शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

एक होकर लड़े थे मोहम्मद साहब और अश्वथामा के वंशज


हेडिंग पढ़कर सोच रहे होंगे कि यूं ही बात बना रहा है। भला मोहम्मद साहब और महाभारत के पात्र अश्वथामा में क्या संबंध हो सकता है? और खासकर अभी तो देश में जो माहौल चल रहा है, उससे दोनों को जोड़ना खतरनाक भी हो सकता है। मगर क्या करें, मैंने पहली कक्षा में ही अपने स्लेट पर पेंसिल रखकर कसम खाई थी कि जो हर हाल में सच कहकर रहूंगा। मजाक नहीं, अब सीरियस होकर पढ़िये।

कर्बला की लड़ाई तो आप जानते ही होंगे। वही लड़ाई, जिसमें खुद को खलीफा घोषित किये हुए यजीद ने मोहम्मद साहब के भूख-प्यास से तड़पते हुए नाती हुसैन और अन्य परिजनों व सेवकों को अपनी फौज से मरवा डाला था। सामने फरात नदी बह रही थी, लेकिन हजरत हुसैन और उनके सभी परिजन और साथी एक-एक बूंद पानी के लिए तड़प रहे थे।

तो जजमान, इतिहासकारों का यह कहना है कि हुसैन के पक्ष में हिंदुओं ने भी लड़ाई में भाग लिया था। दावा किया जाता है कि यह बात 16 आना सच है। अब सवाल है कि वे हिंदू कौन थे? बताया जाता है कि वे अश्वथामा के वंशज थे।

यह तो आप जानते ही होंगे कि महाभारत युद्ध के अंत में सोए हुए पांडव पुत्रों की हत्या से क्रोधित होकर भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वथामा को कभी नहीं मरने का शाप दे दिया था। यह भी गजब है न कि लोग अमर होने के लिए क्या-क्या नहीं करते, दूसरी ओर अमर होना ही अश्वथामा के लिए शाप हो गया।

बहरहाल, कहा जाता है कि हुसैन के पक्ष में लड़ने वाले हिंदू अश्वथामा के वंशज थे। शापित होने के बाद अश्वथामा भटकते-भटकते अरब-ईरान आदि देशों में पहुंच गये थे। वहां उनका वंश बढ़ा और फिर उनके वंशजों को जब पता चला कि हुसैन कर्बला के मैदान में न्याय और हक के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं तो वे हुसैन के पक्ष में युद्ध करने पहुंच गये। युद्ध में हुसैन और उनके साथियों के साथ सभी हिंदू भी वीरगति को प्राप्त हो गये।

अब फिर वही बात कहियेगा कि बाबा ई बात कहां से ले आये? तो जजमान, ये पूरी कहानी को नाटक के रूप में लिखा है कथा सम्राट प्रेमचंद ने। किताब का नाम है कर्बला। शुरू में पूरी कहानी भी लिखी है। उसमें मुंशीजी ने लिखा है, ‘पाठक इसमें हिंदुओं को प्रवेश करते देखकर चकित होंगे, परंतु वह हमारी कल्पना नहीं है, ऐतिहासिक घटना है। आर्य लोग वहां कैसे और कब पहुंचे, यह विवादग्रस्त है। कुछ लोगों का ख्याल है, महाभारत के बाद अश्वथामा के वंशधर वहां जा बसे थे। कुछ लोगों का यह भी मत है, ये लोग उन हिंदुओं की संतान थे, जिन्हें सिकंदर यहां से कैद कर ले गया था। कुछ हो, इस बात के ऐतिहासिक प्रमाण हैं कि कुछ हिंदू भी हुसैन के साथ कर्बला के संग्राम में सम्मिलत होकर वीरगति को प्राप्त हुए थे।

यह वही लड़ाई है, जिसकी याद में मुहर्रम का मातम मनाया जाता है।
नाटक में प्रेमचंद ने इनका परिचय अश्वथामा के वंशजों के रूप में कराया है। पांचवें अंक के तीसरे दृश्य में ये सभी मारे जाते हैं। हजरत हुसैन के मुंह से नाटक में इन हिंदुओं को लेकर ये बातें कहीं गई हैं- ऐ हकपरस्तों! हम तुम्हें सलाम करते हैं। अगर्चे तुम मोमिन नहीं हो, लेकिन जिस मजहब के पैरो ऐसे हकपरवर, ऐसे इंसाफ पर जान देनेवाले, जिंदगी को इस तरह नाचीज समझनेवाले मजलूमों की हिमायत में सिर कटानेवाले हों, वह सच्चा और मिनजानिब खुदा है। वह मजहब दुनिया में हमेशा कायम रहे और नूरे-इस्लाम के साथ उसकी भी रोशनी चारों ओर फैले।

हुसैन आगे कहते हैं - खुदा करे इस मैदान में हमारे और आपके खून से जिस इमारत की बुनियाद पड़ी है, वह जमाने की नजर से हमेशा महफूज रहे, वह कभी वीरान न हो, उसमें से हमेशा नगमे की सदाएं बुलंद हों और आफताब की किरणें उस पर चमकती रहें।

उनके मारे जाने पर हुसैन कहते हैं - ये उस पाक मुल्क के रहनेवाले हैं, जहां सबसे पहले तौहीद की सदा उठी थी। खुदा से मेरी दुआ है कि इन्हें शहीदों में ऊंचा रुतबा दे। वह चिता में शोल उठे! ऐ खुदा, यह सोज इस्लाम के दिल से कभी न मिटे, इस कौम के लिए हमारे दिलेर हमेशा अपना खून बहाते रहें। यह बीज, जो आज बोया गया है, कयामत तक फलता रहे।


नाटक में सातों हिंदू भाई भारत माता के गीत गाते हुए प्रस्थान करते हैं। इससे पहले पहले अंक के सातवें दृश्य में नाटक में पहली बार उनका जिक्र आता है। वे खुद को अश्वथामा का वंशज बताते हुए तय करते हैं कि न्याय व्रत का पालन करने के लिए वे यजीद के खिलाफ हुसैन के पक्ष में युद्ध करेंगे।

इस किताब की भूमिका में प्रेमचंद ने यह भी लिखा है, ‘हिंदू-मुस्लिम वैमनस्य का एक कारण यह भी है हम हिंदुओं को मुस्लिम महापुरुषों के सच्चरित्रों का ज्ञान नहीं। जहां किसी मुसलमान बादशाह का जिक्र आया कि हमारे सामने औरंगजेब की तस्वीर खिंच गई। लेकिन अच्छे और बुरे चरित्र सभी समाजों में सदैव होते आए हैं और होते रहेंगे। मुसलमानों में भी बड़े-बड़े दानी, बड़े-बड़े धर्मात्मा और बड़े-बड़े न्यायप्रिय बादशाह हुए हैं।

तो जजमान, ये किस्सा अब यहीं पर खतम करते हैं। और प्रवचन-कथा के लिए हेडिंग देखकर क्लिक कीजिए और पढ़िये। दूसरों को भी शेयर करके पढ़वाइये, पुण्य होगा।

