शनिवार, 25 जनवरी 2014

यादें गणतंत्र दिवस की

क्या आपको याद है कि आपने गणतंत्र दिवस पहली बार कब मनाया था. चाहे जब मनाया हो, इतना तो तय है कि उस समय गणतंत्र दिवस का अर्थ पता नहीं होगा. कम से कम मेरे साथ तो ऐसा ही हुआ.

पटना में मैं पिछले दिनों जिस लॉज में रहता था, वहां के झंडोत्तोलन का दृश्य
तब मैं नवादा में रहता था, जब पहली बार 26 जनवरी की याद आती है. नवादा जिले का धमौल. एक कस्बा. मेरे पिताजी श्री सर्वोदय कुमार यहां लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा संस्थापित खादी ग्रामोद्योग समिति के एक भंडार के प्रबंधक थे. मैं और मेरे बड़े भाई श्री रणवीर कुमार रवि एक स्कूल में पढ़ने जाते थे. मैं किस कक्षा में था, पता नहीं. बस स्कूल जाता था. बस इतना याद है कि स्कूल के सारे बच्चे तिरंगा लहराते हुए कतारबद्ध होकर मुहल्ले में प्रभात फेरी कर रहे थे. याद नहीं कि किनकी जय-जय के साथ नारे लगाते थे. एक नारा याद है- वीर तुम... बढ़े चलो, धीर तुम... बढ़े चलो. उस स्कूल की किसी कक्षा की पाठ्य पुस्तक में यह कविता थी. मैंने अपने बड़े भाई को घर में यह कविता याद करते कई बार सुन चुका था. इसमें और पंक्तियां थीं- न हाथ एक अस्त्र हो, न हाथ एक शस्त्र हो..... बहरहाल, प्रभात फेरी के बाद सभी विद्यार्थी स्कूल में एक जगह इकट्ठा हुए थे. शिक्षकों ने और संभवतः ऊंची कक्षा के कुछ छात्रों ने भी भाषण दिये थे. जलेबियां भी मिली होंगी, लेकिन याद नहीं आ रहा है.

उसके बाद की याद है जब मैं अपने गांव यानी औरंगाबाद के बिरहारा में आ गया. गांव के प्राथमिक विद्यालय में संभवतः तीसरी कक्षा में पढ़ता था. मेरे बड़े भाई उस समय बगल के गांव बंधु विगहा में श्री बाणभट्ट मध्य विद्यालय में पढ़ते थे. अपने भाई के साथ ही घर से सुबह निकला तिरंगा के साथ. बाहर ढेरों छात्र थे. गांव भर में प्रभात फेरी की. बड़े बच्चे महापुरूषों के नाम लेते थे और हम छोटे बच्चे केवल जय, जिंदाबाद और अमर रहें बोलते थे. एक नारा यहां भी काफी लगाया जा रहा था- जो हमसे टकराएगा... चूर-चूर हो जाएगा. उस समय इस नारे को शुद्ध ढंग से दुहरा भी नहीं पाता था, अर्थ समझना तो दूर की बात है. बड़े भाई तो अपने साथियों के साथ नारे लगाते और जयकार करते अपने साथियों के साथ अपने स्कूल चले गए. रह गए मैं और मेरे चार-पांच साथी. हम अपने स्कूल पहुंचे तो ताले लटके हुए थे. दरअसल वहां प्राथमिक विद्यालय में कभी झंडारोहण होता ही नहीं था. स्कूल से लौटा और खेलते-कूदते घर आया.

एक खास बात यह रही कि मैंने अपने जीवन में कभी कागज या प्लास्टिक का झंडा नहीं फहराया. खादी आंदोलन के माहौल में बचपन बीतने के कारण खादी के कपड़े और खादी के झंडे से अब तक अटूट रिश्ता रहा.

फिर मैं प्राथमिक विद्यालय बिरहारा से चौथी कक्षा उत्तीर्ण कर मैं पहुंचा श्री बाणभट्ट मध्य विद्यालय, बंधु विगहा. यहां गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस दोनों काफी धूमधाम से मनाया जाता था. एक सप्ताह पहले से ही राष्ट्रगान, राष्ट्रीय गीत और झंडा गीत गाने का अभ्यास कराया जाता था. झंडे बनाने और उसे लेकर चलना सिखाया जाता था. जलेबियां बनाने को स्कूल में ही हलवाई बुलवाया जाता था. हमलोग जब विद्यालय पहुंचते, वह जलेबियां बना रहा होता था. वहां स्कूल का झंडा फहराया जाता. बड़े बांस में कपड़े का बड़ा सा झंडा. प्रधानाध्यापक श्री रामनरेश सिंह झंडा फहराते थे. फिर जन-गण-मन..., वंदे मातरम..., हिंद देश का प्यारा झंडा ऊंचा सदा रहेगा... आदि का सामूहिक रूप से गायन होता था. शिक्षक उस दिवस का महत्व बताते थे. हमें देशभक्त होने के लिए प्रेरित करते थे और शुभकामनाएं देते थे. उसके बाद हम सभी छात्र-छात्रा स्कूल के प्रांगण में पंक्तियों में बैठते थे. ऊंची कक्षा के छात्र कठउत में जलेबियां लेकर बांटते थे. शिक्षक निगरानी करते रहते थे. हम सब हाथ पसारते जाते थे और बांटने वाले उनमें दो-दो छाता जलेबियां डालते जाते थे. जलेबी मिलने के साथ ही वहां गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम की पूर्णाहूति हो जाती थी.

एक विशेष बात बताता हूं. हम सभी छात्र तो अपनी जलेबियां खा जाते थे लेकिन अधिकांश छात्राएं अपने हिस्से की जलेबियां घर ले जाती थीं. पता नहीं आपने कभी गौर किया है या नहीं, लेकिन मैंने हमेशा ही यह गौर किया है कि लड़कियां अपने हिस्से को घर के सभी सदस्यों के साथ साझा करती हैं. चाहे वो दो छाता जलेबी ही क्यों न हो. त्याग की यह भावना मुझे नहीं लगता कि लड़कों या पुरूषों में कभी आ पाएगी.

मध्य विद्यालय में ही जब सातवीं या आठवीं कक्षा में था, तो एक बार प्रखंड मुख्यालय हसपुरा भी अपने सहपाठियों के साथ गया था. वहां निजी विद्यालय वाले कई तरह के कार्यक्र पेश करते थे. मंचीय कार्यक्रम भी और झांकियां भी. इनमें एक स्कूल का काफी नाम था- बेबी गार्डेन का.

फिर हाई स्कूल से अब तक के गणतंत्र दिवस में कुछ खास ऐसा नहीं, जिसे साझा किया जाए. हां, मनाता जरूर हूं. समय के साथ गणतंत्र दिवस को लेकर समझ विकसित होती रही. या यह भी कह सकते हैं कि धारणाएं और आग्रह बनते गए. धमौल के स्कूल से अब तक.

शेष यादें फिर कभी...

आप सभी को गणतंत्र दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं! आइये संकल्प लें कि हम अपने संविधान के उद्देश्यों को पूरा करने में यथाशक्ति योगदान देंगे.

सुधीर

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