भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरू को शत–शत पावन नमन और श्रद्धांजलि
साथियों, भगत सिंह और उनके विचारों को अप्रासंगिक करने का षड्यंत्र उनके जीवनकाल में ही शुरू हो गया था. अंग्रेज परस्त कांग्रेसी नेता भगत सिंह और उनके साथियों को बदनाम करने में लगे हुए थे. उन्हें लुटेरों के एक गिरोह के रूप में प्रचारित करते थे. उनकी शहादत के बाद भी उन्हें आतंकी देशभक्त के रूप में बताया जाता रहा. आजादी के बाद उनके विचारों और चिंतन को दबाने की कोशिश की जाती रही. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. भगत सिंह के विचार जब दुनिया के सामने उजागर हुए, तो सभी दंग रह गए. सबको यह स्वीकार करना पड़ा कि अंग्रेजों ने केवल एक भारतीय क्रांतिकारी को ही फांसी नहीं दी, बल्कि एक महान मस्तिष्क को नष्ट कर दिया, जो कि मानव सभ्यता के विकास में अहम योगदान देता.
साथियों, भगत सिंह और उनके विचारों को अप्रासंगिक करने का षड्यंत्र उनके जीवनकाल में ही शुरू हो गया था. अंग्रेज परस्त कांग्रेसी नेता भगत सिंह और उनके साथियों को बदनाम करने में लगे हुए थे. उन्हें लुटेरों के एक गिरोह के रूप में प्रचारित करते थे. उनकी शहादत के बाद भी उन्हें आतंकी देशभक्त के रूप में बताया जाता रहा. आजादी के बाद उनके विचारों और चिंतन को दबाने की कोशिश की जाती रही. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. भगत सिंह के विचार जब दुनिया के सामने उजागर हुए, तो सभी दंग रह गए. सबको यह स्वीकार करना पड़ा कि अंग्रेजों ने केवल एक भारतीय क्रांतिकारी को ही फांसी नहीं दी, बल्कि एक महान मस्तिष्क को नष्ट कर दिया, जो कि मानव सभ्यता के विकास में अहम योगदान देता.
सवाल है कि आज क्यों भगत सिंह को अप्रासंगिक बनाने का प्रयास हो रहा है. कारण वही है, जो उनके जीवनकाल में था. उस समय भी शोषक वर्ग को भगत सिंह के विचारों से खतरा महसूस होता था, आज भी होता है.
यह साफ हो चुका है कि अधिकांश कांग्रसी नेताओं के लिए आजादी की लड़ाई का मतलब था अंग्रेजों से सत्ता हथियाना. वे देश के लिए नहीं, बल्कि देश पर अपनी हुकूमत करने के प्रयास में लगे हुए थे. कांग्रेस के इतिहास के अध्ययन से भी यह साफ हो जाता है कि उनकी लड़ाई आम जनता के लिए कभी नहीं रही. कांग्रेसी नेता सत्ता में भागीदारी के लिए हमेशा अंग्रेजों से समझौता करते रहे. दिलचस्प है कि जब डॉ. अम्बेदकर ने आम जनता की आवाज उठाई तो उन्हें ही बेशर्म कांग्रेसियों ने अंग्रेज परस्त करार दे दिया.
भगत सिंह ने साफ–साफ कहा था कि सिर्फ अंग्रेजों को भगा देने से लड़ाई खत्म नहीं हो जाएगी. मुख्य मकसद है आम आदमी के जीवन में परिवर्तन लाना. उन्हें आजादी का एहसास कराना. गोरों के जाने के बाद देश की गद्दी पर भूरे बैठेंगे, इससे कुछ नहीं बदलेगा. आजादी का मतलब होगा देश की संपत्ति और संसाधनों को आम आदमी के हित में खर्च करना. गरीबों और मजदूरों की चेतना को जगाना होगा और उन्हें देश के विकास में बराबर का हिस्सेदार बनाना होगा.
हमारे कथित महान कांग्रेसी नेता भगत सिंह के इन्हीं विचारों से भयभीत रहते थे. उस समय वे लोग भयभीत रहते थे, जिन्हें अंग्रेजों से देश की सत्ता और संपत्ति मिलने की उम्मीद थी. अब उन्हें खौफ है, जिनके हाथों में देश की सत्ता और संपत्ति है. भगत सिंह के विचारों के फैलने से उन्हें खतरा महसूस होता है.
