इस बार कुछ कारणों से गांव पर रहना कुछ अधिक ही हो गया। बस, यह बताना चाहता हूं कि भारत का एक आम गांव आज की तारीख में कैसा है। जो मेरे गांव बिरहारा में हो रहा है, कमोबेश वही स्थितियां बाकी जगह भी हैं।
गांव पहुंचते ही पता चला कि प्राथमिक विद्यालय की राशि के लिए चल रहा विवाद थाना से होते हुए अदालत तक जा पहुंचा है। इसे लेकर गांव में गुटबाजी जारी है। दिलचस्प यह कि विद्यालय की प्रभारी प्रधानाध्यापिका गायत्री देवी भी गांव की ही एक महिला है। उसने बिहार के अन्य विद्यालयों की तरह दो तरह की पंजी बनाकर पोशाक राशि व छात्रवृत्ति की राशि का गबन कर दिया है। बच्चों के बीच बिना पैसे बांटे अखबार में भी समाचार प्रकाशित करवा दिया कि सारी राशि बांट दी गई। अखबार के भी विद्वान संवाददाता ने भी मामले को जानने में बिना कोई दिलचस्पी दिखाए मुंहजबानी समाचार लिखकर छपवा दिया।
गांव वालों ने आक्रोशित होकर प्रधानाध्यापिका का पुतला फूंका। प्रधानाध्यापिका ने बदले में गांव के ही सरपंच सहित कई लोगों पर राह में पैसे और विद्यालय का रजिस्टर छिनने का आरोप लगाकर मुकदमा कर दिया। थाने में दूसरे पक्ष की ओर से भी मुकदमा किया गया। फिर प्रधानाध्यापिका ने अनुमंडल कोर्ट में शिकायत दर्ज करा दी। मेरे गांव पहुंचने तक इतना घट चुका था। अब गांव में तनाव और गुटबाजी चल रही है।
हालांकि गांववाले पहले इस गबन की शिकायत बीडीओ से लेकर डीएम के पास तक कर चुके थे। लेकिन सुनता कौन है? सबको पता है कि बड़ा अफसर अधिक भ्रष्ट होता है। किसी ने कोई कार्रवाई नहीं की। लूट जारी रही। वैसे मेरे इलाके में सरकारी धन की लूट चरम पर होती है। कोई रोकने टोकने वाला नहीं होता। खासकर मध्याह्न भोजन, पोशाक राशि, छात्रवृत्ति की राशि व आंगनबाड़ी का पोषाहार कर्मियों व अधिकारियों के ही घर में जाता है। बाकी सरकारी योजनाओं का हाल भी इससे दूसरा नहीं है। हमारे प्रखंड में सरकारी विद्यालयों में लूट के लिए बजाप्ता मास्टर प्लान बना हुआ है, जिसमें लूट के तरीके और सबकी हिस्सेदारी तय है। इसका मुख्य सूत्रधार है हमारे यहां का प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी जीतेंद्र यादव। दिलचस्प है कि अगर लोग कहीं शिकायत भी करते हैं तो जांच करने का जिम्मा उसे ही मिलता है।
फिर भी भारत यहीं है
अगले दिन मैं अपने एक रिश्तेदार के यहां से लौट रहा था। साथ में मेरे बहनोई श्री विजय कुमार थे। रास्ते में एक जगह ईख की पेराई हो रही थी। अरवल जिला के शेंभुआ टेरी गांव में। विजयजी ने, जिन्हें लोग आदर से महुआड़ी भी कहते हैं, रस पीने की इच्छा जाहिर की। हम दोनों वहां पहुंचे और रस पिलाने का निवेदन किया। ईख के मालिक ने तुरंत लोटा मंगाकर रस दिया। हम दोनों ने भर-भर पेट रस पीया। ईख मालिक ने यह भी कहा कि थोड़ा रुकें तो गुड़ तैयार हो रहा है। ताजा गुड़ खाने को मिलेगा। मेरा स्पष्ट मानना है कि ताजा गुड़ से अच्छी और स्वादिष्ट मिठाई दुनियां में और नहीं हो सकती। हमें देर हो रही थी। लिहाजा हमने उनसे विदा मांगी और उन्हें कुछ पैसे देने लगा। गरीबों का दिल वाकई बड़ा होता है। उन्होंने पैसे लेने से साफ इन्कार कर दिया। उन्होंने हमें विदा करते हुए फिर आने का न्यौता भी दिया। इन्हीं मौकों पर तो भारतीयता के दर्शन होते हैं। आज भी गांव में किसी की गाय बच्चा देती है तो उसका पहला दूध पड़ोसियों के यहा पहुंचाया जाता है। घर में जब मायके बहु आती है, तो पूरे गांव में बैना बांटा जाता है। बेटी की विदाई पर पूरा गांव रोता है। दाह संस्कार में पूरा गांव शामिल होता है।
