शनिवार, 19 नवंबर 2011

याद रहेगा केबीसी


17 नवंबर को भारत के महानतम टेलीविजन कार्यक्रमों में से एक केबीसी का पाचवां दौर समाप्त हो गया। करीब 100 प्रतिभागियों ने भाग लिया। अधिकांश जरूरतमंद और साधारण परिवार से थे। उन्होंने साबित किया कि उनके पास भले ही गरीबी है, लेकिन मेधा की कमी नहीं है। सिद्ध किया कि ज्ञान पर किसी वंश, जाति, नस्ल या धर्म का अधिकार नहीं होता। यह बता दिया कि सुदूर गांवों की झोपडि़यों में भी जल रहे विद्या की मशालों की लौ काफी तेज है।
सबसे खास बात यह कि इसने लोगों को किताबों से जोड़ दिया। केबीसी कैसे जीते आदि नाम से सामान्य ज्ञान की किताबें बिकने लगीं। लालच में ही सही, लाखों घरों में सामान्य ज्ञान की किताबें पहुंच गयीं। समाचार पत्रों में सिर्फ खेल की खबरें पढ़ने वाले और अभिनेत्रियों की तस्वीरें देखने वाले भी गंभीरता से अखबार पढ़ने लगे। भला भारत में ऐसे कितने लोग होंगे, जिनकी इच्छा एक बार महानायक के सामने हाॅटसीट पर बैठने की हो?
वाह! क्या कार्यक्रम था। जैसे पूरे भारत का प्रतिनिधित्व कर रहा हो। हर क्षेत्र के लोग आये और अपनी प्रतिभा दिखायी। साथ में महानायक। आम आदमी ने टीवी पर बड़े-बड़े स्टारों को लोकप्रियता में मात दे दी। केबीसी की लोकप्रियता के आगे अन्य सभी टीवी कार्यक्रमों काफी बौने हो गये। सबसे अधिक टीआरपी केबीसी की रही। जो टीआरपी पर विश्वास नहीं करते, वे भी मानते हैं कि केबीसी बेशक सबसे लोकप्रिय टीवी कार्यक्रम है। गांवों तक में केबीसी के तर्ज पर सामान्य ज्ञान के कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं।
जब 2000 में कौन बनेगा करोड़पति शुरू हुआ था, उसी समय इस कार्यक्रम ने सफलता के सारे कीर्तिमान तोड़ दिया था। ऐसी खबरें आयीं थीं कि उस दौरान कई सिनेमाघरों में शो स्थगित कर दिया गया था, क्योंकि हर कोई अपने टीवी से चिपका रहता था।
आखिर सामान्य ज्ञान जैसे निरस विषय को लेकर बनाया गया यह कार्यक्रम इतना लोकप्रिय क्यों हुआ? सबसे पहला श्रेय महानायक अमिताभ बच्चन को देना होगा। लाजवाब प्रस्तुति। यूं लगता है, जैसे हाॅट सीट पर बैठे प्रतिभागी से ही नहीं, बल्कि सभी दर्शकों से सीधे बात कर रहे हों। एक मित्र की तरह, एक अभिभावक की तरह। उनकी हिंदी पर मजबूत पकड़ भी एक बड़ा पक्ष है। हाजिरजवाबी का भी लोहा मानना पड़ेगा। अन्य रियलिटी शो में जहां संचालक निर्णायक प्रतिभागियों पर तरह-तरह के दबाव बनाने में लगे रहते हैं, वहीं बच्चन घबराये हुए प्रतिभागियों का हौसला बढ़ाते रहते हैं। हां, जरूरत पड़े तो सुशील को बैठकर पानी पीने की नसीहत भी देते हैं। सबको याद होगा कि जब केबीसी को सफलता मिली थी, उस समय टीवी पर इस तरह के कई कार्यक्रम दिखने लगे थे। वहां भी वह सभी कुछ था जो केबीसी में है सिवाय अमिताभ बच्चन के।