यजीद का सेनाधिकारी, जो हुसैन के पक्ष में लड़ा


कर्बला की जंग से तो परिचित होंगे ही। यह मोहम्मद साहब के नाती हजरत हुसैन और तब के खलीफा यजीद की सेना के बीच लड़ा गया था। तीसरे खलीफा उसमान ने अपने संबंधी मुआबिया को अपने बाद खलीफा बना दिया। इस पर मोहम्मद साहब के दामाद हजरत अली के साथ मुआबिया का युद्ध भी हुआ, लेकिन अली जीत नहीं सके। मुआबिया ने अपने अंत समय में अपने अय्याश बेटे यजीद को खलीफा घोषित कर दिया। यजीद को हमेशा हजरत अली के बेटे हजरत हुसैन से भय लगा रहता था। इस चक्कर में उसने हुसैन को हमेशा के लिए रास्ते से हटाने की सोची। कूफा वालों की पुकार पर मदीना से कूफा जा रहे हजरत हुसैन को यजीद की फौज ने कर्बला के मैदान के किनारे घेर लिया। हुसैन के साथ बच्चे, बुजुर्ग और महिलाओं समेत कुल संबंधी और सेवक मिलाकर 72 लोग थे, जिन्हें यजीद के 22 हजार सैनिकों ने घेर लिया था। पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।


जब हुसैन को यजीद के सैनिकों ने घेर रखा था, उसी दौरान सेना के अधिकारी हुर हुसैन से मिल गया था। यजीद की सेना में हुर सहित बहुत सारे लोग दिल से हुसैन के पक्ष में थे। परंतु, लालच और यजीद के खौफ के कारण वे यजीद के पक्ष में लड़े। हुर को यकीन था कि समझौते का कोई न कोई रास्ता निकल आयेगा और हजरत हुसैन से युद्ध नहीं करना पड़ेगा। जब सुलह की तमाम कोशिशें नाकाम हो गईं तो उसे रहा नहीं गया। वह हुसैन के पक्ष में हो गया। हुसैन के पक्ष से हुर ही सबसे पहले यजीद की सेना से लड़ने गये थे। वे जितना बन सका लड़े। कइयों को मार डाला। लड़ते-लड़ते उनका घोड़ा मारा गया तो हुसैन ने उनके लिए तुरंत दूसरा घोड़ा भेजा। हुर का पूरा जिस्म तीरों से छलनी हो गया और आखिर गिर पड़े। उन्होंने हुसैन की गोद में अपना दम तोड़ा।


यह है कर्बला की जंग और मुहर्रम मनाने की असली वजह


मुहम्मद साहब ऐसी व्यवस्था कर गये थे कि उनके बाद इस्लाम का नेतृत्व खलीफा करेंगे और ये सर्वसम्मति से चुने जाएंगे। इस तरह से उनके बाद उमर फारूक, अबू बकर और उसमान चुने गये। उसमान की हत्या हो गई और उनके बाद हजरत अली खलीफा बने। अली मोहम्मद साहब की बेटी फातिमा जोहरा के पति थे। उसमान के एक रिश्तेदार मुआबिया ने अली की खिलाफत को नहीं माना और उसने सेना तैयार कर अली पर आक्रमण कर दिया। मुआबिया जीत भी गया। अली अगली लड़ाई की तैयारी कर रहे थे कि एक हत्यारे ने उनका कत्ल कर दिया। 

मुआबिया ने अपने बेटे यजीद को अगला खलीफा घोषित कर दिया। अली के दो बेटे थे हजरत हसन और हजरत हुसैन। हसन पहले ही मर चुके थे। हुसैन बहुत बड़े विद्वान, इंसाफ पसंद, नेकदिल, ज्ञानी, दयालु, वीर और धार्मिक व्यक्ति थे। दूसरी ओर यजीद स्वार्थी, क्रूर, विलासी और छल कपट में निपुण था। वह बार-बार मदीने में रह रहे हुसैन से खुद को यानी यजीद को खलीफा स्वीकार करने की शपथ लेने (बैयत) लेने का दबाव डालने लगा। हुसैन ने हर बार इंकार कर दिया। 

कूफा के लोग हुसैन को खलीफा के रूप में देखना चाहते थे। वे यजीद के अत्याचारों से परेशान थे। उन्होंने हुसैन से कई बार गुहार लगाई कि वे वहां आकर खलीफा बनकर उन्हें यजीद के जुल्मों से बचाएं। फिर भी हुसैन खून-खराबे से बचने के लिए वहां नहीं गये। कूफा के लोगों ने अंत में खुदा का वास्ता देकर उन्हें आने पर मजबूर कर दिया। हुसैन ने खुद वहां पहुंचने से पहले अपने आने का संदेश अपने चचेरे भाई मुसलिम से भेजा। उधर यजीद को खबर मिल चुकी थी कि हुसैन कूफा आने वाले हैं। वहां के सूबेदार ओबैद बिन जियाद ने मुसलिम को अपने सैनिकों से घेरकर कत्ल कर दिया। हुसैन को बुलाने वाले या तो जमीन-जायदाद के लालच में आकर चुप हो गये या फिर डर के मारे छिपे रहे। 

मदीना से हुसैन भी कूफा के लिए रवाना हुए। अपने 72 संबंधियों और सेवकों के साथ। इनमें कई महिलाएं और शिशु भी शामिल थे। 18 दिन की यात्रा के बाद वे नाहनेवा के समीप कर्बला मैदान में पहुंचे। कूफा के आमिल यानी गवर्नर ने उन्हें वहीं रोक दिया। यजीद ने महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों सहित 72 लोगों को पराजित करने के लिए वहां 22 हजार सैनिक भेज दिये। इनमें से छह हजार सिपाही को फरात नदी के पहरे पर लगाया गया कि हुसैन को पानी नहीं लेने दिया जाये। तीन दिन बाद हुसैन के खेमे के लोग प्यास से छटपटाने लगे। 

हुसैन की सुलह और शांति की तमाम कोशिशों को यजीद के सेनापतियों ने ठुकरा दिया। मोहर्रम की 10वीं तारीख की सुबह से युद्ध शुरू हुआ। एक ओर वही 72 लोग और दूसरी ओर 22 हजार सैनिकों की फौज। हुसैन के पक्ष के जितने पुरुष से सभी लड़ते हुए मारे गये। हुसैन के सात साल के भतीजे और हसन के नवजात पोते की भी हत्या कर दी गई। हत्या के बाद उनके शवों के साथ भी दुर्गति की गई। सिर काटकर पैरों से उछाले गये। मुहम्मद साहब के अनुयायियों ने ही उनके दामाद और फिर नाती और अन्य रिश्तेदारों को मार डाला। कुछ ऐसे ही अत्याचार बाद में औरंगजेब ने गुरु तेगबहादूर व उनके साथियों और गुरु गोविंद सिंह के बच्चों पर किया था।
हुसैन की महान शहादत की याद में मुहर्रम मनाया जाता है। 


सोमवार, 3 अगस्त 2015

आदरणीय अन्ना हजारे जी को चिट्ठी


आदरनीय अन्ना हजारे जी
सादर परनाम
आपको मालूम हो कि हम कुशल हैं और आपकी कुशलता चाहते हैं। आशा करते हैं कि आप भी कुशल और स्वस्थ होंगे।

आपको मालूम हो कि हम कई दिन से आपको चिट्ठी लिखे लागी सोच रहे थे, लेकिन टाइम नहीं मिलने और कभी मूड नहीं होने के कारण नहीं लिखे। लेकिन अब लिखे बिना मन नहीं मान रहा है, इसलिए लिख रहे हैं। हमको ई भी नहीं पता है कि ई चिट्ठी आप तक पहुंचेगी कि नहीं। बाकी लिखना बहुते जरूरी बुझा रहा है, इसलिए लिख रहे हैं।