मनरेगा का हाल
एक दिन शाम में मैं अपने एक खेत से तोड़कर मटर खा रहा था। बगल में एक खेत की खुदाई कर रहे मजदूर से बात होने लगी। मनरेगा के संबंध में। उनका नाम है धरिछन राम। बताने लगे कि हां, मनरेगा में मजदूरों की रूचि बढ़ी है। इस लिए कि आधा दिन काम करने पर भी हाजिरी बना देने पर पूरी मजदूरी मिल जाती है। इससे भी बड़ी बात है मजदूरी की रकम, जो कि किसानों के यहां से अधिक मिलती है। पूछता हूं, मनरेगा में ठेकेदार कैसे फायदा उठा रहे हैं तो बताते हैं, ‘ वह एक दिन काम करने पर चार दिन की हाजिरी पर हस्ताक्षर करवाता है। इस तरह वह चार गुनी अधिक रकम भुनाता है।’ वे और भी कई दिलचस्प जानकारी देते हैं। जैसे कि बटाई के मजदूर। ये ऐसे लोग हैं जिन्होंने जाॅब कार्ड तो बनवा लिया, लेकिन संपन्न होने के कारण काम पर नहीं जाते। ऐसे लोगों से ठेकेदार सिर्फ हस्ताक्षर करवाता है और मजदूरी की रकम दोनों आधा-आधा बांट लेते हैं। तो काम करने वाले मजदूरों को क्या पूरी रकम मिल जाती है। नहीं। पोस्टमास्टर का कमीशन दो से लेकर चार प्रतिशत तक बंधा है। अर्थात मजदूर को एक दिन की मजदूरी हाथ में 140 रुपये ही मिलती है। बाकी तीन से चार रुपये पोस्टमास्टर के हो जाते हैं।
और अगर पोस्टमास्टर को पैसे न दें तो?
तो वे पैसे के लिए घंटों बिठाकर अगले दिन आने को कहते हैं। ऐसे तीन-चार बार दौड़ाते हैं। एक दिन काम न करने पर 100-140 रुपये का नुकसान कौन मजदूर सहेगा? इस बात तो पोस्टमास्टर अच्छी तरह से जानता है। इसीलिए मजदूर उसका कमीशन बिना कुछ कहे दे देते हैं।
धरिछन बताते हैं कि शीघ्र ही मजदूरों का खाता बैंक में खुलेगा। लेकिन इससे उनकी परेशानी और भी बढ़ जाएगी क्योंकि बैंक यहां से काफी दूर है। उसका काम काज भी करीब ग्यारह बजे से शुरू होता है। अर्थात जिस दिन मजदूरी लेने बैंक जाएंगे, उस दिन की मजदूरी चैपट। और फिर अगर बैंक वाले ने दो-तीन दिन दौड़ा दिया तो...।
पंचायती राज का हाल
गांव के सबसे गरीब लोगों के घर आज भी मिट्टी व फूस के ही हैं। उन्हें इंदिरा आवास का लाभ नहीं मिल सका है क्योंकि उनके पास मुखिया और पंचायत सचिव को नजराना देने के लिए तीन हजार रुपये नहीं हैं। ग्राम सभा की बैठक आज तक गांव में कभी नहीं हो सकी। गांव के विकास के अधिक काम कागजों पर ही हो रहे हैं।
यह भी बता दूं कि एक दिन पंचायत सचिव मेरे दरवाजे पर भी पहुंचा। कोई भलाई करने नहीं। इसलिए कि मेरे आदरणीय पिताजी ने सूचना का अधिकार के तहत एक आवेदन देकर पिछले पांच वर्षों का लेखा-जोखा मांगा है। पंचायत सचिव कह रहा था- जान बख्श दीजिए। आप लोग तो जानते ही हैं कि सब कामकाज कैसे हो रहा है। वह कागज दिखाता है। जिला पंचायत पदाधिकारी ने उसे नवंबर में ही सूचना उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है। लेकिन वह अभी तक सूचना नहीं दे सका है।
बिहार में पंचायती राज की हकीकत यही है कि सरकारी दफ्तरों में फर्जी कागज भी नहीं उपलब्ध है। सही कागज की बात ही क्या?
