इकबाल ने भले ही कहा हो- मजहब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना, परंतु सच्चाई इसके विपरीत है। मजहब के नाम पर इस धरती पर जितने पाप हुए, उतने किसी भी अन्य कारण से नहीं। यह बात केवल भारत के लिए ही नहीं वरन पूरे विश्व के लिए लागू होती है। वर्तमान समय में भी विश्व में जो तबाही जारी है, उसका सबसे बड़ा कारण धर्म ही है।
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India 1947 |
वर्तमान युग की सबसे बड़ी समस्या आतंकवाद है। इसमें सबसे अधिक मुसलमानों का नाम आता है। आतंक में शामिल मुसलमान खुद को जेहादी अर्थात धार्मिक योद्धा बताते हैं। उनका यह मानना है कि जो भी व्यक्ति इस्लाम को नहीं मानता वह काफिर है और उसे जिंदा रहने का हक नहीं है। वे इसी में अपना जीवन दावं पर लगाये रहते हैं। उनका विश्वास है कि अगर वे इसी तरह कथित जेहाद में मारे जाएंगे तो खुदा उन्हें जन्नत में अपने करीब जगह देगा। वहां 70 कुंवारी लड़कियां जो कि हूर कहलाती हैं और बेहिसाब खूबसूरत हैं, उनकी सेवा में दिलोजान से लगी रहेगी। अब इसी सुख को पाने के लिए वे दुनियां भर में कत्लेआम करते चल रहे हैं। दिलचस्प है कि अब महिलाएं भी जेहाद में हिस्सा लेने लगी हैं। परंतु, अभी तक किसी मौलाना ने यह नहीं बताया कि जन्नत में 70 तंदुरूस्त मर्द उनकी सेवा करेंगे या नहीं।
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talibani law |
धर्म के नाम पर अफगानिस्तान में तालिबान ने कब्जा जमा लिया और फिर उसी नाम पर वहां अल कायदा ने भी अपना अड्डा जमा लिया। अल कायदा जहां पूरे विश्व में आतंकी कार्रवाई करने लगा, वहीं तालिबान ने अफगानिस्तान के आम लोगों का जीवन नर्क से भी बदतर कर दिया। मजहब के नाम पर महिलाओं के न्यूनतम अधिकार भी छिन लिये गये। उल्टे-सीधे फतवे जारी कर वहां के समाज को तहस-नहस कर दिया गया। मजहब के नाम पर लोगों को गुलाम से बदतर कर दिया गया।
विश्व में आज की तारीख में सर्वाधिक चर्चित दो देशों के बीच का युद्ध इजराइल व फिलिस्तीन का युद्ध है। यह दो देशों का युद्ध कम और दो धर्मों का युद्ध अधिक है। इजराइल यहुदियों का देश है और फिलिस्तीन मुसलमानों का। दोनों के बीच स्थायी युद्ध विराम न होने के पीछे का मुख्य कारण धर्म ही है। अगर कोई तीसरा मुल्क इजराइल के पक्ष में बोलता है तो उससे दुनिया भर के मुसलमानों को बुरा लगता है। इसी तरह अगर कोई देश फिलिस्तीन का पक्ष लेता है तो दुनिया भर के यहुदी भौंह टेढ़ी करने लगते हैं।
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Isrial-Filistin war |
रूस और चेचेन्या के साथ भी यही समस्या है। चेचेन्या मुस्लिम बहुल प्रांत है। वहां के अलगाववादी इसी आधार पर रूस से अलग मुल्क स्थापित करना चाहते हैं। इसे लेकर अभी तक रूस और चेचन विद्रोहियों के बीच हजारों निर्दोषों का खून बह चुका है।
यह आज तक नहीं पता चला कि कहीं युद्ध हो रहा हो या दंगा हो रहा हो और वहां धर्म के नाम पर शांति स्थापित हो गयी। हां, इसके जरूर उदाहरण भरे पड़े हैं कि धर्म के कारण अनगिनत शांत जगहों पर युद्ध अथवा दंगे शुरू हो गये।
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Shia Sunni riot |