आपको मालूम कि हम आपके आंदोलन में, जब आपको जेहल में डाल दिया गया था, सड़क पर उतरे थे। नारा भी लगाये थे और गांधी मैदान के किनारे करगिल चौक के पास भाषण भी दिये थे। हमारे साथ हमारे कई दोस्त भी ओकरा में सामिल हुए थे। अपन मोबाइल से आपके आंदोलन के समर्थन में बहुत सा मैसेज भी किए थे।
आपको मालूम कि आप बोलते थे कि लोकपाल लागू हो जाने से भ्रष्टाचार से मुक्ति मिल जाएगी। समुले भ्रष्टाचार नहीं खतम होगा, तइयो ढेरे खतम हो जाएगा। बाद में यूपीए ओला लोकपाल के आप सही मानके सहमति भी दे दिये। कह दिये कि मोटामोटी आपका लोकपाल भी एही था।

अन्ना हजारे साहेब। आपको मालूम हो कि इससे कोची बदलाव हुआ, ऊ हमनी के आझु तक एको पइसा समझ में नहीं आया। हमनी के तो कनहूं कोनो फरके न बुझा रहा है।

आपको मालूम कि सब जगह पहिलहीं जइसा कमीशनखोरी आऊ रिश्वतखोरी चल रहा है। ढेरे जगह तो पहिले से जादे बढ़ गया है। घूस नहीं देंगे तो हमनी के कोनो कामे नहीं होगा। जीना मोहाल हो जाएगा।

आपको मालूम कि बिना दलाल के पकड़ले आय, जाति और आवासीय सर्टिफिकेट तक नहीं बन रहा है। कर्मचारी अपन खर्चा पानी लेले बिना खेत के रसीद नहीं काटता है। एलपीसी बनावे के तो खुला रेट चल रहा है। बैंक ओलन सौ बार दउड़एला के बादो केसीसी बिना दलाल के नहीं बनाता है।

आपको मालूम कि मुखिया लोग इंदिरा आवास के भी रेट भी बढ़ा दिया है। कहता है कि पहिलका रेट में पोसाई नहीं पड़ता है। कमीशन देवे से मना किये तो ई बार हमनी के फसल छति ओला मुआवजा खाली अखबारे में मिल के रह गया। रासन किरासन भी दो-दो तीन-तीन महीना पर मिल रहा है। ओकरो में डीलर के जेतना मन करता है, ओतने देता है।

ई तो बेक्तिगत काम के बता रहे हैं। सरकारी काम में तो भ्रष्टाचार के कोनो सीमे नहीं है। पंचायत भवन में छत नहीं है। 10 फीट के खड़ौंजा आऊ पीसीसी दू फीट में बना के ठेकेदार आऊ ओभरसियर पूरा पइसा भंजा ले रहा है। मुखियाजी के चांपाकल से पानी उनका बिल भंजे के दिन तक ही गिरता है। आऊ सोलर लाइट तो लगावते-लगावते बुत जाता है। केतने पुल आऊ सड़क कागजे पर बन के खतम हो गया। हॉस्पीटल के दवाई बजार में बिका रहा है।
आपको मालूम हो कि बिना सलामी देले थाना में अभियो एफआईआर नहीं लिखाता है। पैरवी-उरवी से लिखाइयो गया तो फिर कोनो कार्रवाई नहीं होती है। पइसा देके अभियुक्त के नाम केस से हटा दिया जाता है आऊ ओइसहीं डाइरी भी लिखाता है। पंडीजी बियाह सादी में डेगेडेग ओतना पइसा नहीं मांगते हैं, जेतना कोट-कचहरी में मांगता है। एकरा बादो बात-बात पर जेहल में ढुकावे के धमकी देता है।

आपको मालूम कि अभी कहेंगे तो कहेला बड़ी बात बाकी है। इसकूल में माट साब मीड डे मील, छात्रवृत्ति आऊ पोसाक रासि के पइसा में घोलटनियां मार रहे हैं। आंगनबाड़ी के हाल भरसक तो आप भी जानते होंगे। साइकिल ओला पइसा कुछ मासटर साहेब रख ले रहे हैं आऊ लइकन फर्जी बिल देखा के बचल पइसा ले रहा है। ओहू पइसा से ढेरे लइकन साइकिल के बजाय मोबाइल खरीद ले रहा है। बड़का-बड़का घोटाला तो आप अखबार में पढ़बे करते होंगे। नया पुल उद्घाटन से पहिलहीं ढह जाता है तो मंत्री जी कहते हैं कि नदी के बदमासी है।

हम कहां सिकाइत करें, पते नहीं चल रहा है। आपका लोकपाल कहां बइठा है, कोनो ठिकने नहीं है। कुछो करके भ्रष्टाचार तनियोमानी कम करवाइये। आप ई मामला में बहुते बड़का नाम हैं। अगर एही हाल रहा तो बाद में सोचिए क्या होगा।

कोनो आदमी भविष्य में कहियो भ्रष्टाचार हटावे के नाम लेगा चाहे आंदोलन करेगा तो सब आपका परतुक देके उसका मजाक उड़ाएगा। कुछो कीजिए न अन्ना हजारे जी!

अब आऊ कोची लिखें। गलती-सलती माफ कीजिए। कम को अधिक समझिए।

बड़ों को परनाम आऊ छोटों को सुभ प्यार
                               आपका एगो परसंसक

                                    सुधीर

मंगलवार, 2 सितंबर 2014

डायन प्रथा को बढ़ावा दे रहे पुरोहित

एक ओर सरकार, प्रशासन और बुद्धिजीवी तबका डायन प्रथा को खत्म करने के प्रयास में जुटा है, दूसरी ओर पुरोहित बिरादरी पूरे जोर-शोर से डायन प्रथा को बढ़ावा देने में लगा हुआ है। पुरोहितों और उनकी ढकोसलेबाजी का प्रमुख समर्थक मीडिया भी इसमें अप्रत्यक्ष रूप से खूब समर्थन कर रहा है।

पहले हम जानते हैं कि डायन प्रथा का मूल आधार क्या है? डायनों के बारे में कहा जाता है कि वह मंत्र पढ़कर (देहातों में बान मारना भी कहा जाता है) किसी की जान ले ले सकती है या फिर बीमार कर दे सकती है। मंत्र के सहारे वह ऐसे कारनाम कर सकती है, जो और किसी भी तरह संभव ही नहीं है।
विज्ञान के विकास ने और मानवाधिकारों के प्रति बढ़ती जागरुकता ने इन ढकोसलों के खिलाफ काफी काम किया है। लोगों को लगातार लंबे अरसे तक समझाने के बाद काफी हद तक यह समझाने में सफलता मिली है कि डायन का असर केवल मन का वहम है। ऐसा कुछ नहीं होता। बीमारियों और मौतों के पीछे दूसरे कारण होते हैं।
परंतु, दूसरी ओर पुरोहित लगातार मंत्रवाद को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं। वे दिन-रात इस थ्योरी में लगे रहते हैं कि मंत्रों में शक्ति होती है। मंत्रों का असर होता है। हालांकि मंत्रों के असर का षड्यंत्रों का काफी हद तक पर्दाफाश हो चुका है, लेकिन पुरोहित वर्ग इसे फिर से लोगों के मन में बिठाने में लगा है। इसमें पूरा साथ दे रहा है मीडिया।
लगभग सभी समाचार पत्रों और चैनलों में मंत्रों की महिमा बार-बार बताई जा रही है। फलाने मंत्र से यह लाभ होता है, फलाने मंत्र से शक्ति बढ़ती है, फलाने मंत्र से पुत्रों की रक्षा होती है। कई बार तो यह चुटकुला की हद तक हास्यास्पद हो जाता है। जैसे हाल ही में नागपंचमी के दिन एक समाचार पत्र में छपा कि फलाने मंत्र के जाप से सर्पदंश का असर कम हो जाता है। पाखंड फैलाने वाला यह आलेख आधे पेज पर छपा था। यह लिखने वाला पुरोहित और छापने वाला संपादक दोनों ही जानते हैं कि यह कोरा पाखंड फैलाने से अधिक कुछ नहीं है।

