फिर हमला करेंगे और फिर यही प्रक्रिया दुहरायी जाएगी। अगर ऐसा नहीं होता तो आखिर क्यों कपिल सिब्ब्ल भूल्लर जैसे आतंकवादी को बचाने के लिए मुकदमा लड़ते। जिस भूल्लर ने निर्दोषों के खून की नदी बहा दी, उसे बचाने के लिए देश का सबसे प्रभावशाली नेता मुकदमा लड़ता है। दिल्ली की प्रधानमंत्री शीला दीक्षित भूल्लर की मां को सोनिया से मिलवाने ले जाती हैं। वही शीला आज घडि़याली आंसू लेकर राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भी विस्फोट में घायलों से मिलने पहुंच जाती हैं। हमारे नेताओं का वास्तविक चरित्र का ये सब उदाहरण हैं। इस खेल में बीजेपी भी पीछे नहीं है। अभी राजीव गांधी के हत्यारों की फांसी रद्द करवाने की मुहिम में बीजेपी सांसद राम जेठमलानी सबसे आगे हैं। वे पहले भी इंदिरा गांधी के हत्यारों का मुकदमा लड़ चुके हैं। ऐसे नेताओं से आतंकवाद के विरूद्ध कोई कठोर कदम उठाने की बात सोचना भी मूर्खता है।
दूसरी ओर आतंकी धीरे-धीरे समझने लगे हैं कि पहले तो उनका पकड़ा जाना ही काफी मुश्किल है। दर्जन भर  आतंकी हमले होते हैं तो एक-दो आतंकी पकड़ में आते हैं। जो पकड़े जाते हैं, उनकी हिफाजत सरकार किसी भी वीआईपी से अधिक करती है। बाहर किसी मुठभेड़ में भले ही मारे जाएं, पकड़े जाने के बाद उनका बाल भी बांका नहीं हो सकेगा। आतंकी इस बात को भलीभांति समझ चुके हैं कि इस देष में सांसद और जेल में बंद आतंकी ही सबसे अधिक सुरक्षित हैं। उन्हें  पता है कि इस देश का आम आदमी भले ही भुखमरी का षिकार हो रहा हो, उनके उपर सरकार प्रतिवर्ष अरबों रुपये खर्च करेगी ही। वह रकम जिसे आम जनता अपना पेट काटकर सरकार को टैक्स के रूप में देती है।
इसमें इन पंक्तियों को लिखे जाने तक ग्यारह निर्दोष नागरिकों की मौत हो चुकी है और 50 से अधिक घायल हैं। इनमें कई की हालत गंभीर है। सभी नेताओं को पता है कि मरने वालों में न तो कोई सांसद या विधायक है और न ही उनके रिष्तेदार। सभी मरने वाले और घायल आम आदमी हैं।
वास्तव में हमारे नेताओं ने ऐसा माहौल तैयार कर दिया है, जो आतंकियों को डराने के बजाय उन्हें बार-बार हमला करने को उसकाता है। दर्जन भर हमला करने के बाद एक दो ही पकड़े जा सकेंगे। उन्हें दंडित करने के बजाय उनकी सुरक्षा को सुनिष्चित करता है। उनमें भय पैदा करने के बजाय सरकार की मेहमाननवाजी की गारंटी देता है।

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