भारत खुद इसका बहुत बड़ा उदाहरण है। भारत गुलाम भी हुआ तो अंग्रेजों की बहादुरी के कारण नहीं बल्कि हमारी इसी रंजिश के कारण। भारत में आकर उन लोगों ने देख लिया कि धर्म के कारण भारतीयों में एकता नहीं है। इसका लाभ वे भारत को गुलाम बनाने के वक्त और उसके बाद तक करते रहे। जब भी भारतीय स्वाधीनता संग्राम चरम पर पहुंचता, अंग्रेज सांप्रदायिक दंगे को हवा दे देते। इसकी आग में गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे न जाने कितने भारत के लाल जला दिये गये। धर्म के नाम पर आजादी के वक्त मुल्क खंडित हो गया। जिन लोगों ने साथ मिलकर अंग्रेजों से लड़ाइयां लड़ीं, धर्म के नाम पर एक दूसरे के खून के प्यासे हो गये। देश की आजादी के वक्त जो कुछ हुआ वह इस बात को आज तक चीख-चीख कर कहता है- मजहब ही है सिखाता आपस में वैर रखना। लाखों लोगों का कत्ल इसलिए कर दिया गया क्योंकि वे दूसरे धर्म के थे। हिंदुओं ने मुसलमानों की हत्या की क्योंकि उनकी नजर में मुसलमान होना गुनाह हो गया। मुसलमानों ने हिंदुओं व सिक्खों का कत्ल किया क्योंकि उनकी नजर में हिंदू व सिक्ख होना गुनाह हो गया था। जितने भारतीयों की हत्या अंग्रेजों ने नहीं की थी, उससे कई गुना अधिक भारतीयों की हत्या भारतीयों ने ही धर्म के नाम पर कर दी। जिस लाहौर, सिंध, ढाका आदि के लोग जंगेआजादी में एक साथ मिलकर हिंदुस्तान जिंदाबाद का नारा लगाते थे वे आजादी मिलते ही हिंदुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाने लगे। स्त्रियों की इज्जत करने वाले इस देश में उन्हें नंगा करके सरेबाजार घुमाया गया। छोटी-छोटी बच्चियों तक के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। सब कुछ मजहब के नाम पर। करोड़ों लोग देखते ही देखते विस्थापित होकर खुशहाल गृहस्थ से भिखारी बन गये।
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Riot in Gujrat |
यह सिलसिला फिर भी नहीं थमा। आजाद हिंदुस्तान में भी लगातार दंगे होते रहे। खास यह कि जहां के लोग जितने अधिक धार्मिक थे, वहां उतने ही अधिक दंगे हुए। धर्म के काम जहां हुए कि दंगे साथ में हुए। उदाहरण में एक बहुत बड़ा धार्मिक काम लें- राम मंदिर बनाना। अगर धर्म मिलजुल कर रहना सिखाता तो उस समय पूरे देश में एकता स्थापित हो जाना चाहिए था। परंतु, शुरूआत ही हुई बाबरी मस्जिद ढाहने से। इसमें कोई दो राय नहीं कि यह पूरी तरह से भारतीय तालिबानियों ने किया। असली तालिबान ने अफगानिस्तान के बमियान में बुद्ध की प्रतिमा ढहा दिया और उसके भारतीय संस्करण ने बाबरी मस्जिद तोड़ दिया। राम बाबरी मस्जिद टूटने से पहले कितना दुख में थे और अब वे कितना सुख में हैं यह तो कोई आज तक नहीं बता सका, अलबत्ता देश भर में सांप्रदायिक दंगे जरूर शुरू हो गये। मजहब वैर बढ़ाते रहे।
हाल के गुजरात के दंगे को ही देखिए। पहले गोधरा में कारसेवकों को ट्रेन में जिंदा जला दिया गया। यहां धर्म ही उन लोगों के लिए काल बन गया। उसके बाद जलाने वाले तो पकड़े नहीं जा सके, परंतु बाकी के लिए धर्म मौत का पैगाम लेकर आया। खून की होली फिर शुरू हो गयी। हिंदू और मुसलमान होना गुनाह साबित होने लगा।
सभी जानते हैं कि भारत में चंद गिने-चुने मुसलमानों को छोड़कर सभी यहीं के मूल निवासी हैं, जो विभिन्न काल व परिस्थितियों में मुसलमान बन गये। अब वे दंगा के नाम पर एक दूसरे का कत्ल करते हैं। कौन जानता है कि कातिल और कत्ल होने वाला आपस में नजदीकी रिश्तेदार नहीं होंगे। लेकिन मजहब ने सोचने समझने की शक्ति खत्म कर दी है। अभी भी भारत में लोगों के बीच दूरी और नफरत का सबसे बड़ा कारण धर्म ही है। धर्म के कारण ही एम एफ हुसैन व तसलीमा नसरीन जैसी विभूतियों की हत्या का फतवा जारी किया जाता है।
