सोमवार, 5 सितंबर 2011

संसद किससे शर्मसार



अन्ना हजारे का अनषन खत्म होते ही उनके सहयोगियों एवं समर्थकों को संसद की अवमानना का नोटिस ताबड़तोड़ दिया जा रहा है। संसद सदस्यों का आरोप है कि उनके बयानों से संसद का अपमान हुआ है। परंतु, हमारे लोकतंत्र के मुख्यालय संसद को किसकी वजह से बार-बार शर्मसार होना पड़ा है, यह सभी जानते हैं। कभी गालीगलौच कर, कभी वोट के लिए पैसे देकर, कभी सवाल पूछने के लिए पैसे लेकर हमारे माननीयों ने संसद को इतना  अधिक कलंकित कर दिया  है, जिसका दाग शायद ही कभी छूटे। फिर भी जिस तरह से हमारे सांसद टीम अन्ना पर संसद की अवमानना का आरोप लगा रहे हैं, ऐसी बेषर्मी की मिसाल शायद ही कहीं मिले।
दरअसल चुनाव जीतने के बाद सांसदों की आंखों पर चर्बी की मोटी परत जम जाती है। क्षेत्र में आने पर जिस तरह उनके चमचे-बेलचे उनकी जयकार करते हैं, इसे वह जनता की आवाज मान लेते हैं। परंतु, जनता की नजर में उनकी छवि कैसी है, यह सांसदों को छोड़कर सबको पता है। अगर जनता के बीच कोई सांसद यह कहे कि वह एकदम ईमानदार है और उसने कभी कोई बेईमानी नहीं की है, तो जनता के लिए इससे बड़ा चुटकुला शायद ही कोई हो। 
सभी जानते हैं कि देष में भ्रष्टाचार के सबसे बड़े स्रोतों में से एक सांसदों की ऐच्छिक निधि है। इसमें उपर से नीचे तक कमीषन तय है। यह पैसे सांसदों को अपने क्षेत्र के विकास के लिए दिया जाता है, लेकिन इसमें किसका विकास अधिक होता है, सबको पता है। आज तक संसद द्वारा इसपर लगाम लगाने की एक बार भी बात नहीं की गयी। 
लोकपाल जैसे मुद्दे 42 सालों तक धूल फांकते रहते हैं और विदेषी कंपनियों तथा पूंजीपतियों के हितों वाले कई बिल एक ही सत्र में पारित हो जाते हैं। ऐसा क्यों होता है, यह अब कोई रहस्य नहीं रहा। एक स्टींग आॅपरेषन ने पूरी दुनियां को बता दिया कि भारतीय सांसद कितनी जगहों पर बिक सकते हैं। उसी से पता चल गया था कि संसद में जनता से जुड़े सवाल क्यों नहीं पूछे जाते हैं। जिस देष में सवाल पूछना भी संसद सदस्यों का साइड बिजनेस हो, उस संसद का अपमान क्या और सम्मान क्या। राजनीतिक दल कह सकते हैं कि ऐसे सांसदों को निष्कासित कर दिया गया था। लेकिन इसका जवाब क्या उनके पास है कि इससे पहले न जाने कब से कितने सांसद इस शर्मनाक खेल में शामिल हैं, उनको क्या किया गया? ऐसा आगे नहीं हो, इसके लिए संसद ने क्या किया? ऐसा तो हो नहीं सकता कि इस मामले में लिप्त सौ फीसदी सांसद स्टींग आॅपरेषन में पकड़ में आ गये थे। और फिर पूरी दुनियां में भारतीय संसद को शर्मसार करने वाले को निष्कासित कर देना क्या पर्याप्त सजा है? कांग्रेस के ही शासन में बहुमत हासिल करने के लिए जिस तरह से झामुमो रिष्वत कांड हुआ था, उसे लोग भूले नहीं हैं। हमारे ऐसे सांसदों को अगर प्रषांत भूषण ने बिकाउ कहा तो इसमें गलत क्या है?
हमारे कौन से नेता कब अपना ठिकाना बदल लें, इसका कोई ठिकाना नहीं। यहां रातोंरात समर्थक, विरोधी और विरोधी, हो जाते हैं। संसद में ही बैठे-बैठे बिना किसी सर्जरी के उनका हृदय परिवर्तन हो जाता है। कांग्रेस के विरोध से पैदा हुए लालू व रामविलास सत्ता की मलाई खाने के लिए उसे पलकों पर बिठा लेते हैं। डीएमके को राजीव गांधी की हत्या में संलिप्त बताते-बताते कांग्रेस उसकी सहेली बन जाती है। नीतीष कुमार एक दिन नरेंद्र मोदी को खाने पर आमंत्रित करते हैं और दूसरे दिन उनके साथ अपना फोटो देखकर भड़क जाते हैं। सोनिया गांधी के नाम पर कांग्रेस से बगावत करने वाले शरद पवार को वह अचानक सबसे योग्य नेता नजर आने लगती है। मुलायम और मायावती के बीच कितनी बार दोस्ती व दुष्मनी हुई, इसे गिनना भी मुष्किल है। अमर सिंह को आज मुलायम सबसे बुरे नेता नजर आते हैं। उमा भारती अचानक भाजपा को पानी पी पीकर कोसते-कोसते फिर उसी के पहलू में जा बैठती हैं। 
