गुरुवार, 12 जुलाई 2012

सरकार में सिरफिरों की भरमार


जब देश में चारों ओर लोग महंगाई की मार से त्रस्त हैं, आम आदमी की थाली से एक-एक कर व्यंजन घटते जा रहे हैं, वैसे समय में देश के गृहमंत्री पी चिदंबरम को इस बात पर आश्चर्य होता है कि लोग खाद्य पदार्थों की कीमत बढ़ने पर नाराज क्यों होते हैं। उनके आश्चर्य का कारण यह है कि लोग महंगाई को दोष देते हैं, पर बोतल का पानी और आइस्क्रीम क्यों खाते हैं। उनके बयान का भावार्थ यह है कि आइसक्रीम खाने वाले और बोतल का पानी पीने वाले को खाद्य पदार्थों पर कीमत बढ़ने पर कोई दिक्कत प्रकट नहीं करना चाहिए। हां, अगर लोग इस लायक हो जाएं कि कभी आइस्क्रीम भी खा सकें, सफर आदि में बोतलबंद पानी के बजाय सरकारी सप्लाई वाला बदबूदार पानी या फिर वह भी पीने लायक बचें, तब वे खाद्यान्नों की कीमत बढ़ने का विरोध करें। यह देश के गृहमंत्री का बयान है, जिसे एक अच्छे अर्थशास्त्री की भी शोहरत भी हासिल है। क्या यह बात एक नार्मल व्यक्ति कह सकता है? अगर चिदंबरम ने गरीबों का मजाक उड़ाने के लिए ऐसा कहा, तब तो उन्हें अहंकारी संवेदनहीन कहकर दोषी ठहराया जा सकता है, लेकिन अगर उन्होंने गंभीरता से यह बात कही तो उन्हें सिरफिरा के अलावा कुछ नहीं कहा जा सकता। विपक्ष का कहना है कि वे अहंकारी संवेदनहीन हैं, जबकि खुद कांग्रेसी नेताओं का मानना है कि ऐसा नहीं है। तो फिर चिदंबरम को दूसरी श्रेणी में ही रखा जा सकता है।
यूपीए सरकार में ऐसा पागलपन कोई पहली बार नहीं देखने कोई मिला। महीने दो महीने बीतते-बीतते कोई कोई मंत्री अपने दिमागी असंतुलन का सबूत दे ही देता है। कभी-कभी मंत्रियों के चुकने पर कोई अन्य सहयोगी यह कोटा पूरा कर देता है।
चिदंबरम के बयान के एक दिन पहले कानून मंत्री सलमान खुर्शीद खुद ही कांग्रेस को दिशाहीन बता चुके थे। क्या कोई नाॅर्मल दिमाग का बुढ़ा कथित अनुभवी नेता अपनी पार्टी के बारे में ऐसा बयान दे सकता है।
सरकार में एक ऐसे ही काफी होनहार सज्जन हैं- कपिल सिब्बल। किसी मनचले नेता ने एक पुराने कार्टून को लेकर आपत्ति प्रकट कर दी, जिसमें अंबेदकर नेहरू थे। उस कार्टून को नेहरू ने भी देखा था और अंबेदकर ने भी। दोनों को ही उसपर आपत्ति नहीं थी। आपत्ति उन्हें हुई, जो लोग खुद चलते-फिरते कार्टून हैं। कपिल सिब्बल ने अपने बड़े से दिखने वाले दिमाग से बड़ा पागलपन निकाला। उन्होंने आदेश दिया कि किताबों में नेताओं से संबंधित जितने भी कार्टून हैं, सभी को हटा दिया जाये। शुक्र है, किसी ने अभी किताबों के काले अक्षरों को नस्लवाद से नहीं जोड़ा है, वरना पागलमंडली क्या करती, पता नहीं। सिब्बल इससे पहले भी देश में सर्वाधिक प्रतिष्ठित संस्था सीएजी के रिपोर्ट को बकवास करार दे चुके हैं। वह भी अपने प्रिय ईमानदार साथियों राजा कनिमोझी को बचाने के लिए। ऐसे कारनामे कोई नाॅर्मल आदमी कर सकता है क्या?
अगर चिदंबरम और सिब्बल दोनों मिल जाएं, तो क्या हो सकता है? बहुत दिमाग दौड़ाने की जरूरत नहीं है। कई उदाहरण सामने हैं। दोनों मिलकर शांतिपूर्वक आंदोलन कर रहे लोगों पर, जिनमें काफी संख्या में महिलाएं हों, आधी रात को लाठीचार्ज करवा सकते हैं। किसी को भी दिल्ली में शांतिपूर्वक अनशन करने के लिए जगह देने से इनकार कर सकते हैं। देश में शांति भंग करने का मनगढ़ंत आरोप लगाकर किसी को भी उसके घर से उठवाकर जेल भेजवा सकते हैं। किसी को नौकरी छोड़ने के एक दशक बाद अचानक कर्ज बकाया का नोटिस भिजवा सकते हैं। किसी योगगुरू को महान संत बताते-बताते 72 घंटे के अंदर उसे षड्यंत्रकारी, अवैध ढंग से व्यापार करने वाला, विपक्षी पार्टी का एजेंट आदि की उपमा दे सकते हैं। ऐसे और ढेरों उदाहरण आपको मिल जाएंगे।