दूसरा श्रेय कार्यक्रम को तैयार करने वालों और संवाद लिखने वालों को देना होगा। भले ही इस शो पर इल्जाम है कि यह हू विल बी मिलेनियर का नकल है, लेकिन कार्यक्रम देखकर इसे कोई नहीं मानता। विचार तो कहीं से भी लिया जा सकता है। कंप्यूटर जी, श्रीमती टिकटिकी, हाॅटसीट, लाॅक कर दिया जाए आदि क्या शब्द गढ़े गये हैं। बहुत खूब!
तीसरी वजह है आम आदमी की सहभागिता। अन्य टीवी शो में जहां आम आदमी महज दर्शक बना रहता है, वहीं इसमें वह पर्दे पर होता है। टीवी के चंद चर्चित चेहरों के बजाय इसमें आम आदमी खुद हीरो होता है। हालांकि कहने को अन्य रियलिटी शो में भी आम आदमी की सहभागिता होती है। परंतु, वहां कोई खास कौशल वाले लोग ही जा सकते हैं, आम आदमी नहीं। दूसरी बात कि अन्य कार्यक्रमों में एक व्यक्ति या एक दल जीतता है और अन्य प्रतिभागी हार जाते हैं जबकि केबीसी में हर कोई जीतता है, कोई हारता नहीं।
केबीसी का एक और दौर भले ही खत्म हो गया हो लेकिन कई बातों को विचार करने के लिए छोड़ गया। आम उपेक्षित आदमी में भी कितनी प्रतिभा छिपी हो सकती है, यह केबीसी ने बताया। वह कई गुमनाम प्रतिभाओं को सामने लाया। आज सुशील कुमार मनरेगा के ब्रांड अंबेस्डर हैं। ऐसा नहीं कि वे अब प्रतिभावान हो गये। केबीसी ने यह बताया कि उनमें कितनी प्रतिभा और इच्छाशक्ति है। केबीसी ने यह भी बताया कि हमारे देश में करोड़ों ऐसी प्रतिभाएं हो सकती हैं, जो प्रोत्साहन, मौका और संसाधन के अभाव में बर्बाद हो रही हैं। आज हर जगह अंग्रेजी हावी होती जा रही है या यूं कहिए कि अंग्रेजी को हावी कर देने का प्रयास किया जा रहा है। हिंदी की रोटी खाने वाले अभिनेता अंग्रेजी में ही बात करना पसंद कर रहे हैं। ऐसे समय में केबीसी ने हिंदी की ताकत भी साबित कर दिया।
कई लोग केबीसी की तुलना जुए से कर रहे हैं क्योंकि यहां प्रतिभा के बजाय भाग्य से लोग रकम हासिल करते हैं। भाई मेरे! किसी भी जुए में दावं पर कुछ लगाया जाता है। बताइए कि केबीसी में प्रतिभागी क्या दावं पर लगाते हैं? बात अगर आसान या मुश्किल सवाल पूछे जाने को लेकर है, तो इस हिसाब से सभी प्रतियोगी परीक्षाएं ही जुआ हैं। सामान्य ज्ञान के साथ हमेशा यह होता है कि अगर आपको जवाब मालूम है तो आसान है, अगर नहीं मालूम है तो कठिन। अगर कोई तुक्के में केबीसी में सही जवाब देकर रकम हासिल कर लेता है तो इस तरह से तो प्रतियोगी परीक्षाओं में जिन प्रश्नों के उत्तर नहीं मालूम होता है, उनमें प्रतिभागी यही करते हैं। इस हिसाब से सभी प्रतियोगिता परीक्षाएं भी जुआ हैं।
अंतिम शृंखला के अंत में जब अमिताभ ने दर्शकों से अपने दिल की ओर इशारा कर कहा कि वे हमेशा उनके दिल में रहेंगे, उस समय करोड़ों दिलों से आवाज आयी- आप भी।
सुधीर

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