अगर इसमें दलबदलू नेताओं को जोड़ा जाए, तो यह आंकड़ा शायद ही कभी रूके। हद तो यह कि कांग्रेस को अन्ना जैसा निष्कलंकित व्यक्तित्व भी कभी सबसे भ्रष्ट नजर आता है। कांग्रेसी नेता पहली बैठक में टीम अन्ना के साथ कई मुद्दो पर सहमति जताते हैं और अगली बैठक में मुकर जाते हैं। बाबा रामदेव रातोंरात देषभक्त से देषद्रोही साबित किये जाने लगते हैं। क्या ऐसे में कोई भी इन नेताओं का असली चेहरा पहचान सकता है? किरण बेदी ने अगर उन्हें कई मुखौटों वाला कहा तो क्या बुरा कह दिया।
हमारे आधे से अधिक सांसद आपराधिक मामलों में अभियुक्त हैं। बड़ी संख्या उनकी भी है, जिन पर गंभीर आरोप हैं। यह भी बताने की जरूरत नहीं कि संसद में ही कई बार उनकी तूतू मैंमैं गाली गलौच तक पहुंच जाती है। संसद में साधु यादव की हरकत को कौन भूला होगा? कई बार हमारे सम्मानित सांसदों को मार्षलों के हाथों जबरदस्ती बाहर किया जा चुका है।
बोफोर्स घोटाला के सूत्रधार को यहां भारत रत्न से सम्मानित किया जाता है। काॅमनवेल्थ गेम घोटाला उजागर होने के बाद भी लूट का खेल जारी रहता है। इसी घोटाले के सह आरोपित को मुख्यमंत्री बने रहने की क्लीन चिट मिल जाती है। टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला करने वाले को खुलासा होने के बावजूद तब तक मंत्री बनाकर रखा जाता है, जब तक कि सुप्रीम कोर्ट सरकार को बार-बार फटकार नहीं। हवाला घोटाला करने वाले देष के सबसे बड़े सम्मानित नेता बन जाते हैं। ऐसे दुष्कर्म करने वाले सांसद आज सिविल सोसाइटी पर संसद की अवमानना का आरोप लगा रहे हैं। सांसदों ने अन्ना के आंदोलन के दौरान जो भी आचरण किया, वह इस बात को बल देता है कि वे अभी देष को और लूटना चाहते हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो वे खुद आगे बढ़कर सांसदों के आचरण की जांच किसी भी स्वतंत्र एजेंसी से करवाने को तैयार रहते। 
वैसे सारे तथ्य इस बात की ओर इषारा करते हैं कि यह संसद की अवमानना का मामला नहीं है बल्कि यह जनता के बीच अपनी पोल खुलने से घबराये सांसद अपना आपा खो बैठे हैं। उन्हें जो सिविल सोसाइटी के सदस्यों ने कहा वह नया नहीं है। नया सिर्फ इतना है कि पहली बार किसी ने सांसदों की आंखों में आखें डालकर उनकी हकीकत बतायी है। इसी से वे तिलमिलाये हुए हैं। नहीं तो इससे पहले अनगिनत बार हमारी फिल्मों में नेताओं को चोर, भ्रष्ट, बलात्कारी, रिष्वतखोर, जाहिल, अनपढ़, नालायक, पाखंडी और देषद्रोही बताया जा चुका है। परंतु, वह किसी नेता की आंखों में आंखें डालकर नहीं कहा जाता। दूसरी बात यह कि वैसा कहने वाले प्रायः उन्हीं नेताओं के आगे नतमस्तक रहते हैं। यह भी खुली बात है कि कई नेताओं और फिल्मकारों में अन्योन्याश्रय संबंध है।
सिविल सोसाइटी अपने उपर लगाये गये आरोपों का जवाब देने के लिए तैयार है। अगर सांसद खुद की हरकतों पर नजर डाल लें तो उन्हें किसी से जवाब नहीं मांगना पड़ेगा।

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