जेल में शादी
एक दिन कुछ कारणों से मैं अपने अनुमंडल दाउदनगर पहुंचा। वहां अपने पत्रकार मित्र श्री उपेंद्र कश्यप से मिला। उन्होंने पहुंचते ही जानकारी दी कि आज कोर्ट के आदेश से जेल में एक शादी है। वे वहीं के लिए निकल रहे थे। जेल पहुंचने पर औरंगाबाद के कुछ और पत्रकारों से भेंट होती है। वे भी उसी स्टोरी को कवर करने आए हुए थे। कुछ देर बाद जेल के अंदर शादी शुरू हो जाती है। लड़का और उसके माता पिता जेल में ही बंद थे। लड़की घर से शादी करने आयी थी।
इसमें मामला यह था कि लड़का संजय राम और लड़की बसंती कुमारी के बीच 2008 से प्रेम प्रसंग चल रहा था। वे शादी भी करना चाहते थे। दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी था। 2012 में लड़के की नौकरी बिहार पुलिस में हो गई। इसके बाद उसने लड़की को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया। जब लड़की वाले उसके घर शादी की बात करने पहुंचे तो उसके घरवालों ने दहेद में बड़ी रकम की मांग कर दी। सामाजिक स्तर पर मामले को सुलझाने की कोशिश हुई, पर बात नहीं बनी। इसके बाद लड़की ने लड़के पर शादी का झांसा देकर यौन शोषण करने की प्राथमिकी दर्ज करा दी। इसी मामले में लड़का और उसके माता-पिता गिरफ्तार होकर जेल चले आये। बाद में दोनों पक्ष शादी के लिए तैयार हो गये। कोर्ट ने उनके वकीलों के आग्रह पर जेल में शादी करने का आदेश दिया। जेल सुपरिटेंडेंट श्री सत्येंद्र कुमार ने शादी की उचित व्यवस्था की। जेल में ही मंडप आदि भी बना। पंडित ने मंत्र पढ़े और महिलाओं ने मंगल गीत भी गाए। शादी में भाग लेने स्थानीय विधायक सोम प्रकाश भी पहुंचे।
शराब की खुलेआम बिक्री
सूबे में शराब के कारण कई बड़ी घटनाएं हो जाने के बावजूद गांवों में अब भी शराब का कारोबार जोरों से चल रहा है। हालांकि दशहरा के बाद से मेरे गांव में इसमें कुछ कमी आई है। सरकारी प्रयासों के कारण नहीं। इसलिए कि दशहरा में शराब को लेकर विजयादशमी को ही एक आदमी ने शराब के एक विक्रेता को गोली मार दी थी। फिर भी अभी गांव में 10 से अधिक जगह दारू बेची जा रही है। गरीब अपनी आमदनी का बड़ा हिस्सा इसी में खर्च कर रहे हैं। बेचने वालों को स्थानीय प्रशासन की शह मिली हुई है।
मध्य विद्यालय की कहानी
सरस्वती पूजा के दिन अपनी भांजी प्रगति के साथ मैं श्री बाणभट्ट मध्य विद्यालय पहुंचा। मैंने पांचवीं से आठवीं तक की पढ़ाई यहीं की है। यह मेरे बगल के गांव बंधु विगहा में स्थित है। अब यहां 10वीं तक की कक्षाएं चलती हैं। मैं जब पढ़ता था, एक कमरे को छोड़ पूरा विद्यालय खपरैल था। अब उस भवन को गिरा दिया गया है। पक्की छत वाला भवन का निर्माण कार्य जारी है। कई कमरे बन भी चुके हैं। लकड़ी की जगह लोहे के दरवाजे और खिड़कियां लगाई जा रही हैं। अभी ठीक से काम पूरा भी नहीं हुआ है कि दरवाजे टूटने लगे हैं। वहां काम कर रहा कारीगर बताता है कि ठेकेदार ने सारे पैसे का घपला कर दिया। सबसे घटिया और कमजोर लोहे का इस्तेमाल किया जा रहा