आतंकवादी देश भर में बम ब्लास्ट करते फिर रहे हैं। वे ऐसा अपने मजहब की आज्ञा मानकर कर रहे हैं। दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद समेत देश के लगभग सभी महत्वपूर्ण शहरों में कई बार बम विस्फोट हो चुके हैं। हजारों निर्दोषों की जानें जा चुकी हैं। इन हमलों में शामिल गुनाहगार अगर कभी पकड़े भी जाते हैं तो वे साफ तौर पर कहते हैं कि उन्हें इसका कोई अफसोस नहीं। मरने वालों में सभी धर्म के लोग शामिल होते हैं। अभी तक कहा जाता रहा है कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता। लेकिन अब तो साफ दिखने लगा है कि आतंक में धर्म ही महत्वपूर्ण कारक है। मुसलमानों के आतंकी कार्रवाई के जवाब में हिंदू भी आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने लगे हैं। हैदराबाद में हुए विस्फोट ने इसकी कलई खोल दी है।
राजनीति को भी गंदा करने धर्म की सबसे बड़ी भूमिका रही है। देश तो विखंडित हुआ ही, उसके बाद भी धर्म के नाम गंदी राजनीति होती रही। मुसलमान नेता अल्पसंख्यक के नाम पर राजनीति करते रहे। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसी पार्टियों ने उन्हें कुछ दिया तो नहीं, पर उन्हें सब्जबाग दिखाकर कुर्सी हासिल करती रहीं। अभी जम्मु कश्मीर की विधानसभा में अफजल गुरू की फांसी माफी का प्रस्ताव पेश किया जा रहा था, जो कि भारतीय संसद पर हमले का मुख्य अभियुक्त है। इसी तरह भाजपा के सबसे बड़े नेता आडवाणी आतंकी गतिविधि में शामिल साध्वी प्रज्ञा से जेल में मिलने गये थे। देश ही नहीं पूरे विश्व ने देखा कि हेमंत करकरे मुंबई आतंकी हमले के दौरान मुठभेड़ में शहीद हुए, लेकिन कांग्रेस के एक नेता ने यह बयान दिया कि उनकी मौत हिंदू संगठन ने की है। यह न सिर्फ शहीद का घोर का अपमान था बल्कि आतंकियों को बचाने की भी साजिश थी। एक बात तो साफ है कि किसी भी आतंकी गतिविधि को देखें, उसकी जड़ में धार्मिक कट्टरता है, जो कि धर्म से पैदा हुआ।
कश्मीर में आज जो हालात हैं, उसके पीछे भी बहुत बड़ा कारण धर्म ही है। पहले वहां से लाखों कश्मीरी पंडितों को धर्म के नाम पर विस्थापित होना पड़ा। अब वहां अलगाववाद की गूंज धर्म के कारण ही उठ रही है।
भारत में सदियों से समाज के बड़े तबके को अछूत माना जाता रहा है। यह भी धर्म का ही नाम देकर किया गया है। उन्हें धर्म की दुहाई देकर बताया जाता है कि वे समान नागरिक नहीं हैं। कुछ जातियां धर्म का आड़ लेकर आज तक बड़ी बनी हुई है, चाहे वो जितना पाप व कुकर्म करें।
विश्वयुद्ध में भी धर्म का घिनौना रूप दिखा था। जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने लाखों यहुदियों को यातना दे देकर मार डाला था। उनका कसूर यहुदी होना था। इससे थोड़ा सा अलग हटकर देखें तो रूस में जारशाही का अत्याचार चरम पर पहुंचने का बड़ा कारण धर्म ही था। वे ऐश करने के लिए धर्म के नाम पर एक से बढ़कर एक कुकर्म करने लगे थे। वहीं आम जनता को जीने का सामान्य साधन भी उपलब्ध नहीं था।
दूसरी ओर इतिहास उलटकर देखें तो आज तक कहीं भी ऐसा उदाहरण नहीं मिलता कि धर्म को नहीं मानने वालों ने कहीं दंगा किया है। उल्टे ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं कि नास्तिकों ने मानवता के प्रति सबसे अधिक चिंता जतायी और मानवीय एकता की राह दिखायी। माक्र्स, लेनिन, भगत सिंह, डाॅ. राम मनोहर लोहिया आदि ऐसे अनेक महापुरूष हुए, जिन्होंने मानव-मानव के बीच की दूरी पाटने का हर संभव प्रयास किया।