इसी तरह चैनलों और अखबारों में देवी-देवताओं को खुश करने वाले मंत्र लगातार बताये जा रहे हैं। कई दीर्घायु होने के मंत्र भी हैं। हालांकि हाल के वर्षों में देवताओं को खुश करने में लगे भक्त ही थोक में मर रहे हैं या मारे जा रहे हैं। केदारनाथ, वैष्णो देवी, बोलबम यात्रा आदि इसके ढेर सारे उदाहरण हैं।
यह सर्वविदित है कि पाखंड फैलाने के लिए पुरोहितों ने ढेर सारे संगठन बना रखे हैं। इन्हीं में से एक है गायत्री परिवार। यह संगठन हरिद्वार में मंत्रों की शक्ति पर कथित रूप से अनुसंधान कर रहा है। आप यहां जाकर देखें तो पता चलेगा कि पाश्चात्य सुविधाओं से लैस यह कथित प्रयोगशाला लोगों को मूर्ख बनाने के अलावा और कुछ नहीं करता। इसके समर्थक और भक्त गायत्री मंत्र के ढेर सारे प्रभाव गिना देते हैं। मेधावी होने से लेकर दीर्घायु होने तक के। इनके पाखंड का खुलासा इसी से हो जाता है कि यह संस्थान आज तक एक साधारण वैज्ञानिक भी पैदा नहीं कर सका। हालांकि यह एक यूनिवर्सिटी भी चलाता है- देव संस्कृति विश्वविद्यालय। गायत्री मंत्रों की शक्ति का आलम यह है कि चंद वर्ष पहले गायत्री मंत्रों के उच्चारण के बीच भगदड़ मची और दर्जन भर भक्तों की मौत हो गई।

पुरोहित वर्ग लगातार ढोंग ढकोसले फैलाने के उपाय तलाशते रहता है। कभी गणेश को दूध पिलाकर, कभी पेड़ में देवी-देवताओं के चेहरे दिखाकर। और फिर ढेर सारे पर्व-त्यौहार तो हैं ही।
लेकिन मंत्रों का प्रभाव बताना इन सबमें सबसे अधिक खतरनाक है। यह सीधे तौर पर डायन प्रथा और झाड़-फूंक को बढ़ावा देना है। अपनी दुकानदारी चलाने के लिए पुरोहित वर्ग यह लगातार कर रहा है। शर्मनाक है कि इसमें मीडिया घराने भी सहयोग कर रहे हैं। तिलक लगाने वाले ढोंगियों का बाजार गुलजार हो जाएगा, यह उतना खतरनाक नहीं है। लेकिन मंत्रों का असर अगर लोगों को दिमाग में बैठने लगा तो फिर डायन के नाम पर गरीब गरीब और लाचार औरतों की शामत आ जाएगी। उन पर अमानवीय जुल्म तेजी से बढ़ने लगेंगे।
इसी तरह हवन आदि कर्मकांडों को भी बढ़ावा देने पर जोर दिया जा रहा है। चंद दिन पहले लालू जी हृदय का ऑपरेशन कराने भर्ती हुए तो समर्थकों ने पटना में हवन किया। हवन में इतनी ही शक्ति है तो फिर लालूजी को समझाना चाहिए था कि वे अस्पताल में भर्ती होने की मूर्खता क्यों कर रहे हैं? देवता ऐसे ही वरदान देकर ठीक कर देंगे।
ऐसा ही नजारा क्रिकेट विश्वकप के दौरान भी दिखता है। प्रशंसक टीम को जीतने के लिए हवन करते हैं। जब टीम हारती है तो क्रिकेटरों पर गुस्सा करते हैं। अरे मूर्खों, जब तुम्हारे देवताओं की जीत दिलाने की औकात नहीं थी कि तो बेचारे क्रिकेटर तो साधारण मनुष्य हैं। अखबार वाले भी देवी-देवताओं की बजाय खिलाड़ियों को कोसने लगते हैं। इससे यह तो साफ जाहिर हो जाता है कि सबको बता है कि हवन और प्रार्थना सिवाय ढोंग-ढकोसला के और कुछ नहीं है। लेकिन पुरोहित प्रपंच जारी रखने के लिए यह आवश्यक है। चाहे देश जितना बदहाल हो जाए। मंत्र की शक्ति साबित करने के पाखंड को बढ़ावा देते रहेंगे।

पुरोहितों को इससे क्या? उन्हें तो सिर्फ अपनी दुकान की फिक्र है। वे अपनी दुकान चलाने के लिए साईं को लेकर तो धर्मसभा कर सकते हैं, लेकिन एक बार भी डायन प्रथा का विरोध नहीं कर सकते। लेकिन वे भी बेचारे क्या करें, डायन प्रथा को झूठा कहेंगे तो उनके मंत्रों के पाखंड का पर्दाफाश हो जाएगा। उनकी दुकान बंद होने लगेगी। और मीडिया भी आजकल दुकानदारी ही हो गया है। उसे चाहिए मसाला और विज्ञापन चाहे निर्मल जैसे चुटकुलेबाज बाबा को ही क्यों न दिन-रात चलाना पड़े। चाहे इसके लिए लोगों को जागरुक करने की बजाय अंधविश्वास ही क्यों न फैलाना पड़े।
तो फिर हल क्या है? पुरोहितों को तो कोई समझा नहीं सकता कि अब पाखंड फैलाना बंद करो। जो लोग डायन प्रथा को गलत मानते हैं, उन्हें मुखर होना पड़ेगा। डायन प्रथा की जड़ पर प्रहार करना होगा। वह यह है कि लोगों को बताया जाए कि मंत्रों में कोई शक्ति नहीं होती। यह पुरोहितों की चाल है अपनी दुकानदारी चमकाने के लिए।

सुधीर

मंगलवार, 15 जुलाई 2014

अलग-अलग पावर के देवी-देवता

सावन आते ही शंकरजी के भक्त शिवमंदिरों में उमड़ पड़े हैं। मुहल्ले से लेकर देवघर और फिर अमरनाथ तक। मुहल्ले वाले शंकरजी का भाव जो सालों भर रहता है, उससे थोड़ा ही बढ़ पाता है। आस्थावान भक्त देवघर या फिर अमरनाथ वाले शंकरजी के पास जाना पसंद करते हैं।

