शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

एक होकर लड़े थे मोहम्मद साहब और अश्वथामा के वंशज


हेडिंग पढ़कर सोच रहे होंगे कि यूं ही बात बना रहा है। भला मोहम्मद साहब और महाभारत के पात्र अश्वथामा में क्या संबंध हो सकता है? और खासकर अभी तो देश में जो माहौल चल रहा है, उससे दोनों को जोड़ना खतरनाक भी हो सकता है। मगर क्या करें, मैंने पहली कक्षा में ही अपने स्लेट पर पेंसिल रखकर कसम खाई थी कि जो हर हाल में सच कहकर रहूंगा। मजाक नहीं, अब सीरियस होकर पढ़िये।

कर्बला की लड़ाई तो आप जानते ही होंगे। वही लड़ाई, जिसमें खुद को खलीफा घोषित किये हुए यजीद ने मोहम्मद साहब के भूख-प्यास से तड़पते हुए नाती हुसैन और अन्य परिजनों व सेवकों को अपनी फौज से मरवा डाला था। सामने फरात नदी बह रही थी, लेकिन हजरत हुसैन और उनके सभी परिजन और साथी एक-एक बूंद पानी के लिए तड़प रहे थे।

तो जजमान, इतिहासकारों का यह कहना है कि हुसैन के पक्ष में हिंदुओं ने भी लड़ाई में भाग लिया था। दावा किया जाता है कि यह बात 16 आना सच है। अब सवाल है कि वे हिंदू कौन थे? बताया जाता है कि वे अश्वथामा के वंशज थे।

यह तो आप जानते ही होंगे कि महाभारत युद्ध के अंत में सोए हुए पांडव पुत्रों की हत्या से क्रोधित होकर भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वथामा को कभी नहीं मरने का शाप दे दिया था। यह भी गजब है न कि लोग अमर होने के लिए क्या-क्या नहीं करते, दूसरी ओर अमर होना ही अश्वथामा के लिए शाप हो गया।

बहरहाल, कहा जाता है कि हुसैन के पक्ष में लड़ने वाले हिंदू अश्वथामा के वंशज थे। शापित होने के बाद अश्वथामा भटकते-भटकते अरब-ईरान आदि देशों में पहुंच गये थे। वहां उनका वंश बढ़ा और फिर उनके वंशजों को जब पता चला कि हुसैन कर्बला के मैदान में न्याय और हक के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं तो वे हुसैन के पक्ष में युद्ध करने पहुंच गये। युद्ध में हुसैन और उनके साथियों के साथ सभी हिंदू भी वीरगति को प्राप्त हो गये।

अब फिर वही बात कहियेगा कि बाबा ई बात कहां से ले आये? तो जजमान, ये पूरी कहानी को नाटक के रूप में लिखा है कथा सम्राट प्रेमचंद ने। किताब का नाम है कर्बला। शुरू में पूरी कहानी भी लिखी है। उसमें मुंशीजी ने लिखा है, ‘पाठक इसमें हिंदुओं को प्रवेश करते देखकर चकित होंगे, परंतु वह हमारी कल्पना नहीं है, ऐतिहासिक घटना है। आर्य लोग वहां कैसे और कब पहुंचे, यह विवादग्रस्त है। कुछ लोगों का ख्याल है, महाभारत के बाद अश्वथामा के वंशधर वहां जा बसे थे। कुछ लोगों का यह भी मत है, ये लोग उन हिंदुओं की संतान थे, जिन्हें सिकंदर यहां से कैद कर ले गया था। कुछ हो, इस बात के ऐतिहासिक प्रमाण हैं कि कुछ हिंदू भी हुसैन के साथ कर्बला के संग्राम में सम्मिलत होकर वीरगति को प्राप्त हुए थे।

यह वही लड़ाई है, जिसकी याद में मुहर्रम का मातम मनाया जाता है।
नाटक में प्रेमचंद ने इनका परिचय अश्वथामा के वंशजों के रूप में कराया है। पांचवें अंक के तीसरे दृश्य में ये सभी मारे जाते हैं। हजरत हुसैन के मुंह से नाटक में इन हिंदुओं को लेकर ये बातें कहीं गई हैं- ऐ हकपरस्तों! हम तुम्हें सलाम करते हैं। अगर्चे तुम मोमिन नहीं हो, लेकिन जिस मजहब के पैरो ऐसे हकपरवर, ऐसे इंसाफ पर जान देनेवाले, जिंदगी को इस तरह नाचीज समझनेवाले मजलूमों की हिमायत में सिर कटानेवाले हों, वह सच्चा और मिनजानिब खुदा है। वह मजहब दुनिया में हमेशा कायम रहे और नूरे-इस्लाम के साथ उसकी भी रोशनी चारों ओर फैले।

हुसैन आगे कहते हैं - खुदा करे इस मैदान में हमारे और आपके खून से जिस इमारत की बुनियाद पड़ी है, वह जमाने की नजर से हमेशा महफूज रहे, वह कभी वीरान न हो, उसमें से हमेशा नगमे की सदाएं बुलंद हों और आफताब की किरणें उस पर चमकती रहें।

उनके मारे जाने पर हुसैन कहते हैं - ये उस पाक मुल्क के रहनेवाले हैं, जहां सबसे पहले तौहीद की सदा उठी थी। खुदा से मेरी दुआ है कि इन्हें शहीदों में ऊंचा रुतबा दे। वह चिता में शोल उठे! ऐ खुदा, यह सोज इस्लाम के दिल से कभी न मिटे, इस कौम के लिए हमारे दिलेर हमेशा अपना खून बहाते रहें। यह बीज, जो आज बोया गया है, कयामत तक फलता रहे।


नाटक में सातों हिंदू भाई भारत माता के गीत गाते हुए प्रस्थान करते हैं। इससे पहले पहले अंक के सातवें दृश्य में नाटक में पहली बार उनका जिक्र आता है। वे खुद को अश्वथामा का वंशज बताते हुए तय करते हैं कि न्याय व्रत का पालन करने के लिए वे यजीद के खिलाफ हुसैन के पक्ष में युद्ध करेंगे।

इस किताब की भूमिका में प्रेमचंद ने यह भी लिखा है, ‘हिंदू-मुस्लिम वैमनस्य का एक कारण यह भी है हम हिंदुओं को मुस्लिम महापुरुषों के सच्चरित्रों का ज्ञान नहीं। जहां किसी मुसलमान बादशाह का जिक्र आया कि हमारे सामने औरंगजेब की तस्वीर खिंच गई। लेकिन अच्छे और बुरे चरित्र सभी समाजों में सदैव होते आए हैं और होते रहेंगे। मुसलमानों में भी बड़े-बड़े दानी, बड़े-बड़े धर्मात्मा और बड़े-बड़े न्यायप्रिय बादशाह हुए हैं।

तो जजमान, ये किस्सा अब यहीं पर खतम करते हैं। और प्रवचन-कथा के लिए हेडिंग देखकर क्लिक कीजिए और पढ़िये। दूसरों को भी शेयर करके पढ़वाइये, पुण्य होगा।

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