है। यही हाल दीवारों और छतों के निर्माण में भी है। वहां अभी भी छात्र-छात्राएं स्कूल के पीछे खुले में पेशाब करते हैं, जैसा कि हमारे समय में होता था। हालांकि अब विद्यालय में शौचालय व पेशाबखाने की व्यवस्था भी थी। फिर उनमें बच्चे क्यों नहीं जाते? वहां पूजा में उपस्थित बच्चे बताते हैं कि पेशाबखाने में छत से सीधा सबकुछ नजर आता है क्योंकि यह छत वाले भवन के ठीक बगल में बना हुआ है। पेशाबखाने में छत नहीं है। सिर्फ तीन-चार फीट दीवार खड़ी कर दी गई है। हाल यह है कि उसका होना न होने से अच्छा था। नए भवन को देखता हूं। वहां भी फर्श और दीवारों से पलास्टर उखड़ने लगा है। हर ओर दीवारों पर बच्चे अपनी-अपनी भावनाओं का इजहार कर चुके हैं। पुराना पीपल का पेड़ अब भी प्रांगण में खड़ा है। मैं फूलों की क्यारियां तलाशता हूं। वह कहीं नहीं दिखतीं। मेरे समय में पूरा विद्यालय इस मौसम में फूलों से सजा दिखता था। हमें परीक्षा में बागवानी के लिए भी अंक मिलते थे।
धान क्रय में लूट
धान क्रय के नाम पर पैक्स वाले कई सुनियोजित तरीके से किसानों को खूब लूट रहे हैं। सरकार ने धान का समर्थन मूल्य 1240 रुपए प्रति क्विंटल रखा है। लेकिन किसानों से पैक्स वाले 900-950 रुपये प्रति क्विंटल की दर से खरीद रहे हैं। कागज पर 1240 दिखाया जा रहा है। कई जगह धान खरीदने के लिए बिचैलिए लगाए गए हैं। वे किसानों से 900 रुपये प्रति क्विंटल धान खरीदकर पैक्स वालों को 950 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से बेच रहे हैं। पैक्स वाले इस धान पर 1250 की दर से पैसे भुना रहे हैं। सबसे अधिक खरीद इसी तरह से हो रही है। कुछ किसान जो खुद धान लेकर क्रय केंद्र पर पहुंच रहे हैं, उन्हें एक क्विंटल में 90 किलोग्राम वजन का ही दाम दिया जा रहा है। यह सब कुछ खुलेआम जारी है। हालांकि सरकार ने तय किया है कि पैक्स किसान के घर से धान ले जाएगा। लेकिन पूरे प्रखंड में कहीं नहीं दिखा।
मेरा धान भी कई दिनों तक यूं ही पड़ा रहा। पिताजी रोज पैक्स अध्यक्ष को बोलते। वह रोज कल परसों करता। अंततः मैंने प्रखंड में क्रय अधिकारी को मंत्री से शिकायत करने की धमकी दी। तब उसने पैक्स को जल्दी धान लाने का निर्देश दिया। पैक्स का धान न लाने के पीछे उद्देश्य यह होता है कि किसान अपना धान बिचैलियों को बेचने के लिए मजबूर हो जाए।
राजस्व कर्मचारी और उनके दलाल
राजस्व कर्मचारी तौकिर अहमद है। वह बातचीत में कई बार कह चुका है कि वहां का एसडीओ भी उसके सामने दबकर रहता है क्योंकि वह उपर तक पैसे पहुंचाता है। कर्मचारी ने लूट के लिए कई रास्ते बना रखे हैं। कुछ मामलों में वह खुद लूटता है तो कुछ मामलों में उसने दलाल रखे हुए हैं। दाखिलखारिज, डिमांड, एलपीसी आदि में वह किसानों से सीधे तौर पर कमीशन खाता है। आय, आवासीय आदि के प्रमाण पत्रों पर अनुशंसा करने के लिए उसने दलाल रखा हुआ है। हालांकि गांव के कुछ लोग बताते हैं कि अब वह दाखिल खारिज आदि का काम भी दलाल के ही माध्यम से करता है। अभी उसने गांव वालों को लूटने के लिए नया प्रयोग किया है। उसने गांव में अपने एक ‘आदेश पत्र’ में गांव वालों को धमकी दी है कि अगर तय चंद दिनों में जो रैयत अपनी जमीन का ब्यौरा नहीं देंगे, सरकार उनकी जमीन जब्त कर लेगी। इस पत्र को गांव में सटवा दिया है। गांव वालों से दलाल 500 से 2000 रुपये वसूल कर रहे हैं। तौकिर कहता है, कमीशन का आधा हिस्सा अनुमंडलाधिकारी को जाता है।