इस सरकार में एक और कद्दावर और वरिष्ठ मंत्री हैं- शरद पवार। वे कृषि मंत्री हैं। चिदंबरम ने खाद्यान्नों की कीमत बढ़ने पर आपत्ति जाहिर करने पर आश्चर्य किया था, तो पवार महंगाई का कारण बताते हैं। उनसे जब पूछा गया था कि खाद्यान्नों की महंगाई इतनी क्यों बढ़ रही है, तो बड़े से पेट वाले पवान का जवाब था कि लोग अधिक खाने लगे हैं। इसलिए महंगाई बढ़ रही है। उनकी नजर में महंगाई घटाने के लिए लोगों को कम अनाज खाना होगा। क्या यह आपको किसी नाॅर्मल आदमी का जवाब लगता है?
पागलों का एक खास लक्षण होता है कि वह दूसरे सामान्य आदमी को पागल समझता है। यह लक्षण प्रकट हुआ पर्यटन मंत्री सुबोधकांत सहाय। अन्ना के आंदोलन को जब पूरा देश समर्थन कर रहा था, तब सुबोधकांत सहाय ने अन्ना को सार्वजनिक रूप से पागल कहा था।
पहले एक और कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह अपने आपको सबसे बड़ा विद्वान साबित करने में लगे रहते थे। वे इतने आगे बढ़ गये कि पूरे देश को पता चल गया कि यह आदमी पागल है। इसका पता कांग्रेस को भी चला। कांग्रेस ने तुरंत बयान जारी कर दिया कि दिग्विजय के बयान को एक नाॅर्मल कांग्रेसी का बयान न माना जाये।
इसी सरकार में एक विदेश राज्य मंत्री हुआ करते थे- शशि थरूर। उन्होंने हवाई जहाज के इकोनोमी क्लास में यात्रा करने वालों की तुलना भेड़-बकरियों से की थी। इस सच से सभी वाकिफ होंगे कि इस देश में हवाई जहाज के किसी भी क्लास में यात्रा करने की हैसियत दो प्रतिशत से अधिक लोगों की नहीं है। थरूर के हिसाब से, यहां की 98 फीसदी लोग भेड़-बकरियों से भी गये-गुजरे हैं।
पूर्व मंत्रियों में दो और महारथी हैं- सुरेश कलमाड़ी राजा। राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान जिस तरह से निर्माण कार्य करवाये गये और खेलों खिलाड़ियों के लिए सामग्रियों की जिस तरह से खरीद हुई या किराये पर लाये गये, वह कलमाड़ी की मानसिक स्थिति बताने के लिए काफी है। इसी तरह राजा को जब दूरसंचार विभाग मिला, तो उन्होंने इसे सरस्वती पूजा का प्रसाद बांटने का काम समझा और पहले आओ-पहले पाओ की तर्ज पर बांट दिया। दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन दोनों को पागलखाने के बजाय जेल भेज दिया गया। उम्मीद की जा रही है कि थरूर समेत इन दोनों को भी मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी, ताकि जनता क्रूर मनोरंजन का लुत्फ उठा सके।
अब थोड़ी चर्चा सरकार के कथित मुखिया मनमोहन सिंह की। कथित इसलिए कि असली मुखिया कौन है, सभी जानते हैं। इन पर किसी सुख-दुख का असर नहीं होता। आवाज- भावहीन, चेहरे की भंगिमा-सपाट, बाॅडी लांगवेज-अपरिभाषित। मनोविज्ञान के अनुसार, ऐसे लक्षण तब प्रकट होते हैं, जब व्यक्ति पागलपन की हद से भी पार निकल जाये।
जब-कभी मंत्री अपना पागलपन दिखाना बंद कर देते हैं, तब उनके आजु-बाजू के लोग इसे दिखाते हैं। इनमें बड़ा नाम है मोंटेक सिंह अहलूवालिया का। आज के जमाने में 26 रुपये रोज की आमदनी वाले को अमीर कोई मूर्ख भी नहीं कह सकता। और फिर 26 रुपये पर अमीर का तमगा देने वाला यही आदमी अपने टाॅयलेट की मरम्मत पर 35 लाख रुपये खर्च कर देता है। उस टाॅयलेट के लिए, जिसमें करीब दर्जन भर आदमियों को ही जाने की इजाजत है। ऐसा व्यक्ति को विक्षिप्त नहीं, तो और क्या है?
पूरे कांग्रेसियों के दिमाग का हाल यह है कि उन्हें आज तक नेहरू खानदान से बाहर कोई योग्य व्यक्ति दिखता ही नहीं।
कहा जाता है कि सत्ता आदमी को घमंडी बना देती है, लेकिन यूपीए दो की सरकार इस बात का गवाह है कि सत्ता आदमी को पागल भी बना सकती है। ख्याल रहे, सामान्य क्रूर व्यक्ति से पागल क्रूर व्यक्ति की क्रूरता अधिक क्रूर होती है।
सुधीर

