मुखिया का भाजपा और जदयू के कई शीर्ष नेताओं से गहरा संबंध था, इस बात की पुष्टि पहले ही बाथे नरसंहार के बाद बने अमीरदास आयोग ने कर दी थी। यह भी साबित हो गया था कि मुखिया को वे नेता संरक्षण देने के अलावा हर तरह से मदद करते थे। परंतु, प्रशासन भी उसके आगे नतमस्तक था, यह उसकी हत्या के बाद दिखा।
यही वजह है कि पहले तो लंबे समय तक उसकी गिरफ्तारी नहीं हुई। फिर हुई तो उसके खिलाफ सारे मामले इतने कमजोर कर दिये गये कि वह 22 मामलों में से 16 में बरी और अन्य में जमानत पाकर छुट गया। उसे बचाने के लिए शासन और प्रशासन ने भारतीय न्यायपालिका से आम लोगों का विश्वास उठा दिया। हद तो तब हो गयी जब उसके साथियों को भी बथानी टोला नरसंहार में बरी कर दिया गया।
फिर भी, 300 लोगों की हत्या का जिम्मदार तो वह था ही। परंतु, उसकी मौत पर जहां जश्न मनाया जाना चाहिए था, वहीं पूरे सूबे को दहशत में डाल दिया गया। उसकी हत्या के तुरंत बाद आरा प्रशासन ने आरा को रणवीर सेना के हवाले कर दिया। चंद मुट्ठी भर लोगों ने वहां करोड़ों की संपत्ति में आग लगा दी और तोड़फोड़ की। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी सेवा यात्रा से ही मुखिया की मौत का शोक मनाने लगे। उन्होंने कहा कि दोषियों को बख्शा नहीं जायेगा। उनके इस बयान में सिर्फ वही दोषी थे, जिन्होंने मुखिया जैसे नरपिशाच की हत्या की थी। वे नहीं, जो वहां हिंसा, पथराव, तोड़फोड़ और आगजनी कर रहे थे। उसके अगले दिन पटना में यही स्थिति बनी। पूरी राजधानी खौफ के साये में रही। गरीबों, महिलाओं और छात्रों पर लाठियां बरसाने वाली पुलिस अभयानंद के इशारे पर कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ती देखती रही।
जेल से छुटने के बाद मुखिया ने किसानों के हित में लिए संगठन बनाने की बात कही थी। पता नहीं उसका नया संगठन कैसा होता। यहां गौर करने वाली बात यह है कि मुखिया ने कानून से बचने के लिए हमेशा यही बयान दिया कि उसका रणवीर सेना से कोई संबंध नहीं है। उसके संरक्षक नेता भी यही कहते रहे कि मुखिया किसानों के नेता हैं। अदालतों ने भी यही माना। परंतु, उसकी मौत के बाद उसके समर्थकों ने ही साबित कर दिया कि ब्रह्मेश्वर मुखिया क्या था और किसका नेता था।
अब, उसका महिमामंडन देखिये। हत्या के तुरंत बाद मुख्यमंत्री से लेकर पूरा मंत्रिमंडल शोक प्रकट करने लगा। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीपी ठाकुर जो खुद भूमिहार ही हैं, ने फेसबुक पर ऐसे दरिंदे को महान सामाजिक कार्यकर्ता बताया। अगले दिन मत्स्य एवं पशुपालन मंत्री गिरिराज किशोर ने हद पार करते हुए 300 लोगों की हत्या करवाने वाले मुखिया को गांधीवादी कार्यकर्ता करार दिया। गांधी का ऐसा अपमान किसी विदेशी ने भी नहीं किया होगा।
हत्या के अगले दिन पूरा लाव-लश्कर मुखिया की श्रद्धांजलि यात्रा को सफल बनाने में जुट गया। राजकीय सम्मान से बढ़कर एक दरिंदे का अंतिम संस्कार प्रशासन और सरकार ने मिलकर कराया। उसके अंतिम संस्कार में सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष के कई नेता शामिल हुए। भूमिहार जाति के होने का हक अदा करते हुए डीजीपी अभयानंद ने पूरी राजधानी को रणवीर सेना के गुंडों के हवाले कर दिया। अगले दिन बहुत ही बेशर्मी से उन्होंने कहा कि पुलिस ने संयम बरता है। काई उनसे पूछे कि पुलिस का यह संयम गरीबों, महिलाओं और छात्रों के शांतिपूर्ण आंदोलन के समय कहां चला जाता है? अभयानंद का दूसरा तर्क यह है कि पुलिस अगर कड़ाई से काम लेती तो मामला और बिगड़ सकता था। सवाल है कि फिर पुलिस की जरूरत ही क्या है? अगर पूरी राजधानी में भय और आतंक का माहौल था, तो फिर पुलिस की स्थापना क्या सिर्फ रिश्वत खाने और निर्दोषों को जेल भेजने के लिए हुई है? इस तर्क के आधार पर तो कोई भी राजधानी में गुंडागर्दी कर सकता है कि अगर उसे रोका गया तो वह और अधिक गुंडागर्दी करेगा। डीजीपी का तीसरा तर्क था कि कोई बड़ा वारदात नहीं हुआ। पूरी राजधानी में आतंक का माहौल कायम था। भय के मारे लोग घरों में दुबके थे। कई पुलिस चेक पोस्ट जला दिये गये। कई गाड़ियां फूंक दी गयी। मीडियाकर्मियों की गाड़ियों को क्षतिग्रस्त किया गया। उनके साथ मारपीट की गयी। पूरी राजधानी दहशत में रही। इसके बावजूद डीजीपी ने पूरी बेशर्मी से कहा कि राजधानी में बड़ी वारदात नहीं हुई। सच तो यह है कि आज तक पटना में दो जून को छोड़कर ऐसी कोई वारदात हुई ही नहीं कि पूरी राजधानी दहशत में रहे। परंतु, जिस राज्य की पुलिस का मुखिया ही अपने सारे दायित्व भूलकर यह याद रखे कि वह उसी जाति का है, जिस जाति का ब्रह्मेश्वर मुखिया था, उस राज्य में कैसा कानून और कैसी व्यवस्था?
