आज 28 सिंतंबर को विश्व के सबसे महान बौद्धिक क्रांतिकारी शहीदेआजम भगत सिंह की जयंती है। सबसे अफसोसजनक यह रहा कि किसी भी मीडिया ने इसे ध्यान देना उचित नहीं समझा। टीवी समाचारों में भी कहीं जिक्र नहीं। क्या यह भगत सिंह को भूला देना है?

अब जब भगत सिंह की रचनाओं के माध्यम से हमें उनके चिंतन व बौद्धिकता का पता चलने लगा है, बिना शक के कह सकते हैं कि वे इस युग के सर्वश्रेष्ठ चिंतकों में से एक थे। अंग्रेजों ने उनकी हत्या कर एक महान चिंतक से इस भारत व विश्व को वंचित कर दिया। परंतु जैसा कि गांधी के खास एक बड़े कांग्रेसी नेता ने खुद स्वीकार किया था भगत सिंह की लोकप्रियता किसी भी मायने में गांधी से कम न थी। यह स्थिति तब थी जब गांधी के साथ तमाम मीडिया घराने व बिरला जैसे पूंजीपति थे।
पिछली सदी के दूसरे दशक से ही भगत सिंह उस समय के कथित बड़े नेताओं को अप्रिय लगने लगे थे। आखिर ऐसा क्या सिर्फ हिंसा की वजह से था?
नहीं। भगत सिंह ने खुद लिखा है- इन्कलाब का अर्थ वह नहीं है, जो आम तौर पर समझा जाता है। बम और पिस्तौल इन्कलाब नहीं लाते। इन्कलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है। लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए सैंडर्स की हत्या के बाद चिपकाये गये पर्चे में उन्होंने अंकित किया था कि वे मानव जान की कीमत जानते हैं, परंतु ऐसा करना आवश्यक हो गया था। अगर भगत सिंह हिंसक होते तो असेंबली में बम खाली जगह में फेंकने के बजाय वहां बैठे लोगों पर फेंक सकते थे।
भगत सिंह पर खून का सिर्फ एक इल्जाम था- सैंडर्स की हत्या। अगर वे ंिहंसक होते तो और भी कई जानें ले सकते थे। यह सच है कि वे इन्कलाब के लिए बम व पिस्तौल का इस्तेमाल करने से बिल्कुल इंकार नहीं करते थे। इसके पीछे उनका खासा चिंतन था। वे खुद को महाराणा प्रताप, शिवाजी, करतार सिंह सराभा आदि का वंशज मानते थे। उनके बम व पिस्तौल के इस्तेमाल को लेकर गांधी ने यंग इंडिया में कल्ट आॅफ दी बम नाम से एक आलेख लिखकर उनकी काफी आलोचना की थी। गांधी के आरोपों का जवाब में भगत सिंह ने अपने आलेख बम का दर्शन में दिया है। भगत सिंह इसमें लिखते हैं- मेरा तो सीधा सा दर्शन है, जो हमें लूट रहा है, हमारे देश को नुकसान पहुंचा रहा है, हमारे नेताओं की हत्या कर रहा है, वह हमारा दुश्मन है। यह तो प्रकृति का नियम है। जो हमें नुकसान पहुंचाए वह दुश्मन होता है। महात्माजी का दर्शन प्रकृति के विरूद्ध है। वे कहते हैं कि मित्रता द्वारा अंग्रेजों का हृदय परिवर्तन कर देंगे। वे बताएं कि अभी तक वे कितने सैंडर्स, जनरल डायर आदि का हृदय परिवर्तन कर सके हैं।