काफी अधिक छानबीन करने पर पता चला है कि दरअसल मुहल्ले वाले शंकरजी कम पावर के होते हैं। जाहिर सी बात है कि मंदिर छोटा है तो शंकरजी का पावर भी कम ही रहेगा। यूं समझ लीजिए कि मुहल्ले के शंकरजी 12 वोल्टेज के हैं, अगल-बगल के मंदिर वाले 24 वोल्टेज के, देवघर वाले 36 वोल्टेज के और अमरनाथ वाले को आप एक सोलर प्लांट के बराबर पावर वाले शंकरजी हैं। घर के कैलेंडर वाले को तो कोई पूछता भी नहीं, क्योंकि सबको पता होता है कि उनमें पेंसिल बैट्री के बराबर भी पावर नहीं है।
हो सकता है कि कुछ भक्त इसपर विश्वास नहीं करें। लेकिन यह तो देखने की चीज है। आखिर सभी शंकरजी बराबर वोल्टेज के ही होते तो कोई अधिक कष्ट उठाकर, अधिक पैसे खर्च करके मुहल्ले वाले को छोड़कर देवघर और अमरनाथ क्यों जाता?
अलग-अलग शंकरजी का भक्तों से उम्मीदें भी अलग-अलग तरह की होती हैं। जैसे मुहल्ले वाले शंकरजी को आप कुएं या चापाकल का पानी भी चढ़ा सकते हैं। वहीं देवघर वाले शंकरजी केवल गंगाजी का पानी पसंद करते हैं। अमरनाथ के शंकरजी किसी भी तरह के पानी को चढ़ाया जाना पसंद नहीं करते।
मुहल्ले के शंकरजी के पास आप पैदल, साइकिल से या किसी तरह जा सकते हैं। देवघर वाले शंकरजी चाहते हैं कि भक्त सुल्तानगंज तक चाहे जैसे आएं लेकिन सुल्तानगंज से देवघर तक पैदल ही आएं। पैदल आनेवाले भक्तों का भी शंकरजी ने दो वर्ग बना दिया है। जिन्हें बड़ा वरदान या तुरंत वरदान चाहिए उन्हें डाकबम के नाम से 24 घंटे में पहुंचना होता है, बाकी के लिए कोई पूरा सावन पड़ा है। हालांकि यह अभी तक पता नहीं चल सका है कि उस भारी भीड़ में देवघर वाले शंकरजी डाकबम और साधारण भक्तों का रजिस्टर मेंटेन कैसे करते हैं। वहीं अमरनाथ वाले बर्फानी बाबा के पास भक्त किसी भी तरह से पहुंच सकते हैं। हालांकि वहां पहुंचने के लिए भक्त बर्फानी बाबा से अधिक चीन सरकार के मोहताज हैं।

शोध में यह भी पाया गया है कि बाकी दिनों की अपेक्षा सोमवार को शंकरजी वरदान देने और मनोकामना पूरा करने के मूड में अधिक होते हैं। सावन में शंकरजी फुल चार्ज रहते हैं। सावन में शंकरजी यह भी देखते रहते हैं कि कहीं कोई भक्त मांस-मछली तो नहीं खा रहा है। बाकी दिन खाते-पीते रहने से शंकरजी कोई लेना-देना नहीं है।
एक खास बात यह भी पता चला है कि शंकरजी को अपने पूरे शरीर पर पानी डलवाना बिल्कुल भी पसंद नहीं है। वे चाहते हैं कि भक्त और भक्तिन केवल उनके लिंग पर ही पानी डालें।
शोध में एक बात सामने आई कि पिछले साल केदारनाथ वाले शंकरजी और इंद्र महाराज में झगड़ा हो गया। इंद्र भारी पड़े। शंकरजी ने अपना घर तो बचा लिया, लेकिन भक्तों को बचा पाने में विफल रहे। उनके आस-पास के कई कम वोल्टेज वाले देवी-देवता भी इंद्र के कोप में बह गए। यूं कह लीजिए कि गेहूं के चक्कर में घुन पिस गया, गेहूं बच गया।
पावर की बात केवल शंकर भगवान तक ही सीमित नहीं है। यह बाकी देवताओं पर भी लागू होता है। जैसे घर में भी हनुमानजी की मूर्ति होती है या फिर कैलेंडर होता है। लेकिन बात वही वोल्टेज की है। मंदिर वाले हनुमानजी अधिक वोल्टेड के होते हैं। इनका वरदान देने का मूड मंगलवार के दिन अधिक होता है। शोधार्थियों के अनुसार रामनवमी के दिन हनुमानजी फुल चार्ज रहते हैं।
फुल रिचार्ज के मामले में बाकी देवी-देवताओं ने साल में अपना एक-एक दिन बना रखा है। जैसे कृष्ण जी की पूजा आमतौर पर लोग सालों भर करते रहते हैं। भजन कीर्तन भी करते रहते हैं। साथ में भक्त अपनी फरमाइश, दुख-तकलीफ आदि भी बताते रहते हैं। लेकिन जन्माष्टमी के दिन कृष्णजी फुल रिचार्ज रहते हैं। उस दिन भक्त अपनी फरमाइश जरूर बताते हैं। यहां तक कि रोज दिखने वाले सूर्य देव भी अपना वरदान वाला अटैची केवल छठ में ही खोलते हैं।
दुर्गा, काली, सरस्वती, लक्ष्मी, गणेश आदि भी साल में एक बार फुल चार्ज होकर वरदान देते हैं। शोधार्थियों का एक दल सरकार से मांग करनेवाला है कि परीक्षाएं सरस्वती पूजा के दिन ली जाएं। कई भक्तों को जब स्थानीय देवी-देवताओं के वोल्टेड पर भरोसा नहीं रहता तो वे वैष्णो देवी तक जाते हैं।
नए देवताओं में भी यह प्रवृति बढ़ी है। जैसे साईं बाबा का कैलेंडर से वरदान का केवल डेमो मिलता है। पूरा वरदान सिरडी जाने पर मिलता है।

ऐसा नहीं है कि ऐसा सिर्फ हिंदुओं में होता है। मुस्लिम रमजान में रोजा रखें या सालों भर पांचों वक्त का नमाज अदा करें, लकिन उन्हें अल्लाह अपनी इनायत का डेमो वर्जन ही देता है। फुल वर्जन पाने के लिए उन्हें हज करनी पड़ती है। हिंदू देवताओं की तरह अल्लाह शुक्रवार यानी जुम्मा के दिन फुल चार्ज होता है। मस्जिद में नमाज पढ़ने पर डायरेक्ट खुदा से कनेक्शन जुड़ता है, कहीं दूसरी जगह से पढ़ते हैं तो यह एक्सटेंशन की तरह होता है। यानी खुदा ध्यान दे भी सकता है और नहीं भी। ऐसा भी कह सकते हैं कि मस्जिद में नमाज पढ़ने पर खुदा अधिक वोल्टेज से इनायत बरसाता है और दूसरी जगह से नमाज पढ़ने पर कम वोल्टेज का। शुक्रवार के दिन खुदा फुल चार्ज रहता है।
ईसाइयों के साथ भी यही हाल है। रविवार को यीशु मसीह फुल चार्ज रहते हैं। आप हाथ से क्रॉस बनाकर कहीं भी यीशु को याद कर सकते हैं, लेकिन चर्च में याद करने पर यीशु अधिक वोल्टेज का वरदान देते हैं।
शोध की बाकी बातें बाद में। तो आप भी पूजा कीजिए, लेकिन देख लीजिए की आप जिसकी पूजा कर रहे हैं, उस देवी या देवता या अल्लाह या यीशु का वोल्टेज कितना है और वे फुल चार्ज हैं कि नहीं। वरदान मिलना तय है। फुल वर्जन न सही, डेमो वर्जन ही। और हां, देवी-देवताओं के मामले में किसी भी बात को मजाक में न लें।