हमारे राज्य के महान नेताओं और भूमिहार जाति के संगठनों ने मुखिया को किसान नेता बताया है। कोई यह बताने में सक्षम नहीं है कि मुखिया ने किसानों के लिए क्या किया? अगर सोती हुई महिलाओं और दुधमुंहे बच्चों की हत्या करना किसान नेता होने का अर्थ है, तो अलग बात है। अगर भूमिहार और किसान शब्द पर्यायवाची हैं, तो फिर यह संभव है। यह भी शोध का विषय हो सकता है कि कितने भूमिहार जाति के लोग खेत जोतते हैं, बीज बोते हैं, दवाहीं करते हैं और कितनी भूमिहार स्त्रियां धान रोपती हैं, निराई करती हैं और फिर धान उसीनती हैं।
अब मरने के बाद महिमामंडित होने वाले ब्रह्मेश्वर मुखिया की उपलब्धियों पर नजर डालें-
1. मुखिया ने 1994 के अंतिम समय में रणवीर सेना नामक संगठन की स्थापना की। इसमें भूमिहार जाति के लोग थे। कहीं-कहीं गिने-चुने राजपुत भी शामिल हुए। कहा यह गया कि यह संगठन माओवादियों को जवाब देने के लिए बनाया गया है क्योंकि वे भूमिहारों की जमीनों पर गैरकानूनी ढंग से कब्जा कर लेते हैं।
2. मुखिया ने 1994 से 2000 तक करीब 277 लोगों की हत्या करवाई। मरने वालों में अधिकांश स्त्रियां और बच्चे थे।
3. पांच अगस्त 1995 को मुखिया की अगुआई में भोजपुर के बड़हरा प्रखंड के नुरपुर गांव में छह लोगों की हत्या के बाद चार महिलाओं का अपहरण कर लिया। उनके साथ सामूहिक बलात्कार के बाद उनकी हत्या कर दी गयी। पुलिस रिकाॅर्ड के अनुसार, उन चार में एक 13 साल की लड़की भी थी, जिसके साथ खुद मुखिया ने बलात्कार किया था और फिर उसके जननांग में गोली मार कर हत्या कर दी थी।
4. माओवादियों से लड़ने का दावा करने वाले ब्रह्मेश्वर मुखिया ने किसी भी सवर्ण समुदाय के लोगों की हत्या नहीं की थी, जबकि अधिकांश माओवादी संगठनों के शीर्ष पर बैठे लोग सवर्ण थे और हैं।
5. दलितों के बच्चों की हत्या की सफाई में मुखिया कहता था कि ये बच्चे बड़े होकर आखिरकार नक्सली ही बनेंगे। अतः उनकी हत्या में कोई बुुराई नहीं है।
6. दलित महिलाओं की हत्या के पीछे उसका तर्क था कि ये महिलाएं जो बच्चा पैदा करती है, वे नक्सली बनते हैं। इसलिए उनकी हत्या जायज है।
सुधीर
5 टिप्पणियां:
आर.एस.एस. - भाजपा का नया फरमान! महर्षि ब्रह्मोस है महान!!
