जब गुलामी प्रथा का प्रचलन था, उस समय गुलामों की तादात उनके मालिकों से कई गुना अधिक थी। उनकी ताकत उनके मालिकों से काफी अधिक थी। फिर भी वे कभी आजाद होने का ख्याल तक नहीं कर पाते थे। दक्षिण अफ्रीका में गोरों की संख्या हमेशा से काले लोगों की अपेक्षा काफी कम रही है। परंतु, वे सदियों तक उन पर जुल्म ढाते रहे और काले चुपचाप सहते रहे। इसी तरह भारत में 80 फीसदी आबादी को शूद्र कहकर उनपर हर तरह के जुल्म ढाये गये। लेकिन शूद्रों ने कभी विरोध में आवाज नहीं उठायी। सदियों तक हर जुल्म को चुपचाप सहते रहे। वे चाहते तो उनका जीवन पशु से भी गये गुजरे करने वाले सवर्णों का चंद पलों में पूरा अस्तीत्व मिटा दे सकते थे। फिर भी वे चुप रहे। ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि शोषकों की छोटी संख्या बड़ी आबादी पर जुल्म करती रही और वे चुपचाप सहते रहे।

अब इसी नीति को भारत सरकार अपना रही है। पूरी धूर्तता के साथ। अब तो साफ दिखने भी लगा है कि भारत में दो मुख्य वर्ग हो चुका है- शोषक, जिसमें नेता व पूंजीपति शामिल हैं और दूसरा शोषित जिसमें किसान, मजदूर, छोटे व्यापारी आदि अर्थात आम जनता है।
दरअसल अन्ना के आंदोलन ने नेताओं के कान खड़े कर दिये। अब उन्हें यह लगने लगा कि आम जनता भी उनकी नीतियों व कथित लोकतंत्र का रहस्य समझने लगी है। अपनी जिंदगी अय्याशी के साथ जीने के लिए वे जिन नीतियों का सहारा लेकर और बहानेबाजी करके देश को लूट रहे हैं, जनता वह भांपने लगी है। इससे नेताओं व पूंजीपतियों में खलबली मची है। अब वे शोषण के लिए वही सदियों पुरानी नीति पर चलने लगे हैं। उन्हें पता है कि इसके लिए सबसे पहले आम जनता को इस हाल में पहुंचाना होगा कि वह पेट भरने के अलावा कुछ सोच ही नहीं सके। इससे उनमें कभी एकता भी नहीं हो सकेगी। इस नीति को लागू करने के लिए सरकार महंगाई इतना बढ़ा देना चाहती है कि अब आम जनता पेट भरने के अलावा कुछ और सोच ही नहीं सकेगी। भोजन से लेकर कपड़ा, शिक्षा, स्वास्थ्य, यात्रा, यूं समझ लीजिए कि सब चीजें इतनी महंगी की जा रही है कि आम जनता दिन-रात मेहनत करने के बावजूद ठीक से पेट भी नहीं भर सकती।
महंगाई का आलम यह है कि मध्यवर्ग के लोग भी अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों से हटाकर सिर्फ प्रमाण पत्र देने वाले स्कूलों में करवाने लगे हैं। मेडिकल, इंजिनियरिंग, मैनेजमेंट तथा अन्य आधुनिक शिक्षा के संस्थानों में अब गरीब के बच्चे जा सकेंगे, यह ख्वाब देखना भी मुश्किल होने लगा है। सरकार ने कोचिंग संस्थानों को भी मनमाना शुल्क वसूलने की छूट भी इसीलिए दे रखी है, ताकि गरीबों के बच्चे किसी अच्छे संस्थान में नामांकन की तैयारी ही ढंग से नहीं कर सकें।
प्रचीन काल की शोषण व्यवस्था और आज के भारत में बहुत फर्क नहीं है। सिर्फ शोषकों व शोषितों की संज्ञा बदल गयी है। उस समय भी उत्पादन शोषित करते थे लेकिन उन्हें भोजन, दवा आदि सुविधाओं से वंचित रखा जाता था। यही आज भी हो रहा है। गुलामों और शूद्रों को उनके शोषकों द्वारा रोटी के चंद टुकड़े देकर मान लिया जाता था कि यह उनके लिए पर्याप्त है। यही आज भी हो रहा है। 26 रुपये की आमदनी पर मान लिया जा रहा है कि वह अमीर है। कितना विचित्र है कि 26 रुपये प्रतिदिन पर जीवनयापन करने वाले आम आदमी का कथित सेवक प्रधानमंत्री का प्रदिदिन 50 हजार रुपये से भी अधिक का खर्च है। प्राचीन काल में भी शोषक खुद को उत्पादन के कार्य से दूर रखते थे और अपने हक में नीतियां बनाते रहते थे। वही आज भी हो रहा है।
बढ़ती महंगाई के कारण अब मध्यवर्ग के बच्चे भी अच्छे स्कूलों में नहीं पढ़ सकते, गरीबों की क्या बिसात। शिक्षा से ज्ञान प्राप्त होता है, जिससे आदमी अपने हक के लिए लड़ना सिखता है। शिक्षा से आत्म सम्मान की भावना पैदा होती है। आम आदमी में आत्म सम्मान सरकार को खतरनाक दिखता है। सरकार को पता है कि अंग्रेजों द्वारा हिंदुस्तानियों को दी गयी आधुनिक शिक्षा का स्वतंत्रता संग्राम में बहुत अहम रोल रहा। अतः सरकार महंगाई बढ़ाकर उस स्तर तक पहुंचा रही है कि आम आदमी का बच्चा आधुनिक शिक्षा से वंचित रहे।
परंतु, आज के शोषक यह भूल रहे हैं कि जनता देर-सबेर जागती है। ट्यूनेशिया, मिस्र और लीबिया में रक्तरंजित विद्रोह का कारण यही रहा कि वहां जनता के शांतिपूर्ण विरोधों को शासकों ने अनसुना कर दिया। आम जनता की फटेहाली को वहां के शासकों ने यह मान लिया था कि अब वे पेट से अधिक सोच ही नहीं सकते। जनता ने अन्ना व रामदेव के आंदोलन के माध्यम से शांतिपूर्वक अपना विरोध दर्ज कराया है। शोषक इससे सबक लेने के बजाय प्रतिशोध की भावना से काम कर रहे हैं। क्या नहीं लगता कि अब जनता को पेट की चिंता में सुला देना आसान नहीं होगा? शोषकों को यह ख्याल करना चाहिए कि जनता का विरोध हमेशा अन्ना के आंदोलन जैसा ही नहीं होता। वह मिस्र और लीबिया की तरह भी विरोध जताना जानती है।
इसके बावजूद अगर सरकार यह कहती है कि उसका इरादा ऐसा नहीं है तो महंगाई से जनता को तिल-तिल कर मारने के आरोप में उसे बने रहने को कोई अधिकार नहीं है।
सुधीर
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