धर्मों के बीच संघर्ष कोई नया नहीं है। यह आदि काल से ही चला आ रहा है। भारत में प्राचीन काल में आर्य और द्रविड़ सभ्यता के बीच संघर्ष हुआ। पुष्य मित्र शुंग के शासन में पूरे भारत में चुन चुनकर बौद्धों की हत्या की गयी। यूरोप में भी इसाइयों व यहुदियों के बीच सदियों तक मार काट मचा रहा। ईसा की जीवनी और आगा हश्र कश्मीरी का मशहूर नाटक यहुदी की लड़की आदि इसे साफ तौर पर बताते हैं। धर्म के नाम पर ही ईसा को अमानवीय तरीके से मार दिया गया। धर्म के लिए मुहम्मद साहब ने अपने जीवन काल में दर्जनों लड़ाइयां लड़ीं। धार्मिक सत्ता पाने के लिए यजीद ने उनके नाती हजरत हुसैन की हत्या कर दी। धर्म के नाम पर सिक्खों के गुरू तेग बहादुर को औरंगजेब ने यातनापूर्वक मार डाला और फिर गुरू गोविंद सिंह के पुत्रों को जिंदा दीवार में चुनवा दिया।
कुछ लोगों का ख्याल है कि धर्म तो आपस में मेलजोल सिखाता है। समझ बढ़ने से सभी धर्म के लोग एक साथ रहने लगेंगे। यह पूरी तरह से बरगलाने वाली बात है। धर्म जब तक रहेगा तब तक लोग एक हो ही नहीं सकते क्योंकि सभी धर्मों का दर्शन ही अलग-अलग है। हिंदू कहता है कि वेद साक्षात ईश्वर ने लिखे हैं। उसमें जो कुछ लिखा है वह अंतिम सत्य है। मुसलमान कहता है कि कुरान को खुद खुदा ने धरती पर उतारा है। यही सोच इसाइयों का बाइबिल के प्रति है और सिक्खों को गुरूग्रंथ साहिब के प्रति है। हिंदू मूर्तियों को देवी-देवता के रूप में देखते हैं। इस्लाम की नजर में बुतपरस्ती सबसे बड़ा गुनाह है। हिंदुओं का धार्मिक जुलूस बिना बैंड बाजा के निकल नहीं सकता। दूसरी ओर जुलूस की गली में मस्जिद के सामने बैंड बजने से मुसलमानों का मजहब खतरे में पड़ने लगता है। हिंदुओं का दर्शन पुनर्जन्म को मानता है। मुसलमान और इसाई इसे किसी भी हालत में नहीं मान सकते। हिंदू गाय की पूजा करते हैं तो मुसलमानों का धर्म उसकी कुर्बानी करने को कहता है। हिंदू सुअर का मांस खाते हैं तो मुसलमान इसका नाम भी नहीं सुनना चाहते।
भारत में भी हिंदू समझते हैं कि वे यहां के मूल निवासी हैं। यह उनका देश है। उन्हें ही यहां शासन करना चाहिए। मुसलामन समझते हैं कि अंग्रेजों के पहले छह सौ साल तक उनका शासन रहा है। अतः अंग्रेजों के जाने के बाद उनका ही शासन होना चाहिए था। वैसे भी जिस देश का शासक मुस्लिम न हो उनका मजहब उसे दारूल हरब अर्थात दुश्मनों का देश मानता है। इसाइयों का यह मानना रहा है कि उनका दर्शन सर्वश्रेष्ठ है और दुनिया का मार्गदर्शन करना उनका कर्तव्य है। क्या यह सच नहीं कि इसाई मिशनरी जितनी सेवा करते हैं, उसका मुख्य उद्येश्य इसाइयत का प्रचार करना भी होता है।
धर्म अगर एकता का संदेश देते तो कम से कम एक ही धर्म के अनुयायियों के बीच संघर्ष नहीं होना चाहिए था। लेकिन तथ्य है कि धर्म कोई भी हो, उसके रहेते शांति नहीं हो सकती। धर्मों के अंदर इंसान के बीच की दूरी ऐसा कभी नहीं होने देगी। अफगानिस्तान में सभी मुसलमान ही थे। फिर भी शसन कर रहे तालिबान ने धर्म के नाम पर ही लोगों पर जुल्म ढाया। पाकिस्तान के वजीरिस्तान में मुसलमानों ने ही उस इलाके में ऐसे हालात पैदा कर दिये जिससे वहां लोगों को रहना मुश्किल हो गया। मजहब का नाम लेकर पहले तो उस इलाके को आतंकवादियों का गढ़ बना दिया गया फिर उसी का वास्ता देकर अमावीय कानून लाद दिये गये। अब अमेरिका वहां ड्रोन हमला कर रहा है, जिससे वह इलाका अफगानिस्तान सा हो गया। अच्छा इसको छोड़ें, इराक-इरान का उदाहरण लें। दोनों ही इस्लामिक देश हैं। फिर भी वहां शिया व सुन्नी के नाम पर लाखों लोग एक-दूसरे के हाथों मारे गये। भारत में धर्म के नाम पर चार वर्ण और फिर अनगिनत जातियां बनाकर कुछ को देवता से भी बड़ा और कुछ को पश से भी गया गुजरा बना दिया गया। सिक्खों में भी अलग-अलग जातियां बनीं और एक-दूसरे से संघर्ष करती रहतीं हैं। इसाई धर्म के नाम पर दो खेमे में बंटे हुए हैं। जब एक ही धर्म के लोगों के बीच में आपस में धर्म के नाम पर ही संघर्ष हो सकता है, तो सभी धर्मों के बीच एकता कैसे संभव है। यहां तो ऐसा लगता है कि एक ही धर्म रहने पर भी धर्म के होते कभी मानव शांति से नहीं रह सकता।
जब तक लोग धर्म से हटकर इनसान नहीं बनेंगे तब तक लोगों का एक होना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। उपरोक्त सभी उदाहरण साबित करते हैं कि मजहब ने लोगों के बीच वैर फैलाने के अतिरिक्त कुछ नहीं किया। ऐसे में यह खबर रोशनी की किरण बन जाती है कि कई देशों में कानूनी रूप से धार्मिक चिह्नों को धारण करने पर पाबंदी लगा दी गयी है। ऐसे देशों की संख्या धीरे-धीरे ही सही बढ़ रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक दर्जन भर ऐसे देश हैं जहां से एक दशक में धर्म पूरी तरह से खत्म हो जाएगा। सबसे खुशी की बात है कि आज का युवा वर्ग धर्म की हकीकत को समझने लगा है।
सुधीर
3 टिप्पणियां:
For decades I wanted to write this article with same words and title. But, it never happened. I am passing through a strange feeling, reading your article in my own words. I am well aware that, the way I think and logic more than 99 % people found it bizarre and disagree. I strongly believe that nothing has harmed the human and humanity as much as religion. And the next one is politics. In politics, greed for power kills sense of ethics, morale and values. In religion, refusal to think logically makes the person nonsense. I strongly believe that most of the philosophical, spiritual and even religious scholars and leaders never believed in God and religion. But, they never declared it openly due to two reasons. 1st, due to fear of rejection by people in general. And 2nd due to overwhelming power of religion. Most scholars used religion to spread their teachings. That’s why you may get some good things also in Religious teaching. I am very much convinced that Mahavir Jain, Mahatma Buddh, Swami Dayanand Sarasawati, Swami Vivekanand, Mahatma Gandhi and many more never believed in God and religion. Even today, there are people who don’t believe in God and Religion. But they never come forward due to fear of isolation and rejection. Though, I do not believe in religion right from my childhood, it took more than two decades to declare that I am an Atheist and I never believed in God. I believe in ‘General Goodness’. Thanks for your article. We need more and more people to come forward with these type of thinking and writings. Thanks again.
I also agree with Sudhir Singh ...Religion is fulfilling its purpose , it has become tool to destroy culture and generations
बहुत अच्छा और खुले मन से लिखा आपने। आपके साहस को नमस्कार है सुधीर जी। मजहब ही है सिखाता आपस में वैर करना
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