बिहार में नितीश के कंधे पर सवार भाजपा अब पूरी गद्दी हथियाने के मिशन के तहत-'हाल के दिनों में नए तेवर के साथ आये इस उग्रवादी भूमिहार सामंतों के समूह को स्वाभाविक रूप से उग्र हिंदुत्व के सांचे में रूपांतरित होते हुए देखकर मुग्ध है. अगर जरूरत पडी तो नितीश कुमार को भी धकियाते हुए नरेन्द्र मोदी के राष्ट्रीय नेतृत्व में अघोषित आगामी लोकसभा चुनाव में आर.एस.एस.-भाजपा इस "लहलहाते फसल" को काटना चाहेगी. भाजपा-आर.एस.एस. को बहुत जल्दी है एक और नया गुजरात बनाने की...और बिहार उसके हिसाब से संभावित किन्तु; बहुत उपयुक्त जगह लग रहा है. रणवीर सेना सुप्रीमो की ह्त्या के बाद सामंतों द्वारा नंगा प्रदर्शन करने की इस अर्ध- बी.जे.पी सरकार द्वारा खुली छूट के साथ उसके पीठ को थपथपाने को बिलकुल इसी सन्दर्भ में देखा जाना चाहिए.
आर.एस. एस.- बी.जे.पी. द्वारा बड़ी बेशर्मी से करीब ३०० लोगों का कत्लेआम करने वाला इस " हरामखोर शैतान आतंकी ब्रह्मोस" के लिए राष्ट्रगीत बजाना और उसकी तुलना गाँधी से करना इस देश का न केवल सरासर अपमान है बल्कि गांधी के सत्य-अहिंसा के जीवन-दर्शन पर ही हमला है... शहीदे आजम भगत सिंह का धर्म के प्रति दृष्टिकोण को उनके द्वारा " जेल में लिखी गई किताब "नाश्तिक हूँ" से समझा जा सकता...परन्तु, आज साम्प्रदायिक-फासीवादी शक्तियों द्वारा उनके "जीवन-दर्शन" पर भी हमला किया जा रहा है. ये सारी कोशिशें सिर्फ और सिर्फ ८५ फीसदी पिछड़े-दलित अवाम के ऊपर महज ३ फीसदी ब्राह्मणों की सर्वोच्चता को बनाये रखने की कवायद के तहत आर.एस.एस.-भाजपा का यह नापाक- इरादा काम कर रहा है...इससे बड़ा दुर्भाग्य और अपमान इस देश के लिए और क्या हो सकता है....
बिहार में कांग्रेस पुरी तरह अपनी प्रासंगिकता खो चुकी है. लालू प्रसाद की आर.जे. डी और रामविलास पासवान की लोजपा अपनी-अपनी साख गंवाए बैठे है. इस परिस्थिति में कम्युनिस्ट पार्टियां भाजपा के खिलाफ मोर्चा संभाल सकती है. कम्युनिस्ट पार्टियों के नेतृत्व में अगर आर.जे.डी.-लोजपा और यहाँ तक की कांग्रेस जूनियर पार्टनर की भूमिका में अगर आती है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए...
अब इस देश के प्रगतिशील नौजवानों, मेहनतकश जनता और समझ-बुझ रखने वाले पढ़े-लिखे बुध्हिजीवियों की ऐतिहासिक जिम्मेदारी है की इस “ब्राह्मणवादी-साम्प्रदायिकतावादी-फासीवादी” खतरनाक शक्तियों के किला को ध्वस्त करने के लिए आगे आयें.
बिहार में जातीय-आवरण से ढंके उग्र जमींदारों-सामंतों के इर्द-गिर्द जमा साम्प्रदायिक-फासीवादी शक्तियों के खिलाफ आज जबरदस्त जन-लामबंदी के जरिये जन-कार्रवाई की जरूरत है...
आईये, एकजूट होकर बिहार की ऐतिहासिक क्रांतिकारी धरती की हिफाजत करें. गांधी और शहीदे-आजम भगत सिंह के महान "जीवन-दर्शन" की हिफाजत करते हुए उनके सपने को साकार करे. दलितों-पिछड़ों को सामंती जुल्म व शोषण से मुक्ति दिलावें.
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ISS TARAH SAMAJIK VAVASTHA KO KABHI SANTULIT NAHI HONE DENE KA JO LOG PRAN LIYE BAITHE HAI UNHE KHUD KO PATRKAR KEHNE SE PEHLE PATRAKAR SHABD KI GARIMA KO JANNA CHAHIYE.EK APRADHI K MARNE KA JASHN SAMAJH ME AATA HAI PER ISSKELIYE KISI EK JAATI VISHESH KI ALOCHNA KA ARTH AAP BEHTER SAMJHA SAKTE HAIN.AAJ JAB EK YUVA WARG ISS PURE SYSTEM SE LADAI KA SANKALP LE RAHE HAI TO KUCH BUDHIJIVI AAPNE SANKUCHIT SOCH KO SOCIAL NETWORKING SITES K JARIYE PHIR SE PRADARSHIT KAR RAHE HAI AUR JUSTIFY BHI ,ISS SASTI LOKPRIYATA KA CHALAN BADHANE ME KUCH YUVA WARG AAJ BHI PRAYASRAT HAI?
मुखिया बाबा कि जय हो
Bhagwan haii brameshwar mukhiya
जय हो मुखिया बाबा
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