सुधीर

शुक्रवार, 20 जून 2014

बलात्कार को बढ़ावा देते हैं धर्म

कुछ दिन पहले मैंने फेसबुक पर एक पोस्ट में लिखा था कि धर्म बलात्कार को बढ़ावा देते हैं। इसपर कई लोगों ने विरोध जताया और बहुतों ने बेबुनियाद बताया। मैं इस आलेख के माध्यम से तथ्यों के साथ सारी बातें फिर से लिख रहा हूं।
पोस्ट यह था-
(हिंदू धर्म और इस्लाम में तो बलात्कार को कहीं गलत बताया ही नहीं गया है। इंद्र ने अहिल्या से बलात्कार किया, लेकिन वह देवताओं का राजा बना रहा। सजा मिली भी तो पीड़िता अहिल्या को ही। विष्णु ने तुलसी का यौन शोषण किया था। जुए के शौक के लिए बीवी को दावं पर लगाने वाले को धर्मराज कहा गया। मर्यादा पुरुषोत्तम राजा ने अपनी पत्नी को जंगल में भिजवा दिया यह जानते हुए भी कि वहां कोई भी हादसा हो सकता है। सूर्य, धर्मराज, पवन और इंद्र ने कुंती के साथ जो किया, उसे रेप के अलावा और क्या कहा जा सकता है। द्रोपदी को भी उसकी रजामंदी के बिना पांच भाइयों से शादी करवा दी गई। इसे आजीवन गैंगरेप की सजा कह सकते हैं।
इस्लाम में तो रेप पीड़िता को ही कसूरवार ठहरा दिया जाता है। यहां तक कि शरियत के नाम पर भी गैंगरेप करने के मामले भी प्रकाश में आ चुके हैं। दुबई में शरियत के हवाले से दोषी के बराबर ही पीड़िता को भी सजा देने का प्रावधान है। गाजी बनने की चाह में जितने भी मुसलमान दूसरे मुल्कों पर हमला करते थे, वे वहां की औरतों को गुलाम बना लेते थे और अपने सैनिकों में बांट देते थे। उन महिलाओं के साथ बर्बरता से गैंगरेप किया जाता था। शर्मनाक यह है कि मौलाना इस्लाम के हवाले से इसकी इजाजत देते थे।
ईसा की मां मरियम जब कुंवारी थी तभी ईसा का जन्म हुआ था। यीशु को आज तक पिता का नाम नहीं मिला। संभव है मरियम के साथ किसी ने रेप किया हो।)
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रामायण
अब चलिए इसे तथ्यों के आइने में देखते हैं। रामायण हिंदुओं का सबसे पवित्र ग्रंथों में से एक है। जिसने भी रामायण पढ़ी होगी, वह इस बात को जरूर जानता होगा कि इंद्र ने अहिल्या से बलात्कार किया था। इसमें एक और देवता ने भी साथ दिया था- चंद्रमा ने। चंद्रमा को देवता बताने वाले हिंदू ऋषियों के ज्ञान पर बात में चर्चा कीजिएगा। पहले इस रेपकांड पर चर्चा। रामायण के अनुसार, अहिल्या गौतम ऋषि की पत्नी थी। हिंदू धर्म में सबसे महान देवता को माना जाता है। आज भी कोई बहुत अच्छा आदमी होता है तो कह दिया जाता है कि एकदम देवता है। तो महान देवताओं का राजा था इंद्र। अब राजा की महानता देखिए। वह लंबे समय से अहिल्या की खूबसूरसती पर फिदा था और किसी तरह उसके साथ सेक्स करना चाहता था। लेकिन उसे किसी तरह मौका नहीं मिल रहा था। आखिरकार जब बिल्कुल बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने चंद्रमा की मदद ली। रात में ही सुबह का एहसास कराकर गौतम को स्नान के लिए नदी भिजवा दिया और खुद अंधेरे में इंद्र ने अहिल्या के साथ सेक्स किया। जब इसका पता चला तो गौतम ने इंद्र और चंद्रमा को जो दंड दिया सो दिया, सबसे बड़ा दंड अहिल्या को दिया। उसे पत्थर बनने का शाप दिया। अब कोई बताए कि अहिल्या का इसमें क्या दोष था? पूरे रामायण में किसी ने भी इस नाइंसाफी के खिलाफ कभी आवाज नहीं उठाई। यानी धोखे से अगर कोई रेप किया तो भी पीड़िता को ही सजा।

शरीयत
अब हिंदू धर्म की दूसरी कथाओं से पहले इस्लाम में इसी तरह के प्रावधान के बारे में जान लीजिए। दुबई का नाम सबने सुना होगा। वहां शरीयत का कानून लागू है। शरीयत शुरा शब्द से बना है। कुरान के अध्यायों को शुरा कहते हैं। यानी कुरान के अनुसार लागू कानून शरीयत है। वहां नार्वे की एक महिला मार्टे डेब्रो डालेल्व से रेप हुआ। जब उसने पुलिस से शिकायत की तो उसपर गैर मर्द के साथ सेक्स करने का आरोप लगाकर 14 महीने की सजा सुना दी गई। आश्चर्यजनक है कि इस मामले में दोषी को तीन महीने की सजा सुनाई गई। अब शरीयत का कानून जानिए। संयुक्त अरब अमीरात का कानून कहता है कि रेप तभी माना जा सकता है जब रेपिस्ट खुद आपना गुनाह कबूल ले या फिर रेप करते समय कम से कम चार व्यस्क मुसलमान पुरूषों ने देखा हो। पूरी घटना जानने के लिए इन लिंकों पर क्लिक करें। दैनिक भास्कर पर पढ़िए - (http://www.bhaskarhindi.com/News/19150/.html) या नवभारत टाइम्स पर पढ़ें- (http://navbharattimes.indiatimes.com/world/asian-countries/norwegian-woman-who-reported-being-raped-in-dubai-is-jailed-for-16-months/articleshow/21186472.cms) या (http://www.meribitiya.com/bitiya-khabar/40-2010-11-04-08-29-13/1323-saudi-arab-rape-jail-women-norway.html) या आज तक पर पढ़िए- http://aajtak.intoday.in/story/norwegian-woman-who-reported-being-raped-in-dubai-is-jailed-for-16-months-1-736414.html आप तलाशेंगे तो यह खबर और भी कई साइटों पर मिल जाएगी। खबर में यह भी बताया आस्ट्रेलिया की एक युवती एलिसिया गली ने भी कुछ दिन पहले गैंगरेप की शिकायत की थी। इस पर उसे आठ महीने की सजा सुना दी गई।
अब बताइये कि कौन रेपिस्ट अपना गुनाह कबूल करेगा या फिर रेप के कितने मामलों में चार लोग मौजूद रहते हैं। अगर चार लोग मौजूद ही होगा तो कोई रेप कैसे करेगा? तब भले ही कर सकता है, जब चारों उस रेप में शामिल हों या गैंगरेप करें। यह भी संभव है कि चार लोग रेप होते देख लें तो चुप रहने के लिए रेपिस्ट उन्हें भी रेप करने का ऑफर दे दे या वही लोग ऑफर रख दें। इसके अलावा इस कानून का यह भी अर्थ है कि अगर कहीं कोई लड़की/औरत एकांत में  दिखे तो उसका रेप कर सकते हैं। कोई देखेगा नहीं तो सजा नहीं होगी। यानी एकांत में मिल जाने पर किसी भी महिला के साथ रेप और कोई देख ले तो उसे भी अपना साथी बनाकर गैंगरेप करने की पूरी छूट! यह है शरीयत का कानून यानी कुरान का आदेश। शरीयत के इसी कानून के चलते अफगानिस्तान में कई रेप पीड़िताओं को ही दोषी मानकर पत्थर से मार-मारकर जान मार देने के मामले प्रकाश में आते रहे हैं।