6 टिप्‍पणियां:

Sanjay Bharti ने कहा…

hamare desh me loktantra ka majak bana kar rakh diye hai a ayese bhrast neta hai jo apne ko parja ka sewak kam desh ka raja samajh rahe hai in logo ne bharat ko kangal kar ke to rakh hi diya hai or aab Yaha ke garibo ka naga kar ke chhorenge -----Thank you sudhir jee

Sanjay Bharti ने कहा…

hamare desh me loktantra ka majak bana kar rakh diye hai a ayese bhrast neta hai jo apne ko parja ka sewak kam desh ka raja samajh rahe hai in logo ne bharat ko kangal kar ke to rakh hi diya hai or aab Yaha ke garibo ka nanga kar ke chhorenge

Veena Sharma ने कहा…

Kangal Ho gaye hai bhai ab kya bacha hai kapil sibal p chitambarm soniya sab ne Lut liya Hum bhukhe garibo ko kal tak roti mil jata tha ab pata nahi kitne bache garib bhukhe soyenge Thanx sudhir jee

Harshit Pandey ने कहा…

जब तक लोग देश मे चुपचाप बैठ कार सुधार हेतु लोगो का मुह देखेगे शायद यही होगा ये लोग तो देश की दीमक हैं ....अब हम आगे आयेगे तभी कुछ होगा वरना ये तो तुगलकी बयानबाज़ी करेगे ही

हर्षित पांडेय ने कहा…

जब तक लोग देश मे चुपचाप बैठ कार सुधार हेतु लोगो का मुह देखेगे शायद यही होगा ये लोग तो देश की दीमक हैं ....अब हम आगे आयेगे तभी कुछ होगा वरना ये तो तुगलकी बयानबाज़ी करेगे ही

हर्षित पांडेय ने कहा…

जब तक लोग देश मे चुपचाप बैठ कार सुधार हेतु लोगो का मुह देखेगे शायद यही होगा ये लोग तो देश की दीमक हैं ....अब हम आगे आयेगे तभी कुछ होगा वरना ये तो तुगलकी बयानबाज़ी करेगे ही