सत्ता लोलुप नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए देश को खंडित कर दिया. विभाजन के नाम पर लाखों आम जनता को एक दूसरे के हाथों कत्ल करवा दिया. लाखों महिलाओं के साथ उन्हीं लोगों ने बलात्कार किए, जो हजारों वर्षों से एक परिवार बनकर रह रहे थे. कितना शर्मनाक है कि जब देश के लाखों लोग कत्ल किए जा रहे थे, लाखों महिलाओं के साथ बलात्कार किए जा रहे थे, करोड़ों परिवार उजड़ रहे थे, उस समय हमारे कथित महान नेता सत्ता मिलने का जश्न मना रहे थे.
आज साफ दिख रहा है कि एक खास वर्ग देश की संपत्ति को दिन–रात लूटने में लगा हुआ है. गरीबों और आदिवासियों को जीने के न्यूनतम अधिकार से भी वंचित किया जा रहा है. लूट को वैधता देने के लिए उसी हिसाब से नियम–कानून बनाए जा रहे हैं. अधिकाधिक लूट के लिए आम जनता पर दिन दूना रात चौगुना टैक्स लादा जा रहा है. शोषकों और लुटेरों के हितों को ध्यान में रखकर विदेशों से समझौते हो रहे हैं. लोगों को यह कहने पर मजबूर होना पड़ रहा है कि देश में अंग्रेजों के जमाने में भी इतनी लूट नहीं थी.
देश को लूटने वालों को यह बात अच्छी तरह से पता है कि उनके षड्यंत्रों की सफलता के लिए जरूरी है कि जनता में जागरुकता न आए. भगत सिंह के विचारों को से इसीलिए उन्हें हमेशा खतरा महसूस होता रहा है. अगर जनता जागरुक हो गई तो नेताओं, नौकरशाहों, पूंजीपतियों, धर्मगुरुओं और कथित बुद्धिजीवियों सबकी पोल खुल जाएगी.
धर्मगुरुओं को भी भगत सिंह हमेशा खतरा महसूस होते रहे हैं. भगत सिंह इनके पाखंड से काफी पहले ही भलीभांति भांप गए थे. इसीलिए वे हमेशा धर्म को बड़ी बाधा बताते रहे. भगत सिंह अच्छी तरह से जानते थे कि गोरे और भूरे, दोनों ही धर्म को आम जनता के विरुद्ध हथियार के रूप में इस्तेमाल करते रहेंगे. भगत सिंह की शहादत से बनी राष्ट्रीय एकता को तोड़ने में इसी हथियार का इस्तेमाल किया गया और फिर देश को खंडित करने में भी.
इसीलिए हर ओर से भगत सिंह को अप्रसांगिक करने की पूरजोर कोशिश हो रही है. अगर भगत सिंह को याद भी किया जाता है तो सिर्फ अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाने वाले के रूप में. उनके चिंतन और विचारों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया जाता है. यहां तक कि भगत सिंह को बदनाम करने के लिए उनके नाम पर ऐसे संगठन बनाए जा रहे हैं, जो पूरी तरह से उनकी विचारधारा के विरूद्ध काम कर रहे हैं.
परंतु, लाख प्रयत्नों के बावजूद भगत सिंह को खारिज नहीं किया जा सकता. जनता की चेतना जागृत होगी. वो दिन आएगा, जब लुटेरों के मंसूबे विफल होंगे. सत्ता और संपत्ति में सभी की भागीदारी होगी. भारत और पाकिस्तान की आम जनता भी अच्छी तरह समझ जाएगी कि दोनों एक परिवार के लोग हैं, जो नेताओं के षड्यंत्र के कारण एक दूसरे को दुश्मन मान बैठी. मानव सभ्यता के विकास के साथ भगत सिंह और अधिक प्रासंगिक होते चले जाएंगे. और उनकी पंक्तियां
हमेशा प्रेरणा देती रहेंगी...
सारा जहां अदू सही, आओ
मुकाबिला करें
सुधीर
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