विष्णु पुराण
अब विष्णु की कहानी। हिंदु देवताओं के तारणहार भगवान विष्णु। एक राक्षस था शंखचूड़। वह देवताओं से पराजित ही नहीं हो रहा था। विष्णु ने शस्त्रों के साथ मनोवैज्ञानिक लड़ाई लड़ी। वह जानता था कि कोई चाहे जितना बलवान हो, उसकी पत्नी के साथ रेप हो जाए तो वह तत्काल उतना शक्तिशाली नहीं रह जाता। विष्णु ने शंखचूड़ की पत्नी वृंदा के साथ दुष्कर्म कर दिया और उसे अगले जन्म में तुलसी के रूप में पत्नी होने का वरदान दिया।
किसी भी सभ्य दुनिया या संस्कृति में इसे कभी सही नहीं माना जा सकता कि दुश्मन की बीवी के साथ दुष्कर्म किया जाए। क्या इसे जायज माना जाएगा कि भारत पाकिस्तान में जंग हो और नवाज शरीफ की पत्नी के साथ नरेंद्र मोदी दुष्कर्म करें या फिर नवाज शरीफ प्रणब मुखर्जी की पत्नी के साथ रेप करें? क्या इसे कोई सही कहा जा सकता है कि जॉर्ज बुश सद्दाम हुसैन की पत्नी का रेप करें या बराक ओबामा ओसामा बिन लादेन की पत्नी के साथ बलात्कार करें? दुश्मनी के बनाने औरतों से रेप कैसे जायज ठहराया जा सकता है? लेकिन हमारे धर्म न केवल इसे सही ठहराते हैं, बल्कि आज तक विष्णु पूज्य बने हुए हैं।

महाभारत
अब द्रोपदी की कहानी। अमर कथा महाभारत। सबसे पहले द्रोपदी की शादी। स्वंयवर में तो द्रोपदी ने अर्जुन से शादी की थी। लेकिन ससुराल पहुंचते ही उसे अर्जुन के शेष चारों भाइयों से भी शादी करनी पड़ी। हिंदुओं में एक आम मान्यता है कि छोटे भाई की पत्नी को बहन या बेटी समझो और बड़े भाई की पत्नी यानी भाभी को मां के समान समझो। लेकिन यहां तो पांडवों ने भाभी और भावज दोनों को ही बीवी की ही नजर से देखा। कथा है कि पांडवों की मां (नकुल और सहदेव की सौतेली मां) कुंती ने द्रोपदी को बिना देखे ही कह दिया कि पांचों आपस में बांट लो। इसे ही शादी का आधार बताया जाता है। यह कैसा आधार है? मां ने कह दिया तो खुद पांडवों की नैतिकता कहां मर गई थी? क्या वे कह नहीं सकते थे कि भावज या भाभी से शादी नहीं कर सकते हैं। कहा जाता है कि कुंती की बात सत्य साबित करने के लिए पांडवों ने ऐसा किया। पूरे महाभारत में युद्धिष्ठिर के अलावा किसी के सत्यवादी होने की चर्चा ही नहीं है। कुंती का तो बिल्कुल ही नहीं। एक अहम सवाल यह भी है कि द्रोपदी की इच्छा क्यों नहीं पूछी गई? क्या कोई सभ्य लड़की कभी चाहेगी कि ससुराल पहुंचते ही उसके पति के सारे भाई उससे शादी करें और हनीमून मनाएं? एक बात और। अगर पांडव कौरवों की तरह 100 भाई होते तो? या अगर कुंती ने यह कह दिया होता कि ठीक है, आधे तुम लोग आपस में बांट लो और आधा पड़ोसियों में बांट दो। या यह कह दिया होता कि मकानमालिक का काफी किराया हो गया है, जो भी लाए हो, मकानमालिक को किराए में दे दो।
सच तो यह है कि द्रोपदी आजीवन सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई। बलात्कार भी उसने किया, जिसे हिंदू समाज सत्य और न्याय का पुजारी मानता है-पांडवों ने। ससुराल में नई नवेली लड़की निरिह होती है। पांडवों ने उसका फायदा उठाया। तेलगु के एक साहित्यकार ने महाभारत के भाष्य में यह लिखा है कि द्रोपदी इतनी सुंदर थी कि उसको लेकर पांडवों में फूट पड़ सकती थी। इसलिए कुंती ने यह रास्ता निकाला।( साहित्यकार का नाम याद नहीं आ रहा है, दिनकर के संस्कृति के चार अध्याय में इसका जिक्र है)। महाभारत की नायिका द्रोपदी की हालत का अंदाजा लगाइये। ससुराल पहुंचते ही पांच पति। सभी साथ रहते हैं। किसी नौकरी या ड्यूटी पर भी जाने की फिक्र नहीं।
बाद में यह नियम बना कि सारे पति बारी-बारी से एक-एक सप्ताह द्रोपदी के साथ रहेंगे। लेकिन इस नियम की चर्चा भी महाभारत में तब आई है, जब पांडव 12 साल के वनवास पर थे। उससे पहले तक द्रोपदी के साथ वे कैसे रहे और द्रोपदी कैसे रही, इस पर व्यास मौन हैं। पाठकों को अपने ढंग से समझने के लिए छोड़ दिया गया है। क्या ऐसा नहीं लगता कि वनवास तक गैंगरेप से काफी प्रताड़ित हो चुकी द्रोपदी ने एक सप्ताह वाला नियम बनाया?