भगत ंिसंह ने अपनी इस रचना में गांधी को अनुत्तरित कर दिया है। हालांकि वे और उनके सभी साथी गांधी की पूरी इज्जत करते थे। इसका उल्लेख उन्होंने सदा किया है। यहां तक कि जिस लाजपर राय की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह और उनके साथियों ने सैंडर्स की हत्या की और फिर उसी मामले में भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरू को फांसी भी हुई, उनसे भगत सिंह और उनके साथियों का तीखा वैचारिक मतभेद था। लाजपत राय कट्टर हिंदुत्ववादी सोच रखते थे जबकि भगत सिंह का दल पूरी तरह से धर्मनिरपेक्षता का अनुयायी था।
धर्म को लेकर तो भगत सिंह और भी स्पष्ट थे। वे धर्म को भी एक मानव द्वारा दूसरे मानव के शोषण का जरिया मानते थे। उन्होंने धर्म और ईश्वर के नाम पर किये जाने वाले तमाम पाखंडों का भंडाफोड़ अपने लेख मैं नास्तिक क्यों हूं में किया है। इसके अलावा धर्म और ईश्वर के नाम पर कैसे जन साधारण का शोषण किया जाता है, इसका उल्लेख अपने धारावाहिक निबंध आरजकतावादी के कई भागांें में किया है।
भगत सिंह की प्रत्येक रचना उनके बौद्धिक स्तर को दिखाती है। हुकूमत की षड्यंत्र के बावजूद उनकी रचनाएं जब प्रकाशित हुई तो दुनियां चमत्कृत रह गयी और उनका महत्व जाना। उनके विभिन्न पत्र भी उनके चिंतन को प्रकट करते हैं। लाहौर केस में स्पेशल ट्रिब्यूनल के सामने उनके दिये गये भाषण उनकी परिपक्वता को जाहिर करते हैं। उनकी जेल डायरी यह बताती है कि उनका अध्ययन कितना अधिक विस्तृत था।
भले ही तेइस वर्ष की अल्पायु में उन्हें फांसी दे दी गयी हो, उनकी प्रतिभा और स्पष्ट राजनीतिक व सामाजिक दृष्टि किसी को भी दंग कर देने के लिए पर्याप्त है।
उनकी सारी भविष्यवाणियां भी अक्षरशः सही साबित हुई। उन्होंने कहा था कि कांग्रेस के तरीके से कभी आजादी नहीं मिलेगी। अगर मिल गयी तो एक समझौते की शक्ल में होगी। बाद में पता चला कि अंग्रेज अपनी शर्तो पर देश को तोड़कर चले गये। भगत सिंह ने कहा था कि अगर कांग्रेस के रास्ते आजादी मिली तो कुछ खास परिवर्तन नहीं होगा। अंग्रेजों की जगह भूरे राज करेंगे। साधारण जनता का शोषण होता रहेगा। वही हुआ और आज तक हो रहा है।
आज भगत सिंह को दबाया नहीं जा सकता। फांसी चढ़ने से पहले उन्होंने खुद कहा था- हवा में रहेगी मेरे ख्यालों की बिजली, ये मुश्तेखाक है फानी रहे रहे न रहे। उनके द्वारा दिया गया नारा आज भारत, पाकिस्तान व बंग्लादेश में सबसे अधिक दुहराया जाता है- इन्कलाब जिंदाबाद। जिन्हें भगत सिंह से एलर्जी है, वे भी इस नारे को दुहराते हैं। अपने मुकदमे के दौरान भगत सिंह ने इन्कलाब का अर्थ बताया था- इन्कलाब का अर्थ है पूंजीवाद और पूंजीवादी युद्धों से होने वाली मुसीबतों का अंत करना। देश के युवकों को लिखे गये पत्र में उन्होंने अंकित किया था- इन्कलाब का अर्थ है समाजवाद की स्थापना और आम जनता का राज कायम करना।
भगत सिंह पर लिखना आसान नहीं है। उनका जीवन, उनके सपने, उनके ध्येय, उनके रास्ते, उनकी बौद्धिकता, उनकी सफलता व असफलता आदि सभी अद्भूत हैं। बस फिर कभी सिलसिलेवार ढंग से।
इन्कलाब जिंदाबाद।
SUDHIR
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