शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

सरस्वती माता का वरदान

सरस्वती पूजा बीत गई. लेकिन इस मायने में यादगार रहेगी कि इस वर्ष विद्या और बुद्धि की देवी सरस्वती ने अपने भक्तों को खूब आशीर्वाद दिया. भक्तों ने भी सरस्वती की कृपा का जमकर इस्तेमाल किया. यूं तो इस कृपा का इस्तेमाल प्रति वर्ष पहले से ही होने लगता है. चंदा वसूली से सरस्वती की दी बुद्धि के लक्षण दिखने लगते हैं. मनामाने ढंग से चंदा का रसीद काटना और गुंडे के स्टाइल में वसूली करना. हजार रुपए के पूजा के लिए भी 25-50 हजार रुपए वसूले जाते हैं. यह वसूली वहां अधिक होती है,जहां दूसरे जगह के दुकानदार या व्यवसायी होते हैं. उन गांवों में भी इसे खूब देखा जा सकता है, जहां से होकर गाड़ियां गुजरती हैं. यहां वरिष्ठ पत्रकार श्री पुष्यमित्र के फेसबुक का एक कथन मौजूं होगा कि सरस्वती पूजा के लिए चंदा करने वालों पर मां सरस्वती की कृपा हमेशा सबसे कम होती है. हालांकि मेरा मानना है कि कृपा कम नहीं होती, बल्कि इसी तरह की कृपा ही होती है. आखिर कोई जब पढ़ाई-लिखाई में तेज होता है, उसपर मां सरस्वती की कृपा कही जाती है. फिर विकृत बुद्धि वालों की जिम्मेदारी से देवी सरस्वती कैसे बच सकती हैं. आखिर वही तो बुद्धि की देवी हैं. वैसे चंदे वाली कृपा तो हमेशा ही मां सरस्वती अपने भक्तों पर रखती है. इस साल मां ने जी खोलकर कृपा दी और भक्तों ने जमकर इस्तेमाल भी किया.
मधेपुरा में प्रतिमा विसर्जन के दौरान गोलियां चलने लगीं, मां सरस्वती के सामने ही. गोली एक चूड़ियां बेचनेवाली महिला को लगी और उसकी मौत हो गई. कुछ गिरफ्तार होकर जेल गए, कई फरार चल रहे हैं. भक्तों की पूजा सफल हुई.
भागलपुर के कहलगांव में मूर्ति विसर्जन के समय शराब पीकर छात्रों ने अपने एक सहपाठी को जिंदा जलाने का प्रयास किया. फिलहाल वह भागलपुर के जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहा है.
पटना सिटी में भी इसी तरह माता ने विसर्जन तक भक्तों की पुकार सुनकर बुद्धि दे दी. विसर्जन के दौरान दो गुट आपस में भिड़ गए. एक की जान चली गई.
पटना में प्रतिमा विसर्जन के समय पटना विश्वविद्यालय और एनआईटी के छात्रों ने भी माता की कृपा का जमकर इस्तेमाल किया. शराब के नशे में धुत छात्रों ने जमकर मारपीट की. वे निकले ही थे हाथों में लाठी-डंडे लेकर. एनआईटी मोड़ पर कृपा का उपयोग करने लगे. दोनों ही गुट सरस्वती भक्तों का ही था. पुलिस पहुंची तो पुलिस से भी भिड़ गए. हद तो यह कि छात्रों को माता ने बमबारी करने की भी बुद्धि दे दी. आखिर बम हर कोई थोड़े ही बना सकता है. माता की कृपा से कम से कम बम बनाना तो सिख ही गए. मूर्ति विसर्जन के समय माता को उसके निर्माण और इस्तेमाल का नमूना भी दिखाया. माता भक्तों से संतुष्ट होकर विदा हुईं.
एनआईटी के पांच भक्तों को मां सरस्वती ने जेल जाने का सफल वरदान दिया. पटना विवि के भी कई छात्रों को यह वरदान मिल चुका है. पुलिस वरदान को सफल बनाने में जुटी है.
झारखंड के कोडरमा में एक घर के लोग माता सरस्वती की आराधना में लीन थे. मूर्ति विसर्जन के जुलूस में शामिल माता की भक्ति में घर की सुध भी भूल गए थे. घर में अचानक आग लग गई और दो बच्चे जलकर मर गए.
पूर्णिया में भक्तों को विसर्जन से पहले ही वरदान मिल गया. माता से भक्तों ने सदबुद्धि की प्रार्थना की. माता ने ऐसी बुद्धि दी कि दो गुटों में पूजा के दौरान झड़प हो गई. एक भक्त को बाकी भक्तों की भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला. एक अन्य की आंख में गहरी चोट आई है.
ऐसा नहीं है कि इतनी ही घटनाएं घटीं. यह तो चंद उदाहरण हैं जो मीडिया में आ सके. अगर सरस्वती माता की कृपा के आंकड़े इकट्ठे किये जाएं, तो गिनने वाला शायद गिनती भूल जाए.
चलते-चलते एक निजी जीवन से जुडी़ घटना बता दूं. तब मैं श्री बाणभट्ट मध्य विद्यालय बंधु विगहा में आठवीं कक्षा में पढ़ता था. पूजा के अगले दिन दोपहर में मेरे एक शिक्षक ने मुझे आरती की तैयारी करने को कहा. पूजा कक्ष में जाते ही देखा की पूरी मूर्ति काली हो चुकी है. आग लगने से आस-पास रखे काफी सामान जल चुके हैं. मैंने तुरंत शिक्षकों को सूचना दी. हुआ यह था कि मूर्ति को अधिक सजाने के लिए कागज की माला और साज का खूब इस्तेमाल किया जाता था. किसी सरस्वती के कृपाप्राप्त भक्त ने मूर्ति में कहीं अगरबती जलाकर खोंस दिया था. उससे आग लग गई थी. मुझे उस दिन भी पता नहीं चला कि पूरी दुनिया पर कृपा करनेवाली मांता खुद में लगी आग भी नहीं बुझा सकी.
मित्रों! सभी जानते हैं कि इधर-उधर के कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो सरस्वती पूजा मुख्य रूप से भारत में ही होती है. न जाने कितनी पीढ़ियों से आराधना करते चले आ रहे हैं. लेकिन वरदान किसे मिलता है. तमाम अविष्कार उन देशों के वैज्ञानिक कर रहे हैं, जिन्होंने कभी सरस्वती का नाम भी न सुना होगा. हम अच्छी शिक्षा के लिए उन्हीं देशों पर आश्रित हैं. बड़े लेखक उन देशों में पैदा हो रहे हैं. तमाम तरह की दवाइयां और टीके उन्हीं देशों के विद्वान बना रहे हैं. तमाम नोबेल पुरस्कार उन देशों के वैज्ञानिकों और विद्वानों को मिलते हैं. हम जिन चीजों का रात-दिन इस्तेमाल करते हैं, उनका अविष्कार करने की बुद्धि हमें कभी नहीं मिली. तमाम तकनीकों के लिए हम विदेशों पर आश्रित हैं.
लेकिन तमाम बातें जानने के बावजूद असर तो होगा नहीं. तो अपनी अक्ल में ताला लगाकर प्रेम से बोलिये विद्या-बुद्धि दात्री माता सरस्वती की जय.

सुधीर

1 टिप्पणी:

arti3743rawat ने कहा…

Marble Saraswati murtis are timeless pieces.
saraswati idol small