महाभारत
धर्मनिष्ठ पांडव वनवास कैसे गए, यह भी सभी जानते हैं। धर्मराज युद्धिष्ठिर ने जुए में पत्नी को ही दावं पर लगा दिया। जो जुए में किसी की बीवी को जीतेगा वह उसके साथ क्या करेगा, यह दावं पर बीवी को लगाने वाले जुआरियों को भी पता होता है। अब बताइये कि जुए में जीती द्रोपदी को सरेआम नंगा करने पर उतारू दुर्योधन अधिक गलत है या फिर दावं पर लगाने वाला युद्धिष्ठिर? यह धर्मराज की करतूत थी। यानी महाभारत का सबसे धर्मनिष्ठ पात्र अपनी बीवी को जुए में दावं पर लगाता है। अब धर्म का अनुसरण कैसे किया जाए?
पांडवों के जन्म की कहानी सभी जानते होंगे। कुंती को वरदान मिला कि वह जिस देवता को बुलाना चाहेगी, वह आ जाएंगे। पहले सूर्य देवता आए। कमसिन कुंती डरकर जाने को कहने लगी। सूर्यदेव ने कहा कि वह आते हैं तो यूं ही नहीं जाते। कुछ न कुछ देकर ही जाते हैं। सूर्यदेव ने कुछ के नाम पर कुंती को बेटा दिया-कर्ण। कुंती ने कर्ण को जन्म दिया था। अब कोई औरत किसी बच्चे को कैसे जन्म दे सकती है, यह सभी लोग जानते हैं। सूर्य देवता कुछ और भी दे सकते थे, लेकिन उन्होंने कुंती को पुत्र दिया। जाहिर सी बात है कि डरती हुई कुंती के साथ सूर्यदेव ने रेप किया। दिलचस्प है कि उसी रेपिस्ट सूर्यदेव से आज भी हिंदू स्त्रियां छठ करते हुए पुत्र का वरदान मांगती हैं। कहीं सचमुच वरदान देने आ गए तो...। कुंती के अन्य पुत्रों की भी कमोबेश यही कहानी है। यह भी हो सकता है कि कुंती ने बाद में अन्य देवताओं से स्वेच्छा से सेक्स किया हो।
मर्यादा पुरूषोत्तम राम ने सीता को लक्ष्मण के हाथों जंगल में भेज दिया। जंगल में सीता की सुरक्षा का कोई बंदोबस्त नहीं था। अगर वहां सीता के साथ कोई हादसा नहीं हुआ तो यह महज एक संयोग है। राम ने तो ऐसे हालात बना दिए थे कि सीता के साथ रेप या गैंगरेप कुछ भी हो सकता था।

रामायण
रामायण की एक और बात। सभी जानते हैं कि साहित्य में कई बातें इशारों में लिखी जाती हैं। जिक्र है कि राम के कहने पर लक्ष्मण ने सूर्पनखा का नाक-कान काट लिया। नाक-कान कटना मतलब इज्जत लेना होता है। बहुत संभव है कि वाल्मीकि ने मुहावरे का इस्तेमाल किया हो।

इस्लाम
अब फिर से इस्लाम की चर्चा। इतिहासकार भी सहमत हैं कि मुस्लिम आक्रमणकारियों ने जब भारत पर आक्रमण किया, तब बड़ी संख्या में हिंदू महिलाओं के साथ गैंगरेप किया था। औरों की बात छोड़िए। तैमूर लंग ने अपनी आत्मकथा माल्फुजत ए तैमूरी या तुजुक ए तैमूरी लिखी थी। हिंदी में उसका अनुवाद दिल्ली के आंसू के नाम से विश्व सुलभ साहित्य ने प्रकाशित किया है। उसमें तैमूर ने लाखों हिंदू महिलाओं के साथ उसके सिपाहियों द्वारा रेप और गैंगरेप की बात कबूली है। दिलचस्प है कि इसमें मौलवी तैमूर और उसके सिपाहियों को बढ़ावा देते थे। मौलवियों ने उसे गाजी की उपाधि देने का लालच दिया था। तैमूर लंग की आत्मकथा में कई बार जिक्र है कि जीते गए इलाके के तमाम हिंदुओं का कत्ल करने के बाद औरतों को सैनिकों में बांट दिया जाता था।

इस्लाम
अफ्रीकी मुस्लिम देशों में मुसलमान लड़कियों का भी खतना किए जाने का अनिवार्य नियम है। इसके लिए वहां के मौलवियों और मौलानाओं ने फतवे भी जारी कर रखे हैं। यह प्रथा इतनी बढ़ती गई कि उन देशों से ब्रिटेन में पहुंची महिलाएं भी अब अपनी लड़कियों को खतना करवा रही हैं। इसे रोकने के लिए ब्रिटेन में कानून बनाना पड़ा। लड़कियों के खतना में पेशाब करने वाले छिद्र के अलावा योनी बाहर का पूरा मांस काट दिया जाता है। इसके बाद पेशाब करने भर छिद्र छोड़कर पूरी योनी को सिल दिया जाता है। इससे कितना दर्द होता होगा, अनुमान लगाया जा सकता है। उलेमाओं का कहना है कि इससे औरतों में सेक्स की इच्छा खत्म हो जाती है। सच है कि औरतें आजीवन एक ऐसे दर्द से जुझती हैं जिसे किसी से कह भी नहीं सकतीं। यह भी सच है कि सेक्स की इच्छा खत्म हो जाती है और सेक्स करने पर असहनीय दर्द होता है। लेकिन शादी के बाद उन्हें मन रहे या न रहे, सेक्स तो करना ही पड़ता है। यानी बिना मर्जी का सेक्स। असहनीय दर्द भरी यातना। यानी आजीवन बलात्कार। इन लिंकों पर क्लिक करें और पढ़ें। बीबीसी पर- http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2013/05/130523_female_genital_mutilation_castration_adg.shtml एबीपी न्यूज पर पढ़ें - http://abpnews.abplive.in/world/2014/01/19/article248641.ece/%E0%A4%B2%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%96%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%B5-%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%A4#.U6QQ25RdXpk तहलका पर पढ़ें - http://www.tahalkanews.com/?q=node/124 या इसे पढ़ें - http://translate.google.co.in/translate?hl=hi-IN&langpair=en%7Chi&u=http://www.forwarduk.org.uk/key-issues/fgm

कुरान
इस्लाम में एक प्रथा है हलाला। हलाला को आप वाइफ स्वैपी भी कह सकते हैं यानी बीवी की अदलाबदली। मसला यह है कि अगर किसी व्यक्ति ने अपनी बीवी को तलाक, तलाक, तलाक कह दिया तो तलाक हो गया। चाहे उसने नींद में कही हो या गुस्से में कही हो, मजाक में कही हो या नशे में कही हो, या किसी गफलत में या चाहे पूरे होशोहवास में। अब अगर उसे अपनी पत्नी के साथ रहना हो तो फिर से निकाह करना होगा। लेकिन कुरान इसकी इजाजत नहीं देता। नियम यह है कि तलाकशुदा स्त्री को पहले किसी दूसरे मर्द के साथ निकाह कर कम से कम एक रात की बीवी बनना होगा और उससे तलाक लेकर फिर पहले मर्द के साथ शादी करनी होगी। साथ में यह भी जानिए कि इस्लाम में तलाक मर्द ही दे सकता है औरत नहीं। अगर दोनों के एक-दो बच्चे हों और गुस्से में मर्द ने तलाक शब्द तीन बार दुहरा दिए तो इस्लाम के अनुसार अब दोनों साथ नहीं रह सकते। इसके लिए जरूरी है कि औरत किसी और की बीवी बने। इसमें औरत की रजामंदी की कोई जरूरत नहीं है। उसे अपने बच्चे और शौहर के पास आने के लिए किसी दूसरे मर्द के साथ सेक्स करना ही होगा। यह बलात्कार को बढ़ावा नहीं तो और क्या है? यह तो तब भी किया जा सकता है जब दो मर्दों को अपनी बीवियों का अदलाबदली करने का मन करे। ऐसे में दोनों अपनी-अपनी बीवी को तलाक दे दे और बीवियों की इच्छा हो या न हो, वे हलाला के नाम पर एक-दूसरे की बीवी के साथ सेक्स करें। इसीलिए इसे मैंने वाइफ स्वैपी भी कहा।
अब बताइये कि धर्म बलात्कार को बढ़ावा देते हैं या नहीं। आलेख थोड़ा लंबा हो गया, समय मिला तो अगली दफा कभी अन्य धर्मों पर चर्चा।
सुधीर