खेत-खलिहान
पूरा बधार फूले सरसो से पीला दिख रहा है। क्या खूबसूरत नजारा है! किसान खेतों में व्यस्त हैं। मटर की छिमियां तैयार हो चुकी हैं। चने के खेत भी लहलहा रहे हैं। बैलों को आराम है। आलू खेत से निकलकर घर और बाजार पहुंच चुका है।
मैंने पिछले साल अपने एक खेत में शतावर लगवाया था। वह भी तैयार हो चुका है। पपीता पक रहा है। बेल के फल भी लग चुके हैं। आमों में मोजर खूब लगा हुआ है। बड़ा वाला नीबू का पेड़ फूलों से लदा हुआ है।
नया में, इस बार पिताजी ने 10 एकड़ जमीन में एलोवेरा के गाछ लगवाए हैं। इसमें काफी हिस्सा सरकार से अनुदान मिला है। सिंचाई के लिए इजराइल का तकनीक लगाया गया है। हर पौधे की जड़ के पास पानी गिरने की व्यवस्था है। इससे पानी की बर्बादी नहीं होती और आसानी से हर पौधे तक पानी पहुंच जाता है।
गांव में अभी राजनीतिक चर्चाएं ठप हैं क्योंकि हाल फिलहाल कोई चुनाव नहीं है। लगभग हर व्यक्ति तो नहीं पर हर परिवार में एक मोबाइल फोन हो चुका है। 90 फीसदी से अधिक फोन मल्टी मीडिया फीचर वाले हैं, चाइनीज ही सही। यहां तक कि मजदूर काम करते वक्त भी दिन भर अपने मोबाइल में गाने बजाते रहते हैं। सबसे तेजी से उभरता व्यवसाय है मोबाइल में गाना व वीडियो डाउनलोड करना। भागकर शादी करने वाले लड़के-लड़कियों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है। युवक नए स्टाइल के परिधानों में दिखने लगे हैं।
एक दिन नीलगायों का भी एक झुंड दिखा। उनकी संख्या तेजी से कम हो रही है। किसी का इस पर ध्यान नहीं। आदमी देखते ही नीलगायें भागने लगीं। मनुष्य का चेहरा कितना भयानक हो चुका है, नीलगायें भी दहशत में आ जाती हैं। खरहे अब दौड़ नहीं लगाते। पक्षियों की संख्या भी बहुत घट गई है। कई पक्षी तो अब नजर ही नहीं आते। सियारों की आवाज भी अब बहुत कम सुनाई पड़ती है। अब किसी घर में गौरैया नहीं चहचहातीं। मैना के गीत नहीं गुंजते। तोते आदमी की बोली कौन कहे, अपनी बोली भी नहीं बोलते। नीलकंठ कहीं दर्शन नहीं देते। प्रवासी पक्षी किसी मौसम में नहीं आते। कभी कभार बरसात में शायद बगुलों का झुंड दिख जाए। गिद्ध, बाज, चील के लिए तो रूदन ही किया जा सकता है।
गांव में अब भी बिजली नहीं है। कई वर्षों से राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना के तहत तार और खंभे लगे हुए हैं। गांव में बिजली लाने के नाम पर भी वसूली की जा रही है।
भारत गांवों में जिंदा है, लेकिन गांव तिल-तिल मर रहे